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गीता गैरोला की रचनाएँ-




ये मेरे सपनो के खिलाफ सोचा समझा षड्यंत्र है
क्योंकि मेरे सपने उन्हें सोने नहीं देते
नींद की पहली सरगोशी में ही
मेरे इतिहास की सागर तरंगें
और बिना खाद पानी की नस्लें
उनकी नींदों की अतल गहरा इयों में नारे लगाती हैं
ये युद्ध है उनकी नींद
और मेरे सपनों की नस्लों का
उनकी नींदों के पाल चौकन्ने हैं
पर हवा विरोधी है
मेरे स्वप्नों के मुक्त पाखी
विरोधी हवा के चौकन्ने पालों को
असीम शून्य की नीलाई में
युद्ध के लिए ललकारते हैं
तुम परवाज को आवाज दो
मेरी नस्लें मिट्टी के नीचे कुलबुला रही हैं
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पहाड़ जब तक रहेंगे,
तब तक रहूंगी मै
जब तक मै रहूंगी
तब तक पहाड़ रहेंगे
जैसे पहाड़ में रहते हैं,
पेड़,पौधे,जानबर,पक्षी
मिट्टी,पत्थर,आद, पानी और आग
मुझमे रहता है खून,राख, पानी,हड्डियां
नफरत और प्रेम
हम दोनों एक हैं
एक दूसरे के विरुद्ध
मै पहाड़ को जलाती हूँ,
काटती हूँ,खोदती हूँ
पहाड़ मुझे जलाता है
पहाड़ फिर फिर उग आता है
और मै भी बार बार जन्म लेती हूँ
जब तक काटने,जलाने की रीत रहेगी
पहाड़ और मै
एक दूसरे के सामने खड़े रहेंगे
ना पहाड़ खत्म होंगे ना ही मै
हम दोनों जिन्दा रहने का युद्ध
एक साथ लड़ेंगे।

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