पूर्णिमा वर्मन जी की रचनाएँ
आज
अचानक सड़कों पर दंगा-सा है
साथ
हमारे मौसम बेढंगा-सा है
.
तेज़
हवाऎँ बहती हैं टक्कर दे कर
तूफ़ानों
ने रोका है चक्कर दे कर
दॄढ
निश्चय फिर भी कंचनजंघा-सा है
झरनों
का स्वर मंगलमय गंगा-सा है
निकल
पड़े हैं दो दीवाने यों मिलकर
सावन
में ज्यों इंद्रधनुष हो धरती पर
उड़ता
बादल अंबर में झंडा-सा है
पत्तों
पर ठहरा पानी ठंडा-सा है
.
जान
हवाओं में भरती हैं आवाज़ें
दौड़
रही घाटी के ऊपर बरसातें
हरियाली
पर नया रंग रंगा-सा है
दूर
हवा में एक चित्र टंगा-सा है
.
भीगी
शाम बड़ी दिलवाली लगती है
चमकती
बिजली दीवाली-सी लगती है
बारिश
का यह रूप नया चंगा-सा है
खट्टा-
मीठा दिल में कुछ पंगा-सा है
.
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सावनी
जलधार
.
फिर
पड़ेगी सावनी जलधार मन अच्छा लगेगा
फिर
हँसेंगे हम सुबह से शाम तक अच्छा लगेगा
.
छुट्टियाँ
हैं दौड़ जाएँ हम नदी के पार तक
कश्तियाँ
फिर ले चलें मझधार तक अच्छा लगेगा
.
खींचती
मन गंध बेला की धरा सोंधी हुयी है
आज
रस्ता जामुनों के बाग तक अच्छा लगेगा
.
एक
कोने से शुरू कर के शहर सिर पर उठाएँ
पागलों
सा शोर फिर बाज़ार तक अच्छा लगेगा
.
कौन
जाने शाम आए तो हमें पाए न पाए
दोपहर
में ही बहुत कर जाएँ हम अच्छा लगेगा
.
ये
फुहारें ये समीरण आज है कल हो न हो
आओ
इसमें डूब जाएँ साल भर अच्छा लगेगा
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एक
लंबी रचना- बूँदों में
.
झिलमिल
झिलमिल
रिमझिम
रिमझिम
सपनों
के संग
हिल-मिल
हिल-मिल
बूँदों
में बसता है कोई
आहट
में सजता है कोई
धीरे
धीरे इस खिड़की से
मेरी
साँसों के बिस्तर पर
खुशबू
सा कसता है कोई
.
हौले
हौले
डगमग
डोले
मन
संयम के
कंगन
खोले
कलियों
सा हँसता है कोई
मौसम
सा रचता है कोई
रातों
की कोरी चादर पर
फिर
सरोद के तन्मय तन्मय
तारों
सा बजता है कोई
.
टिपटिप
टुप टुप
लुकछिप
गुपचुप
मन
मंदिर के
आंगन
में रुक
कहने
को छिपता है कोई
पर
फिर भी दिखता है कोई
वाष्प
बुझे धुँधले काँचों पर
साम
ऋचा सा मद्धिम मद्धिम
यादों
को लिखता है कोई
.
वही
कहानी
दोहराता
है
बार
बार
आता
जाता है
मस्ताना
मादल है कोई
आँखों
का काजल है कोई
बारिश
को अंजुरी में भर कर
ढूँढ
रहा वन उपवन में घर
सावन
का बादल है कोई
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बारिश
.
शहर
में हर ओर बारिश
गिर
रही घनघोर बारिश
.
चमचमाती
बादलों में
बिजलियों
की डोर बारिश
.
छतरियों
पर बज रही है
आज
मस्तीखोर बारिश
.
पत्तियों
से जूझती है
पेड़
को झकझोर बारिश
.
इधर
बारिश उधर बारिश
है
खुशी का शोर बारिश
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मसखरे
.
इधर
मसखरे उधर मसखरे
सर्कस
में हर तरफ मसखरे
.
सबको
लोटमपोट हँसाते
हाथ
मिलाते कड़क मसखरे
.
जगमग
जगमग कपड़े पहने
तड़क-भड़क
में मस्त मसखरे
.
अजब
हुनर के जादूगर हैं
अभिनेता
बेधड़क मसखरे
.....................................................
बोगनविला
.
फूला
मुँडेरे पर बोगनविला
ओ
पिया!
.
धूप
घनी
धरती
पर
अंबर
पर छाया ज्वर
तपा
खूब अँगनारा
विहगों
ने भूले स्वर
लेकिन
यह बेखबर
झूला
मुंडेरे पर बोगनविला
ओ
पिया!
.
जीना
बेहाल
हुआ
काटे
कंगना, बिछुआ
काम
काज भाए नहीं
भाए
मीठा सतुआ
लहराए
मगर मुआ
हूला
मुंडेरे पर बोगनविला
ओ
पिया!
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