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न्यू मीडिया में हिंदी साहित्य की उभरती प्रवृत्तियाँ: शैलेश



न्यू मीडिया में हिंदी साहित्य की उभरती प्रवृत्तियाँ


- शैलेश 
हिंदी अधिकारी, सिक्किम विश्वविद्यालय, गंगटोक, सिक्किम एवं 
पीएचडी शोध छात्र, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा 



विषय परिचय

आज की पीढ़ी सूचना-विस्फोट के युग में जी रही है. और आज का हिंदी साहित्यकार यदि स्वयं को इस सूचना क्रांति से अलग रखता है तो वह स्वयं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारता है. जो साहित्यकार – लेखक, कवि, कहानीकार, नाटककार आदि इस सूचना तकनीक का लाभ उठाते हुए इसके माध्यम से अपने द्वारा रचित साहित्य को अभिव्यक्त कर रहे हैं वे निश्चित रूप से ऐसा न करने वालों के तुलना में अधिक पाठकों तक पहुँच रहे हैं. इस सूचना क्रांति का प्रयोग व्यक्तिगत और संस्थागत, दोनों ही स्तरों पर, एक हथियार के तौर पर किया जा रहा है जो कि इस जीवन-समर के लिए लगभग अनिवार्य हो चला है. 

सूचना विस्फोट के साथ ही वर्तमान युग सूचना-आक्रमण, सूचना-आघात और सूचना-प्रतिघात का भी है. अब मात्र सूचना जैसे हथियार से बड़ी-से-बड़ी लड़ाई और बड़े-से-बड़ा युद्ध लड़ा जा सकता है. आज के साहित्यकार, साहित्य एवं पत्रकारिता के छात्र और पेशेवर सूचना नाम के इस नए हथियार का प्रयोग जितनी कुशलता से सीखेंगे उतनी ही अधिक सफलता वे पा सकते हैं. हालाँकि, वो और बात है कि इस हथियार को वे मिशनरी साहित्य एवं मिशनरी पत्रकारिता के आदर्श स्थापित करने के लिए एक आदर्श सेनापति बनकर चलाएँ या घी में डूबी रोटी और मनमाफिक-मोटी-बोटी सुनिश्चित करने के लिए लाभ-केन्द्रित व्यावसायिक मीडिया समूहों की सूचना-सेना के प्यादे मात्र बनकर या फिर राजनैतिक-आर्थिक स्वार्थ साधने लिए किसी व्यक्ति या पार्टी विशेष के भोंपू बनकर. 

वर्तमान युग में सूचना नामक इस हथियार से तेजी से लक्ष्य भेदने के लिए तीव्र- मिसाइल का काम किया है इन्टरनेट आधारित न्यू मीडिया ने. इस न्यू मीडिया ने जहाँ एक ओर सूचना को तेज रफ़्तार से पहुँचाना संभव किया वहीँ यह भी सुनिश्चित किया है कि सूचना के इस हथियार का प्रयोग अधिकाधिक लोग कर सकें. अब सूचना कुछ गिने-चुने सम्पन्न लोगों के इशारे पर चलने वाला प्यादा नहीं रहा. सूचना का जोरदार तरीके से लोकतंत्रीकरण हो रहा है और सूचना अब उन्मुक्त रूप से विचरण कर रही है. सूचना की इस उन्मुक्तता को इस स्तर तक संभव बनाया है ‘न्यू मीडिया’ ने. 

न्यू मीडिया क्या है?

“न्यू मीडिया क्या है?” इस सवाल का जवाब जानने के लिए जब न्यू मीडिया को ही खंगाला गया तो हिदी में इस सवाल के जवाब में न्यू मीडिया के गूगल गुरु की खोज में 26,20,000 (छब्बीस लाख बीस हजार) परिणाम प्राप्त हुए. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि यही प्रश्न जब गूगल खोज में अंग्रेजी भाषा में (What is New Media) पूछा गया तो 1,61,00,00,000 (एक अरब इकसठ करोड़) परिणाम प्राप्त हुए. गौरतलब है कि हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी में प्राप्त होने वाले परिणाम 614 गुना ज्यादा हैं. कारण बिलकुल स्पष्ट है कि फ़िलहाल इस न्यू मीडिया जगत में अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है. हालाँकि, न्यू मीडिया का प्रयोग करने वाले उपकरण बनाने वाली कम्पनियां अब अपने उपकरणों में अधिक-से-अधिक भाषाओँ में उपयोग करने की सुविधा दे रही हैं. खैर यह एक अलग विषय है.

