आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी: सृष्टि एवं दृष्टि ( दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबिनार) आमंत्रण
मान्यवर/मान्यवरा,
निवेदन है कि हिन्दी विभाग राँची विश्वविद्यालय राँची तथा विश्व संस्कृत हिन्दी परिषद् नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की 113 वी जयंती के अवसर पर 19-20अगस्त 2020 को दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन हो रहा है ।वेबीनार का विषय है:आचार्य
हजारी प्रसाद द्विवेदी:सृष्टि एवम् दृष्टि।
सामाजिक प्रतिबद्धता को साहित्य का मर्म मानने वाले आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी उन चिंतक आलोचकों में है;जिन्होंने साहित्य की नई मान्यताओ पर बल दिया ।उनका जन्म उ0प्र0 के बलिया जिलान्तर्गत ओझवलिया ग्राम में 19•8•1907 को हुआ और निधन 19•5•1979को हुआ ।आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के एक मौलिक सर्जक और प्रखर चिंतक हैं । उनकी प्रतिभा सागर की गहराई और आकाश की अनन्ता लिए हुए है ।संस्कृत के प्रकांड पंडित ,मध्य कालीन साहित्य के अधिकारी विद्वान,ज्योतिष शास्त्र के परमाचार्य,समस्त कलाओं के मर्मज्ञ,मानवीय संस्कृति के अद्भुत चितेरे,इतिहास के अप्रतिम कलाकार,बहुश्रुत निबंधकार,कालजयी परम्परा के कथा शिल्पी,एक कृती समालोचक साहित्येतिहासकार के रूप में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने बहूआयामी व्यक्तित्व का जितना उदात्त परिचय दिया है, उनका निजी
व्यक्तित्व भी उतना ही समृद्ध रहा है ।
उनके निजी व्यक्तित्व और साहित्यकार व्यक्तित्व में विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती है ।आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को उनके साहित्यकार व्यक्तित्व ने महान बनाया है या द्विवेदी जी ने अपने व्यक्तित्व से उसे समृद्ध किया है - इसे पहचान पाना कठिन है ।इतना तो निस्संदेह कहा जा सकता है कि उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में अन्तर्विरोधी तत्व नहीं पाये जाते।वस्तुतः ये दोनो एक दूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं तथा एक दूसरे के पूरक हैं ।
यह दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय वेबीनार
इन्हीं बिन्दुओं पर विमर्श हेतु आयोजित है।
मनुष्यता को उर्ध्वगामी बनाने की शक्ति उनके साहित्य में है ।वे मनुष्य को साहित्य का लक्ष्य मानते हैं और मानवता के उन्नयन को ही सोदेश्य साहित्य की एकमात्र कसौटी सिद्ध करते हैं । मनुष्य को समाज की अक्षय
निधि मानते हुए उसे दुर्गति के पंक से बचाने के साहित्यिक प्रयोजन की चर्चा में उन्होंने लिखा है कि "समूची मनुष्यता जिससे लाभान्वित हो, एक जाति दूसरी जाति से घृणा न करे, एक
समूह दूसरे समूह को दूर न रखकर पास लाने का प्रयत्न करे,कोई किसी का मोहताज न हो,कोई किसी से वंचित न हो, इस महान उद्देश्य से ही हमारा साहित्य प्राणोदित होना चाहिए ।" आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की मान्यता है कि जो सत्य लोकहित में नही हो ,वह सत्य नही है ।वेबीनार की सफलता हेतु आपकी सहभागिता सादर प्रार्थित है ।
पंजीयन नि:शुल्क है और पंजीयन कराने तथा फीड बैक भरने वालो को ई प्रमाण पत्र मिलेगा ।कृपया लिंक से जुड़े ।https://docs.google.com/forms/d/1DOUrjJGrwi4I527d0gQVaGG_LunA9C2O2dSemTGzpZo/edit#responses
।विशेष जानकारी हेतु निम्नांकित चलभाष पर सम्पर्क कर सकते हैं:
डा हीरा नंदन प्रसाद:9431596001
9142177644
डा रामेश्वर साहु: 9931771000
डा कुमुदकला मेहता:9973278033
डा नागेन्द्र नारायण :9878571321
डा जे बी पाण्डेय:9431595318
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