चंद्रहास की कविता - दुनिया कैसे मिटती होगी
जब प्रकृति के कोमल अंगो पर ,
मानव गतिविधिया बढ जाती हैं …
जब जीवन दायी धरती पर ,
स्वारथ की लकीरें पड़ जाती हैं …
जब निज विकास के चक्कर में ,
पेढों की बाहें कट जाती हैं …
जब नदियां जीवन रेखा से ,
विष-धारा बन जाती है…
तब निश्चय ही इस जग में ,
काली छाया मंड राएगी …
सब शनै: शनै:बिखरेगा,
और अंत की स्थिति आएगी …
वसुधा के अश्रु निकलेंगे,
जो प्रलय की धारा बन जाएगी …
और प्रकृति खेलेगी खेल धरा पर ,
सारी दुनिया "पिच" बन जाएगी …
तब चीख चीख के धरती भी,
मानव से ये चिल्लाएगी -
रे मानव :
तूने बहुत प्रहार किया …
तीखे स्वादों के चक्कर में ,
बेजुबानो का आहार लिया …
जिसने तुझको छाया दी , काया दी ,
और जीवन जिससे चले निरंतर ,
वायु की ऐसी माला दी …
ऐसे औषधि , वट , वृक्षो का,
तूने जीवन छीन लिया …
इन सबने जीवन मे खुशियां दी ,
और तूने इनका अंत किया …
देख धरातल गतिविधि को,
पृथ्वी भी अब हिल जाती है …
औजारों सी दिखने वाली दुनिया में ,
लाशों की दुनिया दिख जाती है …
भैतिक-सुख की चाहत में ,
करुणा की स्थिति मिल जाती है …
नव-परिवर्तन के अवसर पर ,
क्षणिक विविधता दिख जाती है …
शायद ऐसे ही दुनिया मिट जाती है …
और जीवन की सांसे रुक जाती हैं ……
चंद्रहास पांडेय "चित्रकूट"
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