न्यू मीडिया का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मंच और अब तक के मानव इतिहास का सबसे बड़ा, सबसे ज्यादा लोगों द्वारा तैयार किया गया, सबसे अधिक भाषाओँ में उपलब्ध, और सब से अधिक पढ़ा जाने वाला इनसाइक्लोपीडिया – ‘विकीपीडिया’ हिंदी खोज में पहले नंबर पर और अंग्रेजी में दूसरे नम्बर पर रहा. अंग्रेजी में (What is New Media) खोजने पर परिणामों में पहले नंबर पर www.newmedia.org का लिंक www.newmedia.org/what-is-new-media.html रहा. वो और बात है कि न्यू मीडिया का परिभाषा के लिए इस वेबसाईट को भी विकिपीडिया की शरण में जाना पड़ता है. 


विकिपीडिया (हिंदी) के अनुसार “इंटरनेट के प्रचार-प्रसार और निरंतर तकनीकी विकास ने एक ऐसी वेब मीडिया को जन्म दिया, जहाँ अभिव्यक्ति के पाठ्य, दृश्य, श्रव्य एवं दृश्य-श्रव्य सभी रूपों का एक साथ क्षणमात्र में प्रसारण संभव हुआ। यह वेब मीडिया ही ‘न्यू मीडिया’ है, जो एक कंपोजिट मीडिया है, जहाँ संपूर्ण और तत्काल अभिव्यक्ति संभव है, जहाँ एक शीर्षक अथवा विषय पर उपलब्ध सभी अभिव्यक्‍तियों की एक साथ जानकारी प्राप्त करना संभव है, जहाँ किसी अभिव्यक्ति पर तत्काल प्रतिक्रिया देना ही संभव नहीं, बल्कि उस अभिव्यक्ति को उस पर प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं के साथ एक जगह साथ-साथ देख पाना भी संभव है। इतना ही नहीं, यह मीडिया लोकतंत्र में नागरिकों के वोट के अधिकार के समान ही हरेक व्यक्ति की भागीदारी के लिए हर क्षण उपलब्ध और खुली हुई है। (न्‍यू मीडिया 'कंपोजिट मीडिया' है : देवेन्‍द्र कुमार देवेश(

पत्रकारिताजगत.वर्डप्रेस.कॉम के अनुसार वेब मीडिया ही ‘न्यू मीडिया’ है, जो एक कंपोजिट मीडिया है, जहाँ संपूर्ण और तत्काल अभिव्यक्ति संभव है, जहाँ एक शीर्षक अथवा विषय पर उपलब्ध सभी अभिव्यक्यिों की एक साथ जानकारी प्राप्त करना संभव है, जहाँ किसी अभिव्यक्ति पर तत्काल प्रतिक्रिया देना ही संभव नहीं, बल्कि उस अभिव्यक्ति को उस पर प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं के साथ एक जगह साथ-साथ देख पाना भी संभव है। इतना ही नहीं, यह मीडिया लोकतंत्र में नागरिकों के वोट के अधिकार के समान ही हरेक व्यक्ति की भागीदारी के लिए हर क्षण उपलब्ध और खुली हुई है।

‘न्यू मीडिया’ पर अपनी अभिव्यक्ति के प्रकाशन-प्रसारण के अनेक रूप हैं। कोई अपनी स्वतंत्र ‘वेबसाइट’ निर्मित कर वेब मीडिया पर अपना एक निश्चित पता आौर स्थान निर्धारित कर अपनी अभिव्यक्तियों को प्रकाशित-प्रसारित कर सकता है। अन्यथा बहुत-सी ऐसी वेबसाइटें उपलब्ध हैं, जहाँ कोई भी अपने लिए पता और स्थान आरक्षित कर सकता है। अपने निर्धारित पते के माध्यम से कोई भी इन वेबसाइटों पर अपने लिए उपलब्ध स्थान का उपयोग करते हुए अपनी सूचनात्मक, रचनात्मक, कलात्मक अभिव्यक्ति के पाठ्य अथवा ऑडियो/वीडियो डिजिटल रूप को अपलोड कर सकता है, जो तत्क्षण दुनिया में कहीं भी देखे-सुने जाने के लिए उपलब्ध हो जाती है।

