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न्यूज़ीलैंड की हिंदी पत्रकारिता- रोहित कुमार 'हैप्पी'



न्यूज़ीलैंड की हिंदी पत्रकारिता

- रोहित कुमार 'हैप्पी'
संपादक, भारत-दर्शन, न्यूज़ीलैंड

न्यूज़ीलैंड की लगभग 46 लाख की जनसंख्या में फीजी भारतीयों सहित भारतीयों की कुल संख्या डेढ लाख से अधिक है। 2013 की जनगणना के अनुसार हिंदी न्यूज़ीलैंड में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में चौथे नम्बर पर है। 

यूँ तो न्यूजीलैंड में अनेक पत्र-पत्रिकाएँ समय-समय पर प्रकाशित होती रही हैं सबसे पहला प्रकाशित पत्र था 'आर्योदय' जिसके संपादक थे श्री जे के नातली, उप संपादक थे श्री पी वी पटेल व प्रकाशक थे श्री रणछोड़ क़े पटेल। भारतीयों का यह पहला पत्र 1921 में प्रकाशित हुआ था परन्तु यह जल्दी ही बंद हो गया।

एक बार फिर 1935 में 'उदय' नामक पत्रिका श्री प्रभु पटेल के संपादन में आरम्भ हुई जिसका सह-संपादन किया था कुशल मधु ने। पहले पत्र की भांति इस पत्रिका को भी भारतीय समाज का अधिक सहयोग नहीं मिला और पत्रिका को बंद कर देना पड़ा।

उपरोक्त दो प्रकाशनों के पश्चात लम्बे अंतराल तक किसी पत्र-पत्रिका का प्रकाशन नहीं हुआ। 90 के दशक में पुनः संदेश नामक पत्र प्रकाशित हुआ व कुछ अंकों के प्रकाशन के बाद बंद हो गया। इसके बाद द इंडियन टाइम्स, इंडियन पोस्ट, पेस्फिक स्टार, ईस्टएंडर और द फीजी-इंडिया एक्सप्रैस का प्रकाशन हुआ किन्तु एक के बाद एक बंद हो गए।

90 के दशक में आई इन पत्र-पत्रिकाओं में से अधिकतर बंद हो गई। न्यूजीलैंड की भारतीय पत्रकारिता में हिन्दी का अध्याय 1996 में 'भारत-दर्शन' पत्रिका के प्रकाशन से आरम्भ हुआ। 1921 से 90 के दशक का न्यूजीलैंड भारतीय पत्रकारिता के इतिहास का गहन अध्ययन करने के पश्चात पुनः एक हिन्दी लेखक व पत्रकार ने 'भारत-दर्शन' पत्रिका के प्रकाशन व संपादन का बीड़ा उठाया। न्यूजीलैंड भारतीय पत्रकारिता में हिन्दी प्रकाशन का अध्याय यद्यपि ‘द इंडियन टाइम्स’ में 1992 में हस्तलिखित हिन्दी रिर्पोटों के प्रकाशन से आरम्भ होता है तथापि वास्तविक हिन्दी प्रकाशन का श्रेय 'भारत-दर्शन' पत्रिका को जाता है चूंकि यही पत्रिका पूर्ण रूप से न्यूजीलैंड का पहला हिन्दी प्रकाशन है।



1996 में प्रकाशित भारत-दर्शन का पहला अँक


हिन्दी भाषा का प्रेम व भारतीय समाज की आवश्यकताओं हेतु यह नन्हीं सी यह पत्रिका निरंतर प्रयासरत रहती है। बिना किसी सरकारी या गैर-सरकारी आर्थिक सहायता के पत्रिका का प्रकाशन यदि असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है लेकिन हिन्दी प्रेमियों का स्नेह हर दिन नई उर्जा उत्पन्न करता रहा है।

1996-97 में 'भारत-दर्शन' का इंटरनेट संस्करण उपलब्ध करवाया गया, इसके साथ ही पत्रिका को 'इंटरनेट पर विश्व की पहली हिन्दी साहित्यिक पत्रिका' होने का गौरव प्राप्त हुआ और विश्वभर में फैले भारतीयों ने 'भारत-दर्शन' की हिन्दी सेवा की सराहना की। 1997 में पहली बार सभी भारतीयों को 'भारतीय स्वतंत्रता दिवस के स्वर्ण जयंती समारोह' में इसी पत्रिका ने एक मंच प्रदान किया।

'इंटरनेट पर आधारित हिन्दी-टीचर' विकसित करके भारत-दर्शन ने हिन्दी जगत में एक नया अध्याय जोड़ा। हमारे लिए बडे़ गर्व कि बात है कि आज भारत-दर्शन विश्व के अग्रणी हिन्दी अन्तरजालों ( इंटरनेट साइट ) में से एक है।

पहली बार न्यूजीलैंड में 'दीवाली मेले' का आयोजन 1998 में महात्मा गांधी सेंटर में 'भारत-दर्शन' व एक गैर-भारतीय न्यूजीलैंडर के सह-आयोजन से आरम्भ हुआ जो बाद में इतना प्रसिद्व हुआ कि ऑकलैंड सिटी कौंसिल ने इसके प्रबंधन की जिम्मेवारी स्वयं उठा ली। 'भारत-दर्शन' के इस मेले के आयोजन का ध्येय हिन्दी व अन्य भाषाओं का प्रचार करना भी था।

हिन्दी का प्रचार-प्रसार करने में कुछ अन्य संस्थाओं में हिन्दी रेडियो तराना, अपना एफ एम, प्लैनेट एफ एम ( पूर्व में एक्सेस कम्युनिटी रेडियो ) और ट्रायंगल टी वी का योगदान भी सराहनीय रहा है।

विश्व हिन्दी मानचित्र पर न्यूजीलैंड का नाम 'भारत-दर्शन' ने अंकित किया है। भारत-दर्शन इस समय हिंदी की सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली ऑनलाइन पत्रिका है।

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