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समीक्षा -उपन्यास "अज्ञातवास" ,समीक्षक -ओम प्रकाश नौटियाल

उपन्यास "अज्ञातवास"
उपन्यास लेखिका - अनुपमा नौडियाल
प्रकाशक -हिंद युग्म ब्लू
पृष्ठ संख्या -96
मूल्य 125 /-
अमेजन पर उपलब्ध (लिंक) : https://www.amazon.in/Agyaatvaas-Anupama-Naudiyal /dp/9387464881/
उपन्यास समीक्षक -ओम प्रकाश नौटियाल, वडोदरा, मोबाइल 9427345810

2020 में प्रकाशित लेखिका अनुपमा नौडियाल के उपन्यास "अज्ञातवास" का ताना बाना युवाओं के  मन में अपने आने वाले समय में  समाज के लिए कुछ अलग हटकर  अच्छा करने की  आदर्श अभिलाषा के अंकुरित और पल्लवित होने के इर्द गिर्द बुना गया है । भविष्य में सकारात्मक बदलाव लाने   की मंजिल चुनने की उनकी मनोकामना एक स्वस्थ सोच है लेकिन इसके लिए अपने वर्तमान को सँवारना और विद्यार्थी जीवन का समय इस भाँति सुकारथ लगाना कि मँजिल पाने की राह की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए व्यक्ति सक्षम हो सके और अपना संबल स्वयं बन सके , नितांत आवश्यक है । यह वह उम्र है जिसमें अपनी मंजिल तय करने के लिए अपनी क्षमताओं के सही आकलन के साथ साथ स्वस्थ और परिपक्व सलाह की आवश्यकता तो होती है किंतु साथ ही साथ यही वह उम्र होती है जिसमें सबसे अधिक भ्रम पालने और स्वयं को सर्वज्ञानी समझने का जुनून भी चरम पर होता है अतः युवाओं को समझाने के लिए माँ बाप और गुरू जनों में, सलाह देने का आभास दिए बिना, सलाह देने की कला आनी चाहिए । यह समय अपने   बुद्धि ज्ञान, कौशल और सोच  में परिपक्वता लाने और उसे सुद्दढ करने का है ,किंतु साथ ही साथ युवा अवस्था में भ्रमित होने , अव्यवहारिक लच्छेदार बातों से प्रभावित होकर पथ विचलित होने की संभावना भी बहुत अधिक रहती है ।

उपन्यास अस्सी के दशक के मध्य से प्रारंभ होता है । आत्म विश्वास से सराबोर और  प्रतिभासंपन्न छात्रा मंजुला कैसे एक  खोखले आदर्शों पर जीवनयापन कर रहे और वर्षों से कालेज में रहकर एक के बाद एक डीग्री हासिल करने वाले पलायवादी, अधिक उम्र के अथर्व के विचारों  से प्रभावित होकर, उसके साथ प्रेम करने लगती है और जीवन यात्रा में उसकी सहयात्री बनकर अपने आदर्शों को मूर्तरूप देने की सोचने लगती है । साथ ही कालेज में उसकी एक प्रिय सहेली स्वरा भी है सहमी , संकोची सी । इन प्रनुख पात्रों की रोचक जीवन यात्रा में गुंफित यह उपन्यास हर द्दष्टि से अत्यंत प्रभावशाली बन पडा है । उपन्यास कालेज परिवेश में जन्म लेकर मंजुला के युवा मष्तिष्क में चल रहे वैचारिक संघर्ष ,पारंपरिक तय पथ को छोडकर किसी अन्य कंटकपूर्ण मार्ग के माध्यम से एक धुँधली सी मंजिल पाने  की ललक और इसके लिए हर टकराव से मुकाबला करने की अप्रतिम इच्छा के सहारे आगे बढता है । उपन्यास की कथावस्तु के विषय में पाठकों की रोचकता बनाए रखने  के लिए केवल इतना कहना चाहूँगा कि उपन्यास हर द्दष्टि से पाठकों को बाँधे रखने में सक्षम है । कालेज के परिवेश ,विद्यार्थियों के वार्तालाप का सहज, स्वाभाविक और यथार्थपूर्ण चित्र ,कथानक के छोटे छोटे प्रभावशाली मोड उपन्यास की रोचकता और गतिशीलता बनाए रखते हैं। विभिन्न पात्रो के मध्य वार्तालाप छोटे और स्वाभाविक हैं और शब्द चयन भी पात्रों के चरित्र के अनुसार सटीक है । कहीं भी केवल  कलम का चमत्कार दिखाने के लिए लम्बे उबाऊ वर्णन नहीं हैं , छोटे छोटे स्वाभाविक संवाद हैं कोई उपदेशात्मकता नहीं । युवाओं के लिए अत्यंत लाभप्रद और उनके जीवन की दिशा निर्धारित करने वाले संदेश कथानक के अत्यंत रोचक यथार्थ परक प्रस्तुतिकरण एवं  उसमें निहित प्रसंगो से स्वतः निकल आते हैं जो पाठक के हृदय पर गहरी छाप छोडने में सफल रहते हैं ,मेरे विचार से यह उपन्यास  युवा वर्ग को तो अवश्य ही पढना चाहिए , और इसकी प्रतियाँ हर कालेज के पुस्तकालय में  होनी चाहिएं ।