विकिपीडिया (अंग्रेजी) पर न्यू मीडिया (New Media) के बारे में दी गई जानकारी के अनुसार “न्यू मीडिया सामान्यत: वह सामग्री है जो इन्टरनेट के माध्यम से जब चाहो तब उपलब्ध हो जाती है, जिस तक किसी भी डिजिटल उपकरण के माध्यम से पहुंचा जा सकता है, और इसमें आमतौर पर प्रयोक्ता की ओर से अंतर्क्रियात्मक फीडबैक और सृजनात्मक भागीदारी होगी है. न्यू मीडिया के आम उदाहरणों में ऑनलाइन समाचार पत्र, ब्लॉग, विकी, विडियो गेम, कंप्यूटर मल्टीमीडिया, सीडी रोम, डीवीडी और सोशल मीडिया जैसी वेब साईट शामिल हैं. न्यू मीडिया की एक खास विशेषता संवाद है. न्यू मीडिया संपर्कों और वार्तालाप के माध्यम से सामग्री प्रसारित करता है. यह विश्व भर के लोगों को विभिन्न विषयों पर विचारों को साझा करने, उन पर टिपण्णी करने और चर्चा करने में सक्षम बनाता है. पुरानी तकनीको से बिलकुल अलग, न्यू मीडिया अंतर्क्रियात्मक समुदाय पर आधारित है.”

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि न्यू मीडिया वह संवादात्मक डिजिटल मीडिया है जिसे इन्टरनेट का प्रयोग करते हुए कंप्यूटर और मोबाइल जैसे डिजिटल उपकरणों के माध्यम से प्रयोग में लाया जाता है. इसके प्रयोक्ता को सामग्री का सृजन करने, सुधार करने, चयन करने, प्रतिक्रिया करने की सुविधा होती है. 


न्यू मीडिया में हिंदी साहित्य 

इन्टरनेट पर विश्व की सबसे पहली हिंदी साहित्यिक पत्रिका –‘भारत-दर्शन’ न्यूजीलैंड से रोहित कुमार (हैप्पी) ने शुरू की. दैनिक जागरण ने न्यू मीडिया पर अपने आरम्भिक दौर में साहित्य के अंतर्गत कुछ समय तक भारत-दर्शन की कड़ी (लिंक) जोड़े रखी थी. यह बड़ा रोचक विषय है कि हिंदी वेब साहित्यिक-पत्रकारिता विदेश से आरंभ हुई और इसको आगे बढ़ाने वाली अन्य मुख्य पत्र-पत्रिकाएँ भी विदेश की धरती से ही वेब पर आईं. भारत-दर्शन के बाद बोलो जी (अमरीका) तदोपरांत अनुभूति अभिव्यक्ति (शारजहा) का प्रकाशन आरंभ हुआ.


आज का सहित्यकार इन्टरनेट पर मौजूद न्यू मीडिया के विभिन्न मंचों - पॉडकास्ट, आर एस एस फीड, सोशल नेटवर्क फेसबुक, वाट्सऐप, इन्स्टाग्राम, माई स्पेस, ट्वीटर, ब्लाग्स, विक्किस, इत्यादि का प्रयोग करते हुए अपनी रचना को विश्व भर में फैले अपने पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों तक पहुंचा सकता है. अभिव्यक्ति के इतने अधिक प्रारूप समकालीन साहित्यकार के पास मौजूद हैं कि बिलकुल नया साहित्यकार भी अपने द्वारा रचित साहित्य को यदि अभिव्यक्ति के इन विभिन्न प्रारूपों में व्यक्त करे तो उसकी पहुँच एक पारंपरिक साहित्यकार की तुलना में कहीं अधिक हो सकती है. 


न्यू मीडिया में समकालीन हिंदी साहित्य की पहुँच विश्व के हर उस हिस्से तक हो गई है जहाँ पर इन्टरनेट के माध्यम से हिंदी साहित्य का सृजनकर्ता साहित्यकार या पाठक मौजूद है. और यही कारण है कि समकालीन हिंदी साहित्य विश्व के तमाम देशों से लिखा जा रहा है और तमाम देशो में पढ़ा जा रहा है. और यकीनन आप सब इस बात से सहमत होंगे कि समकालीन हिंदी साहित्य की इतनी व्यापक पहुँच बनाने में न्यू मीडिया एक खासी भूमिका निभा रहा है.


