अर्जित पाण्डेय की कविताएँ
1.हिन्दी माँ
आधुनिकता के गलियारों में
तरक्की की सीढी के नीचे
बदहवास बैठी हिन्दी माँ
आँखों से छलकता दर्द
चेहरे से विस्मय ,अवसाद
तरक्की की सीढियों पर चढ़ते
उसके बेटे
उसे साथ ले जाना भूल गये है
एकांत बैठी हिंदी माँ सिसकती
अपनी दशा पर हँस
किस्मत को कोस रही है
वक्त के बिसात पर
मोहरा बनी हिन्दी माँ |
हिन्दी माँ जिसने हमे बोली दी
रस दिए ,भाव दिए
कविता बनी श्रृंगार की
जब हम प्रेमी बने
कविता बनी करुणा की
जब रिश्ते हमारे टूटे
हास्य रस का पान करा
हँसना हमे सिखाया
वीभत्स रस से परिचय करवा
गले हमे लगाया|
माँ को भूले बेटे
किसी और माँ की आंचल में
जाकर सो रहे है
और हमारी हिन्दी माँ
बेजान बुत सी
चीख रही ,पुकार रही
कह रही
लौट आओ मेरे बच्चो मेरे पास
ले चलो मुझे भी अपने साथ
2.दुर्बल पुरुष
हे पुरुष ,तोड़ दो
संसार के नियम की
अनंत जंजीर को
जो रोकती है तुम्हे
अपने दर्द को
आँखों से बयाँ करने पर ,
पुरुष प्रधान समाज की
सत्ता के शिखर पर
कठोर बना कर
तुन्हें बैठा दिया जाता है
दुर्बल तुम भी होते है
इन नियमो ने तुम्हे
कसकर जकड रखा है
तुम अपने दर्द
सरेआम बयाँ नही कर पाते
सिसकते हो रोते हो
चार दीवारों के अन्दर
गम को सीने में दफ़न किये
बैचैनी की ज्वाला में तडपते
तन्हाई के साथ राख बनकर
बिखरते हो
तुम्हारे गर्व का सिंघासन
भावना के झोको से
हिल रहा है
इस गद्दी का त्याग कर
उतार फेको पुरुषार्थ का
दमघोटू चोला
सरेआम कहो
हा मै कमजोर हूँ
दर्द मुझे भी होता है
अर्जित पाण्डेय
आईआईटी दिल्ली
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7408918861
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