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लोकतंत्र और सोशल मीडिया- डा. अशोक कुमार मिश्र


लोकतंत्र और सोशल मीडिया


-डा. अशोक कुमार मिश्र
डीन एडमिनिस्ट्रेशन
रुड़की इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट टेक्नोलाजी इंस्टीट्यूट, 
शामली-पानीपत राज्यमार्ग, 
निकट ग्राम मन्ना माजरा, शामली (उ.प्र.)
ई-मेल: ashokpranjan@gmail.com
मोबाइल- +91 9411444929



आधुनिक युग में सोशल मीडिया जनमानस की वैचारिक अभिव्यक्ति के सशक्त उपकरण के रूप में उभरकर सामने आया है। यह लोकतंत्र को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। सोशल मीडिया ने सभी को खुलकर बोलने का और हर मुद्दे पर अपनी राय रखने का मौका दिया है। लोकतंत्र की अवधारणा जनता का शासन, जनता के लिए और जनता के द्वारा पर आधारित है। इस दृष्टिकोण से जनता की आवाज को शासन तक पहुंचाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। सोशल मीडिया यह कार्य बखूबी कर रहा है। इसलिए लोकतंत्र और सोशल मीडिया का अंतर्संबंध अत्यंत गहरा और व्यापक है। यही कारण है कि सोशल मीडिया का प्रभाव समाज के प्रत्येक वर्ग पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। पिछले कुछ वर्षों में युवा पीढ़ी इसकी तरफ जबरदस्त तरीके से आकर्षित हुई है।

दरअसल इंटरनेट के विकास के साथ ही सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से सामाजिक जीवन में संवाद के नए रूप का प्रादुर्भाव हुआ है। सोशल नेटवर्किंग के के द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को परस्पर संवाद स्थापित करने, विविध विषयों पर वैचारिक अभिव्यक्ति, भावनाओं के आदान-प्रदान और अकादमिक, साहित्यिक, राजनीतिक और सामाजिक विमर्श के लिए मंच प्रदान कर रहा है। आधुनिक युग में सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का ही माध्यम नहीं है बल्कि समाचारों का आदान-प्रदान करते हुई इसने कई जन-आंदोलन भी खड़े किए हैं। सोशल मीडिया के दबाब के कारण ही दिल्ली के निर्भया कांड, मुजफ्फरनगर में दंगे की घटना, समाजसेवी अन्ना हजारे का आंदोलन, आरुषि हत्याकांड और नीरा राडिया कांड को मुख्यधारा की मीडिया का विषय बनाया गया और इस पर व्यापक जनसमूह ने विचार विमर्श किया। सोशल मीडिया के माध्यम से समसामयिक मुद्दों और घटनाओं के प्रमुखता से उठाया जा रहा है। विश्व फलक पर देखें तो चीन, ट्यूनीशिया और अरब देशों में जो राजनीतिक सुगबुगाहट हुई है, उसके पीछे सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है। 

वास्तव में “सामाजिक मीडिया पारस्परिक संबंध के लिए अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों को संदर्भित करता है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च पारस्परिक प्लेटफार्म बनाने के लिए मोबाइल और बेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है। सामाजिक मीडिया के कई रूप हैं जिनमें कि इंटरनेटफोरम वेबलॉग, सामाजिक ब्लाग, माइक्रोब्लागिंग, विकीज,सोशलनेटवर्क, पॉडकास्ट, फोटोग्राफ, चित्र, चलचित्र आदि सभी आते हैं। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई संचार प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं।“-1-

सूचना प्रौद्योगिकी के विस्तार के साथ ही सोशल मीडिया का दायरा भी बढ़ता जा रहा है। सस्ती मोबाइल तकनीक ने इसे बढ़ावा दिया है। सोशल मीडिया हर व्यक्ति को किसी भी मुद्दे पर तुरंत अपनी राय रखने का मौका देता है और इसकी सबसे बड़ी ताकत है। लोकतंत्र में जनमानस का विचार सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। यही कारण है कि लोकतंत्र में सोशल मीडिया की भूमिका अत्यंत प्रभावी हो जाती है। यही कारण है कि सरकारी तंत्र भी अब सोशल मीडिया का प्रयोग करने लगा है। सोशल मीडिया की तरफ जनता का रूझान लगातार बढ़ रहा है। “विश्वभर में लगभग 200 सोशल नेटवर्किंग साइट्स हैं जिनमें फेसबुक, ट्वीटर, आर्कुट, माई स्पेस, लिंक्डइन, फ्लिकर, इंस्टाग्राम (फोटो,वीडियो शेयरिंग साइट्स) सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। एक सर्वे के मुताबिक विश्वभर में संप्रति 1 अरब 28 करोड़ फेसबुक यूजर्स (फेसबुक इस्तेमाल करने वाले) हैं। वहीं, विश्वभर में इंस्टाग्राम यूजरों की संख्या 15 करोड़, लिंक्डइन यूजरों की संख्या 20 करोड़, माई स्पेस यूजरों की संख्या 3 करोड़ और ट्वीटर यूजरों की संख्या 9 करोड़ है।

