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कामरेड वरवर राव से विशद कुमार की बातचीत

  
कामरेड वरवर राव से विशद कुमार की बातचीत

1940 में आंध्र-प्रदेश के वारंगल में जन्मे वरवर राव ने कोई 40 सालों तक कॉलेजों में तेलुगू साहित्य पढ़ाया है और लगभग इतने ही सालों से वे भारत के सशस्त्र माओवादी आंदोलन से भी जुड़े हुए हैं। वैसे वरवर राव को भारतीय माओवादियों के संघर्ष का प्रवक्ता माना जाता है, सरकारी दावे के अनुसार वे सशस्त्र माओवादियों के नीतिकार भी हैं, परंतु वरवर राव  अपने को क्रांतिकारी कवि कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं। सत्ता के खिलाफ लिखने-पढ़ने, संगठन बनाने और पत्र-पत्रिकायें प्रकाशित करने वाले वरवर राव टाडा समेत देशद्रोह के आरोप में लगभग 10 वर्षों तक जेल में रहे हैं और अभी लगभग 50 मामलों पर विभिन्न कोर्टों में सुनवाई चल रही है तो कुछ मामलों पर जमानत पर हैं। 2001-02 में तेलुगू देशम और 2004 में कांग्रेस पार्टी ने जब माओवादियों से शांति वार्ता की पेशकश की तो वरवर राव को मध्यस्थ बनाया गया था। नक्सलबाड़ी आंदोलन की 50वीं वर्षगांठ पर झारखंड के गिरिडीह में आयोजित समारोह में शिरकत करने आए क्रान्तिकारी कवि, लेखक, पूर्व शिक्षक, क्रान्तिकारी लेखक संघ के संस्थापक एवं आरडीएफ के अध्यक्ष 76 वर्षीय कामरेड वरवर राव का विशद कुमार से एक बातचीत :—

विशद कुमार:— नक्सलबाड़ी आंदोलन के 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं, आप इसे कैसे देखते हैं?
वरवर राव:— दुनिया के आंदोलनों के इतिहास में नक्सलबाड़ी आंदोलन का इतिहास सबसे लंबा रहा है। भारत में तेलंगाना का आंदोलन भी 1946 से 1951 तक मात्र पांच साल ही टिक पाया था। जिसका कारण यह था कि वह मात्र दो जिलों तक ही सिमट कर रह गया था। जबकि नक्सलबाड़ी आंदोलन आज लगभग पूरे देश में अपनी उपस्थिति दर्ज कर चुका है, आपने देखा होगा पूरे देश में विभिन्न संगठनों द्वारा इसका 50वां वर्षगाठ मनाया जा रहा है।

विशद कुमार:— आपको लगता है कि नक्सलबाड़ी आंदोलन का रास्ता सही है?
वरवर राव:— एकदम सही है, जनता का शासन स्थापित करने बस यही एक रास्ता है और यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक जनता का शासन पूरे देश पर कायम नहीं हो जाता। हम सरकार बनाने का सपना नहीं देख रहे हैं बल्कि आदिवासी, दलित, शोषित, पीड़ित एवं छोटे मझोले किसानों के हक अधिकार के लिए आंदोलित हैं।


