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काव्य-प्रयोजन KAVYA PRAYOJAN
काव्य-प्रयोजन KAVYA PRAYOJAN
आचार्य | काव्य प्रयोजन |
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भरत मुनि | (1) धर्म (2) यश (3) आयुष (4) हित (5) बुद्धिवृद्धि (6) लोक उपदेश (7) दक्षता (8) चरम विश्रांति प्राप्ति। |
भामह | (1) चतुर्वर्ग फलप्राप्ति (2) कीर्ति (3) सकल कला-ज्ञान (4) प्रीति। |
दण्डी | (1) लोक व्युत्पत्ति |
वामन | (1) कीर्ति (2) प्रीति |
रुद्रट | (1) धर्म (2) कीर्ति (3) अनर्थोपशम (4) अर्थ (5) सुख प्राप्ति। |
आनन्द वर्धन | (1) विनयन्समुखीकरण (2) प्रीति। |
कुन्तक | (1) चतुर्वर्गफल प्राप्ति (2) व्यवहार ज्ञान (3) परमाह्याद। |
महिम भट्ट | (1) रसमय सदुपदेश (2) परमाह्राद। |
अभिनव गुप्त | (1) चतुर्वर्गफल प्राप्ति (2) जायासम्मति उपदेश (3) परमानन्द (4) यश। |
भोज | (1) कीर्ति (2) प्रीति। |
मम्मट | (1) यश प्राप्ति (2) वित्तीय लाभ (3) लोक व्यवहार (4) शिवेतर क्षतये (अमगल का नाश) (5) सद्यपर निर्वृति (तत्काल परमानन्द की प्राप्ति) (6) कान्ता सम्मित उपदेश। |
(1) ''जिस सम्पति आनन्द अति दुरितन डोर सोइ
होत कवित तें चतुराई जगत राम बस होइ।।-कूलपति मिश्र
(2) 'रहत घर न वर धाम धन, तरुवर सरवर कूप।
(3) ''कीरति वित्त विनोद अरु अति मंगल को देति।
करै भलो उपदेश नित वह कवित्त चित्त चेति।।'' -सोमनाथ
(4) ''एक लहैं तप-पुंजन्ह के फल ज्यों तुलसी अरु सूर गोसाई।
एक लहैं बहु सम्पति केशव, भूषण ज्यो बरवीर बड़ाई।।
दास कवित्तन्ह की चरचा बुधिवन्तन को सुख दै सब ठाई।'' -भिखारीदास
(5) 'केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए।
उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए।। -मैथलीशरण गुप्त
(6) ''कविता का अन्तिम लक्ष्य जगत के मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षीकरण करके
सामग्री- कामिनी झा
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