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सच्चाई की बरबादी में भी उमीद की एक किरन दिखाता नाटक ‘नायक [नाट्य प्रस्तुति]



सच्चाई की बरबादी में भी उमीद की एक किरन दिखाता नाटक नायक

पंजाब के जालंधर शहर में कई तरंह के नाकट पेश किए जा चुके हैं लेकिन अनानेमस थीएटर का हमेशा यहीं मानना रहा है कि नाटकों को अलग-अलग ढंग से पेश किया जाए। इस बार भी इस टीम ने पंजाब के मशहूर लेखक गुरशरन सिंह के पंजाबी नाटक नायकका सफल मंचन किया। यह नाटक समाज में भ्रिषट और सिफारशों पर चलने वाले कलयुग भरे जीवन की सच्चाई ब्यान करता है जिस की  कैद में हद से ज्यादा लोग आ चुके हैं और इसी कारण ईमानदार इनसान का कोई वजूद नज़र नहीं मिल रहा।


नाटक की शुरूआत होती है एक कमरे से जहाँ एक 40-50 की उमर का शक्स अखबार पड़ रहा है तभी उसका बेटा कमरे में दाखिल होता है। वह बेटे को रोकता है और उस से कुछ वाद-विवाद करने के बाद पूछता है कि ज़िंदगी में उसने कुछ करना भी है या नहीं तो वह अपनी ज़ुबान से सच्चे शब्दों के ज़रीए यही कहता है कि वो तो कुछ करना चाहता है पर समाज ही उसे कुछ करने नहीं देता। पिता उसे बार-बार यही समझाता है कि उसके दवारा बात की हुई जगह पर वह नौकरी कर लेगा तो काम बन जाऐगा लेकिन बेटा सिरफ यही मानता है कि क्लरक की नौकरी की जगह वह अपनी डिगरी की बदौलत ही कुछ कर सकता है लेकिन अपने बाप दी सिफारिश वाली नौकरी करनी उसे कताई मनज़ूर नहीं। इस पर कुछ देर बोलने के बाद बेटा गुस्से से अपने कमरे में चला जाता है। इसके बाद अगले द्रश्य में एक दफतर दिखाया गया है। दफतर में एक आदमी अपनी चेअरमैन की कुरसी पर बैठा है। वह अगले आदमी को अंदर आने के लिए बैल बजाता है तभी वही पहले द्रश्य का युवक लड़का आता है और दफतर के मालिक के समक्ष बैठ जाता है। उसकी फाईल देखकर चेअरमैन खुश होता है लेकिन आखिर में यही सवाल पूछता है कि उसके पास किसी की सिफारिश है या नहीं। यह सुनकर यूवक गुस्से में आ जाता है और चेअरमैन से कहता है कि वो उन्हीं लोगों की तरंह निकला जिन्हें डिगरी से ज्यादा सिफारिशें और पैसे भरने से प्यार है। कुछ कड़वे शबद सुनने के बाद मालिक गुस्सा हो जाता है और धक्के मारकर युवक को बाहर निकाल देता है। इसके बाद अगले द्रश्य में वहीं घर दिखाया गया है जहां युवक गुस्से से हाथ में कोट पकड़े हुए दाखिल होता है तो पिता उसे क्रोध में आकर बुलाता है और पूछता है कि उसने दफतर के चेअरमैन से लड़ाई क्यों की तो वह साफ-साफ कह देता है कि वो हमेशा से सच्चाई का साथ देता आया है और सच बात बोलने से कभी भी डरा नहीं। ना ही उसने कोई झूठी बात बोली थी। लेकिन अगर चेअरमैन को वह बात चुभ गई तो इसमें उसका कोई कसूर नहीं है। पिता उसे यह समझाने की कोशिश करता है जिस तरंह से वह चाहता है दुनिया वैसे नहीं चलती है और उसकी इस हरकत की वजह से चेअरमैन ने उस पर केस कर दिया है । फिर भी युवक आखिर में यह बोल देता है कि उसे अपने पिता ती तरंह बेईमानी के रसते पर चलने की ना कभी ज़रूरत पड़ी है और ना ही कभी पड़ेगी। फिर कुछ कहा सुनी के बाद बिना पिता की सुने बेटा वहां से चला जाता है। चौथे द्रश्य में अदालत दिखाई गई है जहां यूवक जज के सामने कटघरे में खड़ा है। जज उससे दफतर में हूई बातों के कारण पूछता है तो युवक समाज के कुछ ऐसे सवाल खड़े कर देता है कि जज उसे बोलता है कि वह उससे ऐसे बात कर रहा है जैस वह कटघरे मे हो और युवक जज हो। युवक अपनी दलील देता है कि अब समा आ गया है कि हम उस कुरसी मे आए और वह कटघरे मे। इस के बाद जज अपना फैसला सुना देता है जिसकी वजह से युवक जेल में चला जाता है। आखिरी द्रश्य में जेल दिखाई गई है जहां पिता अपने बेटे को मिलने आता है। बेटा भी उसके सामने आकर भावुक हो जाता है। पिता भी भावुक होकर उससे कहता है कि वह बहुत शरमिंदा है कि वह अपने बेटे के लिए कुछ कर नहीं पाया और बेटा भी पिता से कुछ बातों पर माफीमांगता है। 


