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'माफ़ करें मुझे किसानों के पक्ष का कोई समकालीन भारतीय साहित्य दिखता नहीं'..: पलाश बिस्वास

12:55:00 am
'माफ़ करें मुझे किसानों के पक्ष का कोई समकालीन भारतीय साहित्य दिखता नहीं'..: पलाश बिस्वास 'सारस' पत्रिका के प्रवेशां...
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'एक और अंतरीप' (अप्रैल-जून, 2017): अंक समीक्षा- भगवानदास मोरवाल

3:39:00 pm
जो समझते हैं कि मैं, दुनिया के लायक हूँ नहीं l वे कहेंगे बाद में, दुनिया मेरे काबिल नहीं ll  (हेतु भारद्वाज) इन दिनों जिस तरह...
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जनकृति अंतरराष्ट्रीय पत्रिका के 'संपादक एवं संपादकीय विशेषांक' हेतु सूचना

3:19:00 pm
#संपादक_संपादकीय_विशेषांक 2017 आप सभी को सूचित किया जाता है कि जनकृति अंतरराष्ट्रीय पत्रिका का आगामी विशेषांक पत्रिकाओं के संपादकों, संप...
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‘सारस’ पत्रिका के प्रवेशांक ‘साहित्य में किसान' पर केंद्रित. अंक हेतु (रचनाएँ एवं लेख आमंत्रित)

2:56:00 pm
इस विषय के तहत भारतीय समाज में किसानों की स्थिति तथा भारतीय अर्थव्यवस्था में किसानों की भूमिका को खत्म करने के प्रयास से संबंधित समस्या...
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प्रदीप नील जी का हरियाणवी उपन्यास "जाट कहवै, सुण जाटणी"

2:52:00 pm
अपना पहला हरियाणवी उपन्यास "जाट कहवै, सुण जाटणी" आपके सामने रख रहा हूं, खरीदने का आग्रह बिल्कुल नहीं करूंगा। हां, गारंटी जरूर ...
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