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रामचंद्र शुक्ल के महत्वपूर्ण कथन

 रामचंद्र शुक्ल के महत्वपूर्ण कथन


▪️ ''विलक्षण बात यह है कि आधुनिक गद्य साहित्य की परम्परा का प्रवर्तन नाटक से हुआ।'' उपर्युक्त कथन किस साहित्यकार का है?
रामचन्द्र शुक्ल

▪️ "इस वेदना को लेकर उन्होंने ह्रदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखीं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता।" ౼ आचार्य रामचंद्र शुक्ल (महादेवी वर्मा के बारे में) 

▪️    ''इनकी रहस्यवादी रचनाओं को देख चाहेतो यह कहें कि इनकी मधुवर्षा के मानस प्रचार के लिए रहस्यवाद का परदा मिल गया अथवा यों कहें कि इनकी सारी प्रणयानूभूति ससीम पर से कूदकर असीम पर जा रही।''  (जयशंकर प्रसाद के बार में)

▪️    कबीर की अपेक्षा ख़ुसरो का ध्यान की भाषा की ओर अधिक था।

▪️   जायसी के श्रृंगार में मानसिक पक्ष प्रधान है, शारीरिक गौण हैं।  

▪️   'इसमें कोई सन्देह नहीं कि कबीर को राम नाम रामानन्द जी से ही प्राप्त हुआ पर आगे चलकर कबीर के राम रामानन्द से भिन्न हो गए।'  

▪️     भारतेन्दु ने जिस प्रकार हिन्दी गद्य की भाषा का परिष्कार किया, उसी प्रकार काव्य की ब्रजभाषा का भी।

▪️     काव्य की पूर्ण अनुभूति के लिए कल्पना का व्यापार कवि और श्रोता दोनों के लिए अनिवार्य  है।

▪️    वैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है।

▪️     काव्यानुभूति की जटिलता चित्तवृत्तियों की संख्या पर निर्भर नहीं, बल्कि संवादी-विसंवादी वृत्तियों के द्वन्द्व पर आधारित है।

▪️     ‘आधुनिक काल में गद्य का आविर्भाव सबसे प्रधान घटना है।’

▪️     करुणा दुखात्मक वर्ग में आनेवाला मनोविकार है।

▪️    नाद सौन्दर्य से कविता की आयु बढ़ती है।
▪️     भक्ति धर्म की रसात्मक अनुभूति है।
▪️   करुणा सेंत का सौदा नहीं है।

 ▪️    ‘हिन्दी रीति-ग्रंथों की परम्परा चिन्तामणि त्रिपाठी से चली। अतः रीतिकाल का आरम्भ उन्हीं से मानना चाहिए।’

▪️    हरिश्चन्द्र का प्रभाव भाषा और साहित्य दोनों पर बड़ा गहरा पड़ा। उन्होंने जिस प्रकार गद्य की भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत चलता, मधुर और स्वच्छ रूप दिया, उसी प्रकार हिन्दी साहित्य को भी नए मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया।

▪️     सौन्दर्य की वस्तुगत सत्ता होती है, इसलिए शुद्ध सौन्दर्य नाम की कोई चीज़ नहीं होती।

▪️    यह सूचित करने की आवश्यकता नहीं है कि न तो सूर का अवधी पर अधिकार था और न जायसी का ब्रजभाषा पर।

▪️    धर्म का प्रवाह कर्म, ज्ञान और भक्ति ౼इन तीन  धाराओं में चलता है। इन तीनों के सामंजस्य से धर्म अपनी पूर्ण सजीव दशा से रहता है। किसी एक के भी अभाव से वह विकलांग रहता है।

▪️   "इनकी भाषा ललित और सानुप्रास होती थी।" (चिंतामणि त्रिपाठी के बारे में)

▪️    "भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी।" (बेनी के बारे में)

▪️     "इस ग्रंथ को इन्होंने वास्तव में आचार्य के रूप में लिखा है, कवि के रूप में नहीं।" (महाराजा जसवंत सिंह के ग्रंथ 'भाषा भूषण' के बारे में) 

▪️      "इसका एक-एक दोहा हिन्दी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है।"

▪️      "इसमें तो रस के ऐसे छींटे पड़ते हैं जिनसे हृदय-कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है।"  (बिहारी और बिहारी सतसई के बारे में)

▪️      "जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा।" (बिहारी और बिहारी सतसई के बारे में)

▪️      "बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है।" 


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