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'पाठ-पुनर्पाठ': राजकमल प्रकाशन



प्रिय पाठक,
लॉक डाउन के 37वें दिन 'पाठ-पुनर्पाठ' की तेरहवीं किश्त भेजी जा रही है। लॉक डाउन में सबसे सक्रिय मृत्यु है। जीवन सन्नाटे में है। उम्मीद और आशंका के बीच डर की मकड़ी जाले बुन रही है। उसी पर साँसों का आना-जाना है। जाने कब क्या हो जाए!
हम आपको नियमित रचनाएँ भेेज रहे हैैं। सम्भव है, कुछ आपने पहले से पढ़ी हुई हों, कुछ अब आपके सामने आ रही हों। हर अच्छी रचना हर नए पाठ में कुछ और तरह से खुलती है। अगर दोबारा पढ़ने में वह रुचिकर न हो तो वह सिर्फ़ टाइम पास की चीज है। अपवाद नियम से अलग होते हैं। कई गम्भीर पाठक ऐसे भी होते हैं जो अपनी प्रिय से प्रिय किताब भी दोबारा पलटना पसंद नहीं करते। बहरहाल, हमारी कोशिश है कि हर आस्वाद के पाठकों के लिए कुछ-न-कुछ उपलब्ध कराया जाए। इसलिए रोज नई पुस्तिका भेजी जाने वाली इस निःशुल्क सुविधा के बारे में कृपया आप अपने साहित्यप्रेमी मित्रों और रिश्तेदारों को भी बताएँ। जो साहित्य के नियमित पाठक नहीं हैं, कृपया उन्हें भी प्रेरित करें।
आपसे एक विनम्र अनुरोध है, इन पुस्तिकाओं को किसी को फॉरवर्ड न करें। आप जिन्हें ये पढ़ाना चाहती/चाहते हों, उन्हें राजकमल प्रकाशन समूह के व्हाट्सएप्प ब्रॉडकास्ट नम्बर +91 98108 02875 से जुड़ने के लिए प्रेरित करें।
अच्छे विचारों और रचनाओं के लिए राजकमल प्रकाशन समूह से सीधे निरंतर सम्पर्क में बने रहना आपके या किसी के लिए भी असुविधाजनक नहीं होगा। सिर्फ़ आप इस व्हाट्सएप्प नम्बर पर कॉल/वीडियो कॉल करने से बचें। इससे हमारी टीम को काम करने में बाधा पहुँचती है। यहाँ हम आपसे केवल मैसेज की अपेक्षा रखते हैं।
पढ़ना मनोरंजन भर नहीं है और न सिर्फ़ ज्ञानवर्द्धन की जरूरत है; बल्कि यह वैचारिक उलझनों, तमाम तरह की चिंताओं और आशंकाओं से पार पाने में सहायक एक मनोवैज्ञानिक उपचार की तरह भी है।
पाठ-सामग्री के चयन में हम हर आस्वाद और हर विधा की रचना को शामिल करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। इसे आप उदार भाव से अपनी पसंद-नापसंद को नए सिरे से समझने का अवसर मानें। हम भी इसे परस्पर जुड़ाव और संवाद के एक अवसर की तरह ही देख रहे हैं। हम पुस्तिकाओं में केवल उन्हीं रचनाओं को शामिल कर रहे हैं, जिनके इस्तेमाल का कॉपीराइट हमारे पास है। अपने पढ़ने से अलग इनका अन्यत्र किसी भी रूप में इस्तेमाल करने से पहले आप हमारे यहाँ सम्पर्क करें। बग़ैर लिखित अनुमति के इन रचनाओं को किसी संकलन/चयन/ऑडियो-वीडियो पाठ वगैरह में न लें।
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शुभकामनाओं के साथ,
सम्पादकीय निदेशक
राजकमल प्रकाशन समूह

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