शोध : अर्थ, परिभाषा और स्वरूप
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शोध : अर्थ, परिभाषा और स्वरूप
एकता रानी
शोध क्या है ?
आज
तक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो प्रगति हुई है, और जिन सुख-सुविधाओं का हम अनुभव कर रहे हैं उन सब का आधार
शोध है। शोध उस
प्रक्रिया का नाम है जिसमें बोधपूर्वक प्रयत्न से तथ्यों का संकलन कर सूक्ष्मग्रही
बुद्धि से उनका निरीक्षण विश्लेषण करके नए तथ्यों को ज्ञात किया जाता है।
अज्ञात वस्तुओं, तथ्यों व सिद्धांतों के निर्माण की बोधपूर्वक क्रिया ही शोध
है। शोध मानव-ज्ञान को
दिशा प्रदान करता है, ज्ञान-भंडार
को विकसित एवं परिमार्जित करता है। विषय विशेष के बारे में बोधपूर्ण तथ्यान्वेषण एवं यथासंभव
प्रभूत सामग्री संकलित कर सूक्ष्मतर विश्लेषण-विवेचन और नए तथ्यों, नए सिद्धांतों के उद्घाटन की प्रक्रिया अथवा कार्य शोध
कहलाता है।
यह भी देखें- शोध गंगा में हिंदी शोध कैसे खोजें
शोध से संबधित पुस्तक हेतु-
“ज्ञान-विज्ञान के सभी
क्षेत्र शोध की परिधि में आते हैं। जानने की इच्छा या जिज्ञासा ही नित्य नए ज्ञान या विज्ञान
से संबद्ध विकास के उदय का कारण बनती है। खोज, अविष्कार, नूतन विचार या चिंतन नयी उद्भावना, नया समीक्षण, अनुशीलन या मूल्यांकन इसी नैसर्गिक जिज्ञासा-वृत्ति की देन
है। ज्ञान या विज्ञान की
अज्ञात सामग्री को ज्ञात करना तथा ज्ञात सामग्री का शोधन,, समालोचन, मूल्यांकन
करना ही शोध कहलाता है।”1
मानव सदैव से एक
अध्ययनशील प्राणी है। उसमें
हर समय कुछ नया सीखने, कुछ नया
करने की ललक विद्यमान रहती है। शोध कार्य के पीछे मनुष्य का यही स्वभाव दिखाई पड़ता है।
शोध साधना है, जिसे कठिन तपस्या से ही प्राप्त किया जाता है।
जब सच्चाई अज्ञान के
तले दब जाती है तब मिथ्या की परत दर परत उस पर चढ़ती चली जाती है।
उन्ही परतों को हटाकर अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का पता लगाना
और विश्व को सत्य से परिचित करवाना शोध है। ज्ञात तथ्यों का पुन: परीक्षण शोध द्वारा किया जाता है।
तथ्य शोध में अनिवार्य और आवश्यक है। प्रत्येक तत्व का निज स्वरूप होता है। जैसे प्रत्येक अध्यापक की अध्यापन प्रणाली भिन्न होती है।
उसी प्रकार प्रत्येक तथ्य की अपनी अलग प्रकृति होती है
लेकिन तथ्य वायवीय नहीं होने चाहिए। मनगढ़ंत बातों की गुंजाइश सामान्य जीवन में होती है, साहित्य में होती है किंतु शोध में नहीं होती।
शोध में विशुद्ध तथ्य होंगे। तथ्य (fact) ऐसा कथन होता है जो वास्तविकता के अनुकूल हो या जिसे
साक्ष्य के प्रयोग द्वारा साबित करा जा सके। तथ्य की सच्चाई परखने के लिए उसके लिए
प्रमाण प्रस्तुत करे जाते हैं, जिनके
लिए मान्य सन्दर्भों व स्रोतों का प्रयोग करा जाता है।
यह देखें- हिंदी शोध सूची (पी-एच.डी. एवं एम.फिल.)