सोशल मीडिया का जन्म 1995 में माना जाता है। उस वक्त क्लासमेट्स डॉट कॉम से एक साइट शुरू की गयी थी जिसके जरिये स्कूलों, कॉलेजों, कार्यक्षेत्रों और मिलीटरी के लोग एक दूसरे से जुड़ सकते थे। यह साइट अब भी सक्रिय है। इसके बाद वर्ष 1996 में बोल्ट डॉट कॉम नाम की सोशल साइट बनायी गयी। वर्ष 1997 में एशियन एवेन्यू नाम की एक साइट शुरू की गयी थी एशियाई-अमरीकी कम्यूनिटी के लिए। सोशल मीडिया के क्षेत्र में सबसे बड़ा बदलाव आया फेसबुक और ट्वीटर के आने से। फेसबुक का जन्म 4 फरवरी 2004 में हुआ। मार्क जकरबर्ग ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए फेसबुक को डेवलप किया था। धीरे-धीरे इसका विस्तार दूसरे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों तक हुआ और वर्ष 2005 में अमरीका की सरहद लाँघ कर यह विश्व के दूसरे देशों में पहुँच गया। ऐसी ही कहानियाँ दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइट्स की भी हैं।“-2-

सोशल मीडिया जनजागरूकता लाने का भी प्रमुख उपकरण बनकर सामने आया है। राष्ट्र, समाज और जनहित के मुद्दों को सोशल मीडिया में प्रभावशाली ढंग से उठाया जाता रहा है। भारत में नारी सशक्तिकरण, बालिका शिक्षा, पर्यावरण, दहेज उन्मूलन, स्वच्छता अभियान, अपराध, भ्रष्टाचार का विरोध और मानवाधिकार जैसे मुद्दे सोशल मीडिया में प्रखरता से उठाए जाते रहे हैं जिससे लोकतंत्र को मजबूती मिल रही है। राजनीतिक दलों, सरकार अथवा सामाजिक कुप्रवृत्तियों का जनता सोशल मीडिया के माध्यम से प्रबल विरोध करती रही है जो किसी भी लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए आवश्यक है। किसी भी घटना की त्वरित सूचना अब लोगों को सोशल मीडिया के माध्यम से मिल जाती है।

सोशल मीडिया ने सामाजिक संबंधों की अवधारणा को भी प्रभावित किया है। पहले सामाजिक संबंधों की निरंतरता के लिए व्यक्तिगत रूप से मिलना जरूरी माना जाता था। लेकिन अब एसा नहीं है। अब लोग लंबे समय तक कई बार व्यक्तिगत रूप से नहीं मिल पाते हैं लेकिन सोशल मीडिया पर वे लगातार संपर्क में रहते हैं। “इस आभासी दुनिया के सहारे न सिर्फ मित्र बनाए जा रहे हैं,बल्कि उन्हें वोट बैंक से लेकर व्यवसाय में धनार्जन हेतु भी इस्तेमाल किया जा रहा है। वह दिन चले गये जब लोग एक दूसरे से विदा होते वक्त पता और फोन नम्बर लिया करते थे। अब तो लोग सोशल साइट्स के माध्यम से ही एक दूसरे से जुड़े हुये हैं और सोशल साइट्स के माध्यम से भी रिश्ते निभा रहे हैं। कारपोरेट कंपनियाँ अपने उत्पादों को बेचने हेतु इनका खूब इस्तेमाल कर रही हैं,आखिर ऐसी मुफ्त सेवा कहाँ मिलेगी ? फेसबुक व अन्य सोशल साइट्स ने साहित्य को भी काफी समृध्द किया है। यहाँ नवोदित से लेकर स्थापित रचनाकारों का साहित्य देखा-पढ़ा जा रहा है। पत्र-पत्रिकाओं की पहुँच भले ही हजारों मात्र तक हो, पर यहाँ तो लाखों पाठक हैं। इनमें से कई पाठकों ने तो तमाम पत्र-पत्रिकाओं का नाम भी नहीं सुना होगा, पर सोशल साइट्स के माध्यम से वे भी इनसे रूबरू हो रहे हैं। अकादमिक बहसों का विस्तार अब फेसबुक व अन्य सोशल साइट्स पर भी होने लगा है। नारी विमर्श, बाल विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, विकलांग विमर्श, सब कुछ तो यहाँ है। आप इन्हें शेयर कर सकते हैं, लाइक कर सकते हैं, कमेन्ट कर सकते हैं, वाद-प्रतिवाद कर सकते हैं और आवश्यकतानुसार नई बहसों को भी जन्म दे सकते हैं। विचारों की दुनिया में क्रांति लाने वाला सोशल मीडिया एक ऐसा माध्यम है जिसकी न तो कोई सीमायें हैं, न कोई बंधन। भारत सहित दुनिया के विभिन्न देशों में न सिर्फ वैयक्तिक स्तर पर बल्कि राजनैतिक दलों के साथ-साथ कई सामाजिक और गैरसरकारी संगठन भी अपने अभियानों को मजबूती देने के लिए सोशल मीडिया का बखूबी उपयोग कर रहे हैं। सोशल मीडिया सिर्फ अपना चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं है बल्कि इसने कई पंक्तियों व वैचारिक बहसों को भी रोचक मोड़ दिये हैं। जिन देशों में लोकतत्र का गला घोंटा जा रहा है वहाँ अपनी बात कहने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण भी किया है।“-3-

