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'एक और अंतरीप' (अप्रैल-जून, 2017): अंक समीक्षा- भगवानदास मोरवाल



जो समझते हैं कि मैं, दुनिया के लायक हूँ नहीं l
वे कहेंगे बाद में, दुनिया मेरे काबिल नहीं ll 
(हेतु भारद्वाज)

इन दिनों जिस तरह एक के बाद हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकारों पर केन्द्रित पत्रिकाओं के अंक आ रहे हैं, वे यह दर्शाते हैं कि हिंदी समाज अपने लक्षित और अलक्षित दोनों तरह के लेखकों के प्रति कितना संवेदनशील है l यह बात दूसरी है कि जाने-अनजाने कभी-कभी हम 'अपने' ही लेखकों कि उपेक्षा भी कर बैठते हैं l

ऐसा ही अंक जयपुर, राजस्थान से पिछले 23 वर्षों से निरंतर प्रकाशित पत्रिका 'एक और अंतरीप' (अप्रैल-जून, 2017) ने हिंदी के अपने वरिष्ठ लेखक हेतु भारद्वाज पर केन्द्रित किया है l यह अंक बिना किसी शोर-शराबे, आत्म श्लाघा और आत्म प्रवंचना के, बेहद ख़ामोशी और संजीदगी के साथ तैयार किया गया है l लगभग 370 पृष्ठों के इस अंक की आत्मीय गंभीरता का अनुमान इसके सात भागों में विभाजित इन शीर्षकों से लगाया जा सकता है - आदमी जैसा आदमी : क़द-काठी, आदमी जैसा आदमी : काम-काज, आदमी जैसा आदमी : आदमी से बतकही, आदमी जैसा आदमी : ख़तो-किताबत, आदमी जैसा आदमी : लेखन की बानगी, आदमी जैसा आदमी : परिजनों के बीच और आदमी जैसा आदमी : कुछ और पन्ने l यह अंक एक लेखक के उन विभिन्न पक्षों से परिचित कराता है, जिनके बारे में हम अक्सर नहीं जानते हैं l

नि:संदेह 'एक और अंतरीप' (अप्रैल-जून, 2017) के इस संग्रहणीय, पठनीय, व्यवस्थित और आत्मीय बनाने का श्रेय इसके प्रधान संपादक प्रेम कृष्ण शर्मा तथा इसके संपादक डॉ. अजय अनुरागी व डॉ. रजनीश को जाता है l

आदमी जैसे आदमी इस लेखक से मेरा पहला परिचय, जहां तक मुझे याद है 'हंस' के दफ़्तर में राजेन्द्र यादव के साथ हुई थी l यह अतिश्योक्ति नहीं है बल्कि एक निर्मम सत्य है कि इधर हम लेखकों में जिस तेज़ी के साथ अपनापे की नमी सूखती जा रही है, हेतु भारद्वाज जी में वह नमी पूरी तरह बची हुई है l कल शाम को पालम के इंद्रा पार्क में हेतु जी अपनी बेटी मनीषा के पास आये हुए थे, यही इनसे मुलाक़ात हुई l दिल्ली में हेतु जी जब भी अपनी बेटी के पास आते हैं, इनसे यहीं मुलाक़ात होती है l

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