गूगल पर हिंदी साहित्य खोजने पर 3,95,000 ( तीन लाख पिचानवे हजार) परिणाम प्राप्त होते हैं. हिंदी कविता खोजने पर 5,23,000 (पांच लाख तेईस हजार), हिंदी गीत खोजने पर 4,90,000 (चार लाख नब्बे हजार), हिंदी ग़ज़ल खोजने पर 1,37,000 (एक लाख सैंतीस हजार), हिंदी कहानी खोजने पर 5,61,000 (पांच लाख इकसठ हजार), हिंदी उपन्यास खोजने पर 8,650 (आठ हजार छ: सौ पचास), हिंदी नाटक खोजने पर 10,20,000 (दस लाख बीस हजार), हिंदी व्यंग्य खोजने पर 4,66,000 (चार लाख छियासठ हजार) परिणाम प्राप्त होते हैं. हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं से सम्बंधित पेजों की ये संख्याएं न्यू मीडिया के माध्यम से हिंदी साहित्य की वैश्विक पहुँच को दर्शाती हैं. ये संख्याएं तब और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं जब हम हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं की पुस्तकों और पत्रिकाओं की प्रकाशित होने वाली प्रतियों की संख्या से इसकी तुलना करते हैं.


हिंदी साहित्य आधारित वेबसाइट्स 

समकालीन हिंदी साहित्य साहित्य का प्रचार प्रसार करने और विश्वभर में उसकी पहुँच बनाने में हिंदी साहित्य से सम्बंधित वेबसाईट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं. साहित्यकार को पाठकों तक और पाठकों को साहित्यकारों तक, पाठकों को पाठकों तथा साहित्यकारों को साहित्यकारों तक पहुँचाने का काम यही वेबसाईट कर रहीं हैं. हिंदीइन्टरनेट.कॉम (http://www.hindiinternet.com/2008/08/blog-post_4275.html) के मुताबिक हिंदी साहित्य की प्रमुख वेबसाइट्स निम्नलिखित हैं 



1. अभिव्यक्ति, एक पत्रिका - http://www.abhivyakti-hindi.org

2. हिन्दी नेस्ट - http://www.hindinest.com/index.htm

3. भारत दर्शन - http://www.bharatdarshan.co.nz/

4. यह भी खूब रही - http://pryas.wordpress.com

5. उद्गम - http://www.udgam.com/

6. वर्चुअल हिन्दी - http://www.nyu.edu/gsas/dept/mideast/hindi/

7. मल्हार - http://www-personal.umich.edu/~pehook/mindex.html

8. बच्चों की कहानियाँ - http://www.4to40.com/folktales/default.asp?article=folktales_index

9. साहित्य कुञ्ज - http://www.sahityakunj.net

10. तद्भव पत्रिका - http://www.tadbhav.com

11. पिटारा - बच्चों का कहानियाँ - http://www.pitara.com/talespin/story_hindi.asp

बच्चों की कहानियों का संग्रह।

12. उज्ज्वल भट्टाचार्य - http://www.geocities.com/ujjwalkr/

13. हिन्दी की सभी साहित्यिक विधाओं की रचना स्थल-http://www.srijangatha.com

14. कलायन पत्रिका - http://www.kalayan.org

15. सी डॅक चल पुस्तकालय - http://mobilelibrary.cdacnoida.com/indexHindi.html

16. हिन्दी इलेक्ट्रौनिक साहित्य मैगज़ीन - http://www.hindielm.co.uk

17. साहित्य अमृत - http://indianabooks.com/sahityaamrit/book.html

18. अन्यथा - http://www.anyatha.com

19. कफ़न - http://www-personal.umich.edu/~pehook/kafan.html

20. कविताएँ और उपन्यास - http://www.childplanet.com/hindi/index.html

21. हिन्दीसेवा.कॉम - http://www.hindisewa.com/

22. ताप्तिलोक - http://taptilok.com

23. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और उनकी पत्रकारिता - http://sampadakmahoday.blogspot.com/