सोशल मीडिया का सर्वाधिक प्रयोग युवा वर्ग कर रहा है। व्हाट्स अप और फेसबुक जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर अत्यधिक समय व्यतीत करने से युवा वर्ग पर इसका नकारात्मक प्रभाव भी परिलक्षित होता है। जो समय पढ़ाई करने में व्यतीत होना चाहिए, उसका काफी कुछ हिस्सा सोशल मीडिया पर चला जाता है जिसका उन्हें कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह समय का अपव्यय है। “फेसबुक पर नित्य प्रोफाइल फोटो बदलना, दिन में कई बार स्टेट्स अपडेट करना, घंटों फेसबुक मित्रों के साथ चैटिंग करना जैसी आदतों ने युवा पीढ़ी को काफी हद तक प्रभावित किया है। घंटों तक फेसबुक पर चिपके रहने से न केवल उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है बल्कि कुछ नया करने की रचनात्मकता भी खत्म हो रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से तमाम अश्लील सामग्री और भड़काऊ बातें भी लोगों तक प्रसारित की जा रही है,जो कि लोगों के मनोमस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालती हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने लोगों को वास्तविक जीवन की बजाय आभासी जीवन में रहने को मजबूर कर दिया है। यह एक ऐसा खेल बन चुका है, जहाँ एक दूसरे के साथ लाइक और शेयर के साथ सुख-दुख और सपने बांटे जाते हैं और अगले ही क्षण रिश्तों को ब्लाक भी कर दिया जाता है।“-4- कई बार युवाओं का मानसिकता पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। इस आभासी दुनिया में अनेक काल्पनिक चरित्र भी होते हैं जिन्हें कई बार वह सत्य मान लेते हैं और जब उनका इस वास्तविकता से साक्षात्कार होता है तो वह निराशा और अवसाद से घिर जाते हैं।

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि लोकतंत्र को सफल बनाने में सोशल मीडिया की प्रमुख भूमिका है। सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति को अपनी बात जनमानस और शासन तक पहुंचाने का अधिकार प्रदान कर दिया है। सूचना के आदान-प्रदान, जनमत तैयार करने, जनचेतना जागृत करने, विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों के लोगों को आपस में जोड़ने, विविध मुद्दों और आंदोलनों में भागीदार बनाने की दृष्टि से सोशल मीडिया एक सशक्त उपकरण है। लेकिन इसका सावधानीपूर्वक उपयोग करना भी आवश्यक है। सोशल मीडिया का दुरूपयोग कई विसंगतियों को जन्म देता है। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दंगों को भड़काने में सोशल मीडिया की अहम भूमिका रही थी, जिसमें सैकड़ों परिवारों को बेघर होना पड़ा। वहीं कई लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। कई बार सोशल मीडिया के माध्यम से नारी अस्मिता से खिलवाड़ किए जाने की घटनाएं भी सामने आईं हैं। सोशल मीडिया पर अधिक व्यस्त होना व्यक्ति को लक्ष्य से भटका सकता है। इसलिए आवश्यक है कि सरकार इस तरह की नीतियां बनाएं जिससे सोशल मीडिया का सदुपयोग किया जाना सुनिश्चित हो, तब यह लोकतंत्र, समाज, राष्ट्र और व्यक्ति के लिए निसंदेह हितकारी है।

संदर्भ-

1-https://hi.wikipedia.org/wiki/सामाजिक_मीडिया

2-उमेश कुमार राय, सोशल मीडिया का बढ़ता दायरा वरदान भी अभिशाप भी, साहित्य संहिता, वाल्यूम 3 अंक 1, http://sahityasamhita.org/2015/04/16/

3-कृष्ण कुमार यादव, अभिव्यक्ति को नई धार देता सोशल मीडियाhttp://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/9387/9/193#.VqxCJtJ961s

4-उपरोक्त



निवास का पता
डा. अशोक कुमार मिश्र
26 बी/194, गली नंबर सात
शिवशक्तिनगर, मेरठ - 250002 (उ.प्र.)



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