शरीर और मन की खुराक
केवल और केवल विचार है। यदि
विचार न हो तो जीवन नष्ट हो जाता है। जैसे भोजन दूषित हो जाता है वैसे ही विचार भ्रष्ट हो जाते
हैं। यदि किसी के विचार
भ्रष्ट हो जाते हैं तो दूसरों को अपने विचार नहीं बदलने चाहिए।
विचारों का हमेशा जीवित रखना चाहिए। शोध
बाह्य जगत से उत्पन्न होती है और अंतःकरण से पोषण प्राप्त करती है।
बाह्य जगत दृश्यमान है। मनुष्य के पास ज्ञानेंद्रियां हैं। बाह्य जगत का ज्ञान हम ज्ञानेंद्रियों से प्राप्त करते हैं।
मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति ने ही शोध-प्रक्रिया
को जन्म दिया है। जिज्ञासा
शोध का सबसे प्रमुख तत्त्व है। जिज्ञासा का अर्थ है जानने की इच्छा। मनुष्य के अंदर
जिज्ञासा आदिकाल से ही विद्यमान रही है। मनुष्य सदैव से ही क्या, कौन और कैसे के उत्तर खोजने में लगा रहा है। सबसे पहले पहिए
का आविष्कार हुआ था, जो
जिज्ञासा का ही परिणाम था। जिज्ञासा व्यापक होती रहती है। जिज्ञासा बहुआयामी होती है। जिज्ञासा समाधान चाहती है। जिस तरह भूख लगने पर हम खाना खोजते हैं ठीक उसी तरह पर
जिज्ञासा के होने से हम ज्ञान और जानकारी ढूंढते हैं। जिज्ञासा समाजशास्त्रीय
अध्ययन एवं विश्लेषण द्वारा शांत होती है। जिज्ञासा तथ्यों एवं विज्ञान के आधार पर खड़ी होती है| जिज्ञासा की व्यापकता श्रमशीलता से जुड़ी है।
निठल्ले लोग जिज्ञासा को व्यापक नहीं बना सकते।
जिज्ञासु व्यक्ति ही शोध करता है। सत्य की खोज या प्राप्त ज्ञान की परीक्षा हेतु व्यवस्थित
प्रयत्न करना ही शोध है। शोध
विकास का जनक है। यदि शोध
नहीं होगा तो विकास नहीं ह्रास होगा। शोध का उद्देश्य जीवन और जगत का उन्नयन है निरंतर जीवन और
जगत के लिए ही शोध होता है। किसी-किसी शोध से कभी-कभी उन्नयन की जगह नाश भी होता है।
स्वतंत्रता के बाद शोध को अर्थ का साधन बना लिया गया है।
शोध करने वालों की संख्या में वृद्धि हो गई और शोध की जो
उन्नत अवस्था थी, वह अवनत
हो गई। हर एक व्यक्ति शोध
कार्य नहीं कर सकता इसके लिए श्रम चाहिए। जो लोग श्रम से डरते हैं, उन्हें सोच नहीं करना चाहिए।
शोध की परिभाषा
अंग्रेजी के रिसर्च
के अर्थ के द्योतक खोज, अन्वेषक, अनुसंधान, शोध
इत्यादि अनेक शब्द प्रचलित है। ‘खोज’
शब्द सामान्य भाषा का है। ‘अन्वेषण’
शब्द से निर्मित अन्वेषक और अन्वेषक प्रबंध शब्द की अभीष्ट आशय की अभिव्यक्ति में
असमर्थ है। गवेषणा
का वैदिककालीन अर्थ था गाय की इच्छा या खोज। बाद में यह शब्द अपना विशिष्ट अर्थ खोकर सामान्य अर्थ ‘खोज’
के लिए प्रयुक्त होने लगा किंतु यह शब्द स्थूल एवं सतही अर्थ का बोधक है। 1960 तक ‘अनुसंधान’ शब्द ‘शोध’ की अपेक्षा अधिक व्यवहार में आता
रहा। किंतु आकार में बड़ा
होने के कारण इससे निर्मित शब्द अनुसंधान के प्रचलन में बाधा उपस्थित करने वाले