उपन्यास की भाषा में परंपरा और आधुनिकता का समावेश पात्रों ,समय और महौल के अनुरूप विविधता  के रंग और शब्द चयन लिए हैं ,चाहे वह बुद्धिजीवियों का जामा ओढे और खोखले आदर्शों पर जी रहे पात्रों की आपसी बातचीत हो , जसवन्ती के बच्चो की बाल सुलभता हो, या सहेलियों के मध्य हो रही अंतरंग वार्ता हो या फिर अलग अलग पीढियों के पात्रों के मध्य का संवाद । पात्रों के मनोविज्ञान उनके आत्मसंघर्ष के चित्रण में सिद्धहस्त लेखिका अनुपमा जी की पहली पुस्तक "अपने अपने प्रतिबिंब " की कहानियों को भी मैंने पढा है और सादगी तथा बिना अनावश्यक अतिरेकता के कथावस्तु को अत्यंत रोचक और सहज  ढंग से प्रस्तुत करने की उनकी प्रतिभा को सराहा है ।

मुंशी प्रेमचंद ने कहा था, " मैं उपन्यास को मानव-जीवन का चित्रमात्र समझता हूं। मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है। " मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि इस मापदंड पर यह उपन्यास खरा उतरता है ।

सुगठित कथानक , सजीव , स्वाभाविक चरित्र-चित्रण ,पात्रों और परिस्थितियों के अनुसार संवाद तथा सरल एवं व्यवहारिक भाषा ,युवा कल्याण की ओर इंगित करने वाले नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठा का प्रयास इस उपन्यास की खूबियाँ हैं ।

उपन्यास विधा भारतेन्दु , द्विवेदी ,प्रेमचंद और प्रेमचंदोत्तर  युगों से गुजर कर आधुनिक युग तक पहँच गई है । अलग अलग युग में उपन्यास की विषय वस्तु और कथन शैली तत्कालिन विचारधाराओं , भौगोलिक और एतिहासिक पृष्ठ भूमि आदि से प्रभावित रही है । हर युग ने हमें बहुत अच्छे उपन्यास दिए हैं और इनकी सफलता का एक मात्र स्वीकार्य मापदंड रहा है पाठकों के मध्य उनकी लोकप्रियता । यही उपन्यास की सफलता का पैमाना होना चाहिए और उसकी श्रेष्ठता के आकलन की सही  तकनीक भी । इस कृति की यह समीक्षा भी इसी पाठकीय द्दष्टि से है ।

 मैं चाहूँगा कि विद्यार्थी , युवावर्ग , साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी एक बार इस उपन्यास को अवश्य पढें ,पढवाएं और अपनी प्रतिक्रिया दें । मैं प्रतिभाशाली लेखिका अनुपमा जी को उनको इस अनुपम सृजन के लिए बधाई देता हूँ आशा है भविष्य में उनसे इसी तरह का स्तरीय साहित्य पढने को मिलेगा । वह संभावनाओं से सराबोर हैं । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

--ओम प्रकाश नौटियाल, वडोदरा,मोबाइल 9427345810

https://www.amazon.in/s?k=om+prakash+nautiyal


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