24. हिन्दी साहित्य - http://krishnashankar.wordpress.com/

25. याहू गुट : हिन्दी फ़ोरम - http://groups.yahoo.com/group/hindi-forum/

26. साहित्य संग्रह - http://www.iiit.net/ltrc/script_html/

27. भगवद्गीता - http://www.geocities.com/simplypari_m/

28. अट्टहास - http://www.avadh.com/atthas/index.htm

29. ललित निबंधों का संग्रह स्थल - http://jayprakashmanas.info

30. वेबदुनिया साहित्य - http://www.webdunia.com/literature/

31. सुकीर्ति शेखर - http://sukirti-shekhar.blogspot.com

32. शून्य - http://hindionlinenovel.blogspot.com

33. छाया - http://www.angelfire.com/poetry/chaya/ 

34. याहू गुट : विश्वभाषा - http://groups.yahoo.com/group/vishwabhasha/



इनके अतिरिक्त भी तमाम ऐसी वेबसाइट्स हैं जो इस सूची में नहीं हैं. इन वेबसाइट्स के साथ-साथ फेसबुक जैसी सोशल मीडिया वेबसाईट पर हिंदी साहित्य लिखने-पढ़ने वालों के छोटे-बड़े सैकड़ों की संख्या में समूह हैं. इनमे से प्रमुख हैं – साहित्यकार संसद, हिंदी साहित्य, साहित्यशिल्पी, साहित्यिक मधुशाला – हाइकु कार्यशाला, साहित्य सृजन, नवोदित साहित्यकार मंच, साहित्य नभ, साहित्य सलिला आदि. फेसबुक के इन समूहों में सदस्यों की संख्या एक हजार से चौदह हजार तक है.



व्हाट्सऐप पर भी साहित्यिक समूह सैकड़ों-हजारों की संख्या में हैं. पर इस विषय में विश्वसनीय रूप से कुछ भी कहना इस लिए मुश्किल है कि हम व्हाट्सऐप के केवल उसी समूह के बारे में जान सकते हैं जिसके हम सदस्य हैं. भले ही वो हमने स्वयं बनाया हो अथवा किसी साथी ने समूह बनाकर हमें उसमे शामिल किया हो. भले ही व्हाट्सऐप के साहित्यिक समूहों की संख्या और उनके नामों की सूचि बनाना संभव नहीं है लेकिन फिर भी हमें यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि व्हाट्सऐप के माध्यम से सैकड़ों-हजारों साहित्यकार और उनके पाठक आपस में जुड़े हुए हैं और अपनी रचनाओं को साझा कर रहे हैं.



वेबसाइट्स और सोशल मीडिया पर समूहों की संख्या और उनके सदस्यों की संख्या से ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि न्यू मीडिया के माध्यम से समकालीन साहित्य की पहुँच का कितना अधिक विस्तार हो रहा है.



न्यू मीडिया में समकालीन साहित्य की उभरती प्रवृत्तियाँ 

देशकाल.कॉम पर संजय द्विवेदी लिखते हैं, “नई तकनीक ने साहित्य का कवरेज एरिया तो बढ़ा ही दिया ही साथ ही साहित्य के अलावा ज्ञान-विज्ञान के तमाम अनुशासनों के प्रति हमारी पहुंच का विस्तार भी किया है। दुनिया की तमाम भाषाओं में रचे जा रहे साहित्य और साहित्यकारों से अब हमारा रिश्ता और संपर्क भी आसान बना दिया है। भारत जैसे महादेश में आज भी श्रेष्ठ साहित्य सिर्फ महानगरों तक ही रह जाता है। छोटे शहरों तक तो साहित्य की लोकप्रिय पत्रिकाओं की भी पहुंच नहीं है। ऐसे में एक क्लिक पर हमें साहित्य और सूचना की एक वैश्विवक दुनिया की उपलब्धता क्या आश्चर्य नहीं है। हमारे सामने हिंदी को एक वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करने की चुनौती शेष है।“ 