शब्द है।
‘रिसर्च’ के मूल आशय को व्यक्त करने की
क्षमता से युक्त होने पर भी अनुसंधान शब्द कालांतर में प्रचलन से हटाया गया और
अपना स्थान ‘शोध’ के लिए छोड़ता गया।
संप्रति
‘रिसर्च’ के पर्याय के रूप में सर्वाधिक प्रचलित शब्द ‘शोध’ है। “शोध शब्द ‘शुद्ध’ धातु से बना है। शोध का अर्थ है शुद्ध करना, परिमार्जित करना, संदेह रहित बनाना या प्रमाणिक घोषित करना शोध का व्यापक
अर्थ है।”2
हिंदी में शोध शब्द
स्थूल खोजने की क्रिया से लेकर सूक्ष्म चिंतन मनन और परीक्षण की क्रियाओं तक के
आशयों को समाहित किए हुए हैं। “शोध
शब्द के तीन अभिप्राय न्यास उभर कर आते हैं- (1) नये तथ्यों की खोज (2) खोजे हुए तथ्य या तत्वों का संशोधन (3) खोजे हुए तथ्यों या तत्त्वों का मंथन और मूल्यांकन।
इस प्रकार ‘शोध’ ‘अनुसंधान’ के समान या उससे भी अधिक
अर्थ-व्यंजक है। अर्थ-गाम्भीर्य
के साथ ही इसकी सबसे अनूठी विशेषता है इसका आकार लाघव। लघु आकार और गहन अर्थवाहकता की विरल विशेषताओं के संयोजन ने
‘शोध’ शब्द के वर्चस्व में वृद्धि की है और उसे ‘रिसर्च’ के पर्याय के रूप में
सर्वाधिक स्वीकार्य और ग्राह्य बना दिया है। अब प्राय: सभी विश्वविद्यालयों और शोध-संस्थानों में यही
‘रिसर्च’ के लिए मानक रूप से स्वीकार कर लिया गया है। आकारिक लघुता के कारण इससे निर्मित अन्य शब्द – शोधक, शोधार्थी, शोध-कार्य, शोध-प्रबंध, शोध-गोष्ठी, शोध-लेख, शोध-सामग्री, शोध-विषय, शोध-निष्कर्ष, आदि भी नितांत सुगम और सुग्राह्य बन पड़े हैं।
इसलिए शोध शब्द अब ‘रिसर्च’ के अर्थ में रूढ़ हो गया है।”3
यह देखें- हिन्दी उपन्यासों पर हुए शोध कार्य
सामान्य
अर्थ से आगे बढ़कर जब हम शोध के आदर्श स्वरूप और शैक्षणिक सन्दर्भ पर विचार करते
हैं तो हमें इसके लिए एक व्यवस्थित परिभाषा की आवश्यकता होती है। ‘वैब्सटर्स डिक्शनरी’ में रिसर्च की परिभाषा निम्न प्रकार से
दी गई है :- “Research is a critical and exhaustive investigation or
examination having for its aim the discovery of new facts and their correct
interpretation, the revision of accepted conclusion, theories and lows.”4
एन्साइक्लोपीडिया
ऑफ़ सोशल साइंस में रिसर्च के लिए कहा गया है –“Research is the
manipulation of things, concepts or symbols for the purpose generalizing to
extend, correct knowledge whether that knowledge aids in the practice or an
art.”5
Research is "creative
and systematic work undertaken to increase the stock of knowledge, including
knowledge of humans, culture and society, and the use of this stock of
knowledge to devise new applications."6
नए
ज्ञान की प्राप्ति हेतु व्यवस्थित प्रयत्न को विद्वानों ने शोध की संज्ञा दी है।
