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जब तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा -ओंम प्रकाश नौटियाल

जब तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा  -ओंम प्रकाश नौटियाल,
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झूठ बोलकर  तुम्हारा
मन नहीं पछ्तायेगा,
जिन्दगी का थोड़ा जब
तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
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ढेर से कूड़े के सुन
इक नवजात का  क्रंदन,
माँ का ममत्व  ढूंढता
क्षण क्षीण होता रुदन
हृदय किंचित व्यथित कभी
तुम्हारा  नहीं कर पायेगा,
जिन्दगी का थोड़ा जब
तजुर्बा तुम्हें हो जायेगा।
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नीरवता भंग करती,
अबला की चित्कार सुन,
माँ बहन का रास्ते में
खुले आम तिरस्कार सुन ,
कंपित जरा निष्ठुर मन,
मष्तिष्क को न कर पायेगा,
जिन्दगी का थोड़ा जब
तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
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सामने चले स्तुति राग
पीठ निंदा की कटार,
कथनी करनी के मध्य  
गहरी हो बड़ी दरार
रिश्ते निभाने का बस
एक ढ़ंग यह बन जायेगा।
जिन्दगी का थोड़ा जब
तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
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मुश्किल में फ़ंसे हुए
मित्र की दरकार भाँप,  
स्वार्थ , अनिच्छा को शुद्ध
कृत्रिम बहानों से ढाँप ,
विवशता का राग खूब
गाना तुमको आ जायेगा।
जिन्दगी का थोड़ा जब
तजुर्बा तुम्हे हो जायेगा।
-ओंम प्रकाश नौटियाल,बडौदा मोबा. 9427345810
(पुस्तक "साँस साँस जीवन" से-:सर्वाधिकार सुरक्षित )

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