न्यू मीडिया एक नया माध्यम है. इसे प्रयोग करने वाले भी अधिकांशत: नई पीढ़ी के नए लोग या फिर फिर पुरानी पीढ़ी के नई सोंच वाले लोग हैं. इसके माध्यम से मिलने वाले अभिव्यक्ति के मंच – वेबसाईट, ब्लॉग, फेसबुक, ट्विटर आदि भी नए हैं. तो इस नए माध्यम ‘न्यू मीडिया’ के द्वारा उपलब्ध करवाए गए नए मंचो पर अधिकांशत: नए प्रयोक्ताओं द्वारा जिस साहित्य का सृजन, पठन, श्रवण और दर्शन हो रहा है उसमे उभरने वाली अधिकांश प्रवृत्तियाँ भी निसंदेह नई ही हैं फिर चाहे वो कथ्य के स्तर पर हो या फिर शिल्प के स्तर पर, भाषा के स्तर पर हो या फिर पहुँच के स्तर पर. न्यू मीडिया में समकालीन साहित्य में उभरती हुई कुछ मुख्य प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं :-



1. प्रकाशक/संपादक पर निर्भरता से मुक्ति : न्यू मीडिया का प्रयोक्ता साहित्यकार आज जब चाहे, जैसे चाहे, जिस भाषा में चाहे अपनी रचना का प्रकाशन कर सकता है. उसे किसी संपादक के आगे दीन-हीन बनने या निवेदन करने की आवश्यकता नहीं है. न्यू मीडिया की इस प्रवृत्ति ने सैकड़ों-हजारों युवा लेखकों, कवियों, पत्रकारों को मंच प्रदान किया है. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के समय में यदि न्यू मीडिया होता या ‘निराला’ आज के समय में होते तो उन्हें अपनी कविता ‘जूही की कली’ को सरस्वती के संपादक द्वारा प्रकाशन योग्य न समझ के लौटा दिए जाने का दुःख यकीनन न होता. और न ही केदार नाथ सिंह को अपनी कविता ‘पांडुलिपियाँ’ में नए कवि की अप्रकाशित कविता की वेदना लिखनी पड़ती.



2. नितांत नए विषयों पर रचनाओं की स्वतंत्रता : न्यू मीडिया का प्रयोक्ता साहित्यकार अपनी रचना के लिए विषय चुनने को लेकर जितना स्वतंत्र आज है निश्चित रूप से वह इतना स्वतंत्र कभी नहीं था. अभिव्यक्ति में खतरे तो बाद की बात है पहले तो अपने चुनाव के विषय पर अभिव्यक्ति का मंच मिलना आवश्यक है. यह मंच दिया है न्यू मीडिया ने. और इस मंच पर ऐसे तमाम विषयों पर लिखा-पढ़ा जा रहा है जो पारंपरिक मीडिया में नितांत वर्जित विषय माने जाते रहे हैं.



3. विभिन्न प्रारूप : न्यू मीडिया के माध्यम से साहित्य को पाठ, ऑडियो, वीडियो आदि प्रारूपों में साहित्य तैयार किया जा सकता है और संप्रेषित किया जा सकता है. एक ही साहित्यिक कृति को कई फोर्मट्स का प्रयोग करके सुविधा पूर्वक अभिव्यक्त किया जाना न्यू मीडिया ने संभव किया है. इस स्वतंत्रता से जहाँ साहित्य को विभिन्न प्रारूपों में तैयार करने में आसानी होती है वहीँ विभिन्न प्रारूपों में एवं उनके मिश्रण से तैयार यह साहित्य आकर्षक और अधिक प्रभावशाली बन पड़ता है. डॉ चन्द्रप्रकाश मिश्र अपने लेख ‘नया मीडिया बनाम पुराना मीडिया’ में कहते हैं, - “नया मीडिया व्यापक है. वह पाठ्य, दृश्य और श्रव्य तीनों से युक्त है और समवेत प्रभाव अपने प्रयोक्ताओं पर डालता है जबकि पुराने मीडिया में इस संबंध में सीमा रेखा है.”



4. विभिन्न लिपियों में एक साथ प्रकाशन : न्यू मीडिया में यह एक विशेष उल्लेखनीय बात है कि बहुत से रचनाकार अपनी रचनाओं को एक से अधिक लिपियों में प्रकाशित कर रहे हैं. इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि ऐसा करने से रचना उन सभी पाठकों तक पहुँच जाती है जो उन विभिन्न लिपियों में से एक को भी जानता समझता है. रेख्ता.ओर्ग (rekhta.org) इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण वेबसाइट है जिस पर विभिन्न रचनाकारों की रचनाएं तीन लिपियों देवनागरी, रोमन और अरबी में प्रकाशित की जा रही हैं. 



