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तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों का विशिष्ट एवं नवीन अनुभव संसार


  तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों का विशिष्ट एवं नवीन अनुभव संसार

भूमिका : समकालीन हिन्दी लेखको में तेजेन्द