कुछ समय बाते करने के बाद बेटा वहां से चला जाता है और पिता ज़ोर-ज़ोर से यही कहता है कि मुझे तेरा इंतज़ार रहेगा बेटा। इन शब्दों के साथ मंच पर रोशनी धीमी होते हुए बुझ जाती है।नाटक की बात की जाए तो इस पंजाबी नाटक को विरसा विहार के मंच पर पहली बार हिंदी मेंकिया गया है जिसका अनुवाद निरदेशक अमित जिंदल ने पंजाबी शब्दों के जज़बातों को देखते हुए बहुतखूबसूरती से किया है। NZCC, पटियाला और विरसा विहार के सहियोग से किए गए इस.




नाटक की एक और खास बात यह है कि जालंधर में पहली बार सैंडविच फारमैट में किया गया यह पहला नाटक है। इस फारमैट में दरशक दोनो तरफ होते हैं और सटेज बीच में होती है। दरशकों में से कई लोगों को यह अनुभव काफी अच्छा लगा। निरदेशन की बात की जाए तो निरदेशक ने किरदारों पर काफी काम किया है और बलोकिंग भी सटेज के हिसाब से सही की गई है। निरमाण की बात करें तो टेबल और कुरसी घर के कमरे, दफतर और अदलत को दरशाया गया है क्योंकि तिनों द्रश्यों युवक को ही बदलने के लिए कहा जाता है और अगर कपड़ों की बात की जाए तो उसकी डिज़ाइनिंग काफी हद तक सही की गई है। लाईटिंग भी अच्छी की गई है। किरदारों की बात की जाए तो अमित जिंदल ने पिता, चेअरमैन, सुत्रधार और जज का किरदार निभाया और हैपी कलिज़पुरिया ने युवक बेट का किरदार अदा किया। दरशकों की तरफ से कहूंगा कि काफी लोगों को यह नाटक पसंद आया। कई लोगों को यह नाटक असल वाक्यों जैसा लगा। लेकिन दरशकों में एक युवक ने किरदारों की बात करते हुए कहा कि अमित जिंदल को अपने किरदारों में ढलने में मुशकिल आ रही थी जो कि उनके चहरे से साफ झलक रहा था इसलिए वह अपने किरदार को पूरी तरंह से निभा नहीं पाए और दूसरी तरफ हैपी कलिज़पुरिया ने बेटे के किरदार को बखूबी अदा किया क्योंकि उनकी चहरे पर किरदार दरद दिख रहा था। बैकसटेज के बारे में बात की जाए तो दरशकों में से एक व्यक्ति ने तो यह भी कहि दिया था कि जिस तरंह अनानेमस थीएटर ने पैंफलेट देने के साथ समय पर नाटक शुरू किया है वह सिर्फ एक प्रोफैशनल थीएटर ग्रुप ही कर सकता है। नाटक की लाईटिंग राहुल की तरफ से की गई है। संगीत की बात की जाए तो नाटक के हिसाब कुछ वैसटरन संगीतों की टोन इसतेमाल की गई है जो कि नाटक की थीम के साथ जुड़ने में कामयाब हुई हैं।बलराज सिधू ने संगीत का सारा काम संभाला। अनानेमस थीएटर ने इस प्रसतुती के बारे में बताते हुए कहा है कि वह इसके साथ और भी अलग-अलग विश्यों पर नाटक पेश करते रहेंगे। 9 तरीख को इसी ग्रुप की तरफ से 2 नाटक पेश किए जाएंगे जिनमें से एक है आवाज़ की निलामऔर दूसरा है मरणोप्रांत। सिर्फ यही नहीं अनानेमस थीएटर की टीम पतानहीं इसके साथ और कौन-कौन से उपहार लोगों के चेहरों पर देने वाली है इसका अंदाज़ा कोई भी नहीं लगा सकता।



Prince Brar
(Repoter & Theatre Critics)
9501767858
princebrar@gmail.com

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