5. तीव्र और आसान : मिसाईली गति की सूचना वाले इस न्यू मीडिया के युग में साहित्य को मूर्त रूप देना इतना आसान है की कोई भी साहित्यकार मात्र कुछ ही घंटों के प्रशिक्षण से इस योग्य हो जाता है कि वो न्यू मीडिया का उपभोक्ता होने के साथ-साथ उत्पादक भी बन सके. अपने लिखे साहित्य को ब्लॉग या वेबसाईट पर पोस्ट कर के ग्रुप ईमेल और सोशल नेटवर्किंग साईट्स के माध्यम से उसके प्रचार प्रसार के द्वारा अपनी रचना को अधिकाधिक ऑडियंस तक पहुँचाना अब बच्चों के खेल जैसा है. और ये खेल विद्यालय, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र रचनाकार भी कुशलतापूर्वक खेल रहे हैं. 



6. भौतिक सीमा-बंधन से मुक्ति : न्यू मीडिया के युग में पत्रकारिता एवं साहित्य रचना कहीं से भी बैठ कर जा सकती है. अब ये अनिवार्य नहीं कि साहित्यकार अपनी रचना को अपने पाठकों तक पहुंचाने के लिए प्रकाशकों के दफ्तर के चक्कर लगता रहे या फिर पत्राचार करता रहे. पाठकों तक अपनी रचना पहुंचाने का यह काम अब साहित्यकार अपने घर के ड्राईंग-रूम, बैड-रूम, यहाँ तक कि वाश-रूम में बैठकर भी कर सकता है. न्यू मीडिया के इस दौर में एक साहित्यकार विश्वभर में फैले अपने पाठकों तक अपनी रचना पालक झपकते ही पहुंचा सकता है। 



7. तत्काल प्रतिक्रिया : साहित्यकार की किसी रचना पर उसके पाठकों क़ी क्या प्रतिक्रिया रही, पारंपरिक मीडिया में ये जानना तत्काल संभव नहीं था. प्रतिक्रिया या प्रभाव जानने में काफी समय और संसाधनों की आवश्यकता होती थी. परन्तु न्यू मीडिया ने साहित्य पर तत्काल प्रतिक्रिया जानना संभव बना दिया है. साहित्यिक रचना के पोस्ट होते ही उस पर प्रतिक्रियाएँ आने लगती है. ‘जनशब्द’ नामक ब्लॉग पर देवेन्द्र कुमार देवेश कहते हैं, - “...जहाँ एक शीर्षक अथवा विषय पर उपलब्ध सभी अभिव्यक्‍तियों की एक साथ जानकारी प्राप्त करना संभव है, जहाँ किसी अभिव्यक्ति पर तत्काल प्रतिक्रिया देना ही संभव नहीं, बल्कि उस अभिव्यक्ति को उस पर प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं के साथ एक जगह एक साथ देख पाना भी संभव है.”



8. पाठक तक पाठक की पहुँच : आज के पाठक को किसी रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए डाक खाने से पोस्ट कार्ड या अंतर्देशीय पत्र लाने और उसे पत्र-पेटिका में डालने जाने का कष्ट उठाने की आवश्यकता नहीं रही. न्यू मीडिया का एक विशेष गुण यह है कि इसके माध्यम से किसी रचना का पाठक उस रचना के अन्य पाठकों क़ी व्यक्त प्रतिक्रियाओं और विचारों को भी जान सकता है जो कि पारंपरिक मीडिया में संभव नहीं था. इसका फायदा और नुकसान अपनी जगह है. रचना पर प्रतिकृया देना अब आसान है और त्वरित भी। 



9. एक साथ कई मंच : न्यू मीडिया का प्रयोगकर्ता साहित्यकार अपनी रचना को न्यू मीडिया के कई मंचों के माध्यम से अपने पाठकों एवं श्रोताओं तक पहुंचा सकता है. उदहारण के लिए न्यू मीडिया का प्रयोगकर्ता साहित्यकार अपनी रचना को ब्लॉग पर पोस्ट करके उसे फेसबुक, व्हाट्सऐप और ट्विटर के माध्यम से जुड़े हुए लोगों तक पहुंचा सकता है.