एडवांस्ड लर्नर डिक्शनरी ऑफ करेण्ट इंग्लिश के अनुसार, “किसी भी ज्ञान की शाखा में नवीन तथ्यों की खोज के लिए
सावधानीपूर्वक किए गए अन्वेषण या जाँच-पड़ताल शोध है।” दुनिया भर के विद्वानों ने
अपने-अपने अनुभवों से शोध की परिभाषा दी है--
आचार्य
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार “रिसर्च में ‘रि’ उपसर्ग उतना पुनर्थक नहीं, जितना पौन: पुनीक अभिनिवेश और गंभीर प्रयत्न का द्योतक है।
स्थूल अर्थों में वह नवीन और विस्मृत तथ्यों का अनुसंधान है, जिसको अंग्रेजी में ‘डिस्कवरी ऑफ फैक्ट्स’ कहते हैं और
सूक्ष्य अर्थ में वह ज्ञात साहित्य के पुनर्मूल्यांकन और नई व्याख्याओं का सूचक है।”
यह देखें- यूजीसी केयर सूची (Ugc Care Journal List) में शामिल हिंदी की पत्रिकाएँ
आचार्य
विनय मोहन शर्मा के अनुसार “शोध नए तथ्यों की खोज ही नहीं, उनकी तर्क सम्मत व्याख्या है।”
डॉ. नगेंद्र के अनुसार, “अनेकता में एकता की सिद्धि का नाम ही सत्य है - इसी का अर्थ
है आत्मा का साक्षात्कार। अतः शोध का यह रूप सत्य की उपलब्धि अथवा आत्मा के
साक्षात्कार के अधिक से अधिक निकट है।”
उपरोक्त
परिभाषा से स्पष्ट है कि आज के जीवन के आंतरिक और बाह्य पक्ष अनुसंधान के द्वारा
ही विकसित हो रहे हैं। ये
विकास केवल मानव जाति के लिए अच्छे हैं या बुरे यह प्रश्न दूसरा ही है।
भौतिक तथा विचार क्षेत्र के विकास के अनेक दुष्परिणामों के
बावजूद यह स्वीकार करना पड़ेगा कि शोध वर्तमान मानव जीवन का एक अनिवार्य अंग है।
हम
यह कह सकते हैं कि शोध जगत को सत्य की ओर
ले जाती है। सत्य की ओर जाते ही तथ्य गौण होने लगते हैं और निष्कर्ष प्रमुख। तथ्य
उसे समकालीन से जोड़तें है और निष्कर्ष, देश काल की सीमा को तोड़ते हुए समाज के अनुभव विवेक में
जुड़ते जाते हैं। शोध एक
अनोखी प्रक्रिया है जो ज्ञान के प्रकाश और प्रसार में सहायक होता है ।
अनुसंधान की प्रक्रिया: डॉ. सावित्री सिन्हा
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची :-
1. वर्मा डॉ.
हरिश्चन्द्र, शोध-प्राविधि, पंचकूला, हरियाणा
साहित्य अकादमी, 2006, पृ . 2
2. कौर, जोगेश, हिंदी
शोध संदर्भ और इतिहास, दिल्ली, राजेश प्रकाशन, 1987, पृ. 19
3. वर्मा डॉ.
हरिश्चन्द्र, शोध-प्राविधि, पंचकूला, हरियाणा
साहित्य अकादमी, 2006, पृ. 5
4. वर्मा डॉ.
हरिश्चन्द्र, शोध-प्राविधि, पंचकूला, हरियाणा
साहित्य अकादमी, 2006, पृ. 5
5. सिंघल; बैजनाथ, शोध, स्वरूप एवं मानक व्यावहारिक कार्यविधि, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली (2008), पृ. 7
6. विकिपीडिया (Frascati Manual. The Measurement of Scientific, Technological and Innovation Activities).
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