विशद कुमार:— इस आंदोलन की अब तक की सफलता क्या है?
वरवर राव :— ग्राम राज्य की सरकार का हमने सारंडा, जंगल महल, नार्थ तेलंगाना और ओडीसा के नारायण पटना में गठन कर दिया है। दण्डकारण्य में जनताना सरकार पिछले 12 वर्षों से काम कर रही है। जहां एक करोड़ लोग रह रहे हैं। जिनके समर्थन से पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी बना है। जनताना सरकार आदिवासियों, दलितों, छोटे व मझोले किसानों का मोर्चा है और इस सरकार ने वहां बसने वाले सभी परिवारों को बराबर-बराबर जमीन बांट दी है। जिसका नतीजा यह है कि जो आदिवासी पहले केवल प्रकृति पर निर्भर था, कभी खेती के बारे जानता तक नहीं था, वह अब तरह-तरह की सब्जियां व अनाज की उपज कर रहा है। इन किसानों द्वारा मोबाइल स्कूल, मोबाइल हॉस्पिटल चलाया जा रहा है। जनताना सरकार की क्रांतिकारी महिला संगठन में एक लाख से अधिक सदस्य हैं, सांस्कृतिक टीम चेतना नाट्य मंच में 10 हजार सदस्य हैं, जो एक मिसाल है, क्योंकि किसी भी बाहरी महिला संगठन एवं सांस्कृतिक टीम में इतनी बड़ी संख्या में सदस्य नहीं हैं। वहां अंग्रेजों से लड़ने वाले क्रांतिकारी गुण्डादर के नाम पर पीपुल्स मिलिशिया (जन सेना) है। जनताना सरकार माओत्से तुंग के तीन मैजिक वीपन्सपार्टी, यूनाइटेड फ्रंट और सेना की तर्ज पर चल रही है।
अत: माओवादी आंदोलन ही क्रांति ला सकता है।

विशद कुमार:— इस आन्दोलन में आपका वाम जनवादी भागीदारी पर भी कोई स्टैड है?
वरवर राव :— माओवादी आंदोलन के साथ वाम जनवादी भागीदारी में वे लोग आ सकते हैं जो सत्ता से दूर हैं, उनके साथ हम फ्रंट बना सकते हैं। जैसे हमने आंध्रा व तेलंगाना में तेलंगाना डेमोक्रेटिक फोरम में सीपीआई, सीपीएम, एमएल के अलग अलग ग्रुप सहित आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक, छात्र आदि के 10 संगठन शामिल किया है।

विशद कुमार:— चीन की कम्युनिस्ट सरकार पर आपका नजरिया?
वरवर राव :— दुनिया में कहीं भी समाजवाद नहीं है। रूस व चीन साम्राज्यवादी देश बन गए हैं, नेपाल से आशा थी वह भी समाप्त हो गया है, वह भी भारत का उपनिवेश बन गया है। भारत का अमेरिका के साथ गठबंधन यहां के आदिवासियों व दलितों के लिए काफी खतरनाक है। अमेरिका की नजर हमारे जंगल, पहाड़ व जमीन पर है, जहां काफी प्राकृतिक संपदाएं हैं। जिसे लूटने की तैयारी में अमेरिका मोदी सरकार को हथियार और जहाज दे रहा है जिससे आसमान से जंगलों को निशाना बनाकर वहां से आदिवासियों को भगाया जा सके और उस पर कब्जा करके मल्टीनेशनल और कारपोरेट कंपनियों को दिया जा सके। जंगल से आदिवासियों को बेदखल करने का अभियान मोदी सरकार नक्सल सफाया के नाम पर चला रही है। मेरा मानना है कि  देश को नवजनवाद की जरूरत है, ऐसी स्थिति में नवजनवाद केवल नक्सल आंदोलन से ही आ सकता है, जो सशस्त्र संघर्ष से ही संभव है।

विशद कुमार:— हाल में यूपी में आक्सीजन के अभाव में 72 बच्चे मर गए, आपकी प्रतिक्रिया?
वरवर राव :— आजादी के 71 वर्षों बाद भी जिस देश में बच्चों के लिये आक्सीजन नहीं हो जो प्राकृतिक है। मॉ के पेट में बच्चों का पूर्ण विकास होता है और उनके विकास के लिये सारी मौलिक चीजें मॉ के पेट में मिलती हैं। जबकि बाहर आने पर आक्सीजन के बिना वे मरे जा रहे हैं, यह कितना शर्मनाक है अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। अजीब कॉम्बिनेशन है कि आजादी के 71 साल 72 बच्चों की मौत और झारखण्ड में 70 इंडस्ट्रीज को जमीन आवंटन और आनलाईन उद्घाटन करने की योजना।