10. साहित्य-अतिरेक : आज न्यू मीडिया के प्रयोक्ता पाठक के पास साहित्य-अतिरेक की स्थिति है. साहित्यिक रचनाएँ इतनी अधिक हैं कि पाठक के लिए यह तय कर पाना दुष्कर हो जाता है कि किस रचना को पढे और किसे छोड़े?. इस कारण अधिकांश ऐसी रचनाएँ होती हैं जो कि बहुत कम पाठकों द्वारा पढ़ी जाती हैं।



11. साहित्यिक चोरी : समकालीन साहित्यकार को न्यू मीडिया में अक्सर साहित्यिक चोरी का शिकार होना पड़ता है. अक्सर यह सुनने में आता है कि किसी एक की रचना किसी दूसरे ने अपने नाम से पोस्ट कर दी. बहुत से मामलों में तो यह पता ही नहीं लग पाता कि रचना का वास्तविक लेखक लेखक कौन है. इस शोध-पत्र का लेखक स्वयं न्यू मीडिया में हो रही इस साहित्यिक चोरी का शिकार हुआ है. 



12. साहित्य के साथ छेड़-छाड़ : साहित्य के साथ छेड़-छाड़ करना न्यू मीडिया ने काफी आसन कर दिया है. न्यू मीडिया में साहित्यकार द्वारा रचित रचना के साथ छेड़-छाड़ के मामले भी सामने आते हैं. रचना को कुछ ऐसे आपत्तिजनक बदलाव कर दिए जाते हैं जिससे रचनाकार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है. जिस किसी ने आमिर खान अभिनीत हिंदी फिल्म 3 इडियट्स देखी है उन्हें अवश्य याद होगा कि दो शब्दों को बदल देने से कैसे अर्थ का अनर्थ हो गया था. 



13. साहित्य का गिरता स्तर : हालांकि इस बारे में कोई एक राय नहीं है कि न्यू मीडिया में आने वाला समकालीन साहित्य निम्न स्तर का है और पारंपरिक मीडिया के माध्यम से सामने आने वाला साहित्य उच्च स्तर का. एक बात जो गौर करने वाली है वो यह कि करीब एक दशक पहले जब हिंदी रचनाकार न्यू मीडिया में साहित्य रचना शुरू कर रहे थे तो ऐसे कई स्थापित साहित्यकार थे जिन्होंने उस न्यू मीडिया के माध्यम से अभिव्यक्त होने वाले साहित्य को निम्न स्तर का कहा. वो और बात है कि समय बीतते-बीतते उन स्थापित साहित्यकारों में से अधिकांशत: खुद भी न्यू मीडिया की शरण में आ गए और दिल्ली के एक कवि, लेखक और शिक्षक डॉ हरीश अरोड़ा को लिखना पड़ा ‘ब्लॉगम शरणम गच्छामि’ 



सन्दर्भ :

1. पत्रकारिता का बदलता स्वरुप और न्यू मीडिया, डॉ हरीश अरोड़ा (स.), पृष्ठ : 16 व 18

2. वही, पृष्ठ : 50

3. हिंदी ब्लॉगिंग स्वरुप व्याप्ति और संभावनाएँ, डॉ मनीष कुमार मिश्रा (स.) पृष्ठ : 83

4. www.google.com

5. www.hi.wikipedia.org/wiki/न्यू_मीडिया, 19 मार्च 2016, 14:10

6. https://patrakaritajagat.wordpress.com/2012/11/16/न्यू-मीडिया-क्या-है

7. https://en.wikipedia.org/wiki/New_media, 19 मार्च 2016, 14:14

8. www.newmedia.org/what-is-new-media.html, 4 मार्च 2016, 10:02

9. www. hi.wikipedia.org/wiki/समकालीन , 4 मार्च 2016, 11:10 

10. www.hi.wikipedia.org/w/index.php?search=समकालीन+साहित्य&title=विशेष%3Aखोज&fulltext=1, 4 मार्च 2016, 11:12

11. www.hi.wikipedia.org/w/index.php?search=समकालीन+हिंदी+साहित्य&title=विशेष%3Aखोज&fulltext=1, 4 मार्च 2016, 11:14

12. http://www.hindiinternet.com/2008/08/blog-post_4275.html

13. http://samixa.blogspot.in/2011/07/blog-post_15.html

14. http://mukulmedia.blogspot.in

15. http://janshabd.blogspot.in/2011/06/blog-post_29.html

16. http://www.deshkaal.com/Details.aspx?nid=17820098385597

[साभार: जनकृति अंतरराष्ट्रीय पत्रिका]



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