ऐ रुपया ! तू मित्र है या शत्रु
-मनोज कुमार
कभी किसी को खुशी से भरता,
और किसी को कुछ नहीं करता,
किसी की आँखों में दे शूल,
ऐ रुपया ! तू दुःख का मूल |
निर्दोष को दोषी बनाते,
दोषी को निर्दोष बनाते,
कुछ को आपस में भिड़ाते,
ऐ रुपया ! तू मित्र है या शत्रु |
तू ही है जो अमीर बनाते,
कुछ को तू गरीब ठहराते,
कुछ को तू जड़ से घहराते,
ऐ रुपया ! तू मित्र है या शत्रु |
मंदिर-मस्जिद तुम बनवाते,
तू ही है जो इसको तुड़वाते,
और फिर नवनिर्माण कराते,
ऐ रुपया ! तू मित्र है या शत्रु |
राग-द्वेष-ईर्ष्या तुम फैलाते ,
कभी प्रेम दया में बदल जाते,
रहस्य बता ? "मनोज" चाहता कुछ करूँ,
ऐ रुपया ! तू मित्र है या शत्रु |
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