विशद कुमार:— देश में उद्योग लगेगा तभी न लोगों को रोजगार मिलेगा, फिर इन कंपनियों से परहेज क्यों?
वरवर राव :— मल्टीनेशनल कम्पनियां या कॉरपोरेट कम्पनियां पूरी तरह हाई टेक्नोलॉजी पर आधारित हैं। एक प्रतिशत श्रम पर काम करवाएंगी यानी कम से कम श्रम और अधिक से अधिक मुनाफे का इनकी थ्योरी है, ऐसे में रोजगार की संभावना कहां है। अत: साफ है कि इनके आने से श्रम बेकार पड़ जायेगा और जो आदिवासी, दलित छोटे किसान अपने श्रम को कृषि में लगाकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते रहे हैं वे बेकार हो जाएंगे, भूखे मरने की नौबत आ जएगी। मतलब कि श्रमिक वर्ग की रोटी का जुगाड़ समाप्त हो जायेगा। यह कौन सा विकास है।

विशद कुमार:— मोदी सरकार को आप कैसे देखते हैं?
वरवर राव :— सब तो साफ दिख रहा है, किस तरह गौ हत्या, बीफ, देशभक्ति का नाटक करके संघ के इशारे पर लोगों को आपस में लड़वाने का काम हो रहा है। देश के टुकड़े करने की योजना पर मोदी के लोग काम कर रहे हैं और यही लोग आरोप लगा रहे हैं दूसरों पर।

विशद कुमार:— इस संसदीय व्यवस्था पर आपकी टिप्पणी?
वरवर राव :— मैं ऐसे लोकतंत्र के संसदीय रास्ते पर कतई भरोसा नहीं कर सकता जिस लोकतंत्र के संसदीय रास्ते के ही कारण 4000 लोगों की हत्या करवाने वाला मोदी आज देश का प्रधानमंत्री बना हुआ है। वहीं इतिहास गवाह है कि इन्दिरा की हत्या के बाद 3 से 4 हजार सिखों की हत्या का ईनाम राजीव गांधी को प्रधानमंत्री रूप में मिला। यह इसी लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली की देन है। फिर हम ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था की संसदीय प्रणाली पर कैसे भरोसा करें?

विशद कुमार:— आप माओवाद के समर्थक हैं और माओवाद जनता के शासन की बात करता है, दूसरी तरफ बड़ी बड़ी कंपनियों से लेवी वसुलने का माओवादियों पर आरोप है, अप क्या कहेंगे?
वरवर राव :— लेवी के पैसे से संगठन चलता है, उससे हथियार खरीदी जाती है, आंदोलन के लिए पैसों की जरूरत होती है जो सारे संगठन करते हैं। सत्ता में बैठे लोग इसे चंदा कहते हैं, हमारे और उनमें मौलिक फर्क यह है कि वे लोग कारपोरेट की दलाली के लिये, उनकी ही सुरक्षा के लिए उनसे पैसा लेते हैं और माओवादी उनसे लेवी लेकर उनके ही खिलाफ जनता की हक की लड़ाई लड़ते हैं। हमें भगत सिंह की विरासत के रास्ते पर चलना होगा तभी देश में जनता का शासन सम्भव है।
विशद कुमार: - मोदी सरकार कह रही है माओवादी कमजोर हुए है। आप क्या कहना चाहेंगे?
वरवर राव : - अगर ऐसा यह मान रहे हैं तो फिर वे आन्दोलनकारी जनता के बीच पारा मिलिट्री फोर्स क्यों भेज रहे हैं ? यह इस तरह के बयान देकर ऐसे क्रांतिकारी विचारों को भयभीत करके जिनसे अप्रत्यक्ष हमें समर्थन मिलता है उसे समाप्त करना चाह रहे हैं।

विशद कुमार, स्वतंत्र पत्रकार , 9234941942

[साभार: जनकृति पत्रिका, सयुंक्त अंक 30-32, वर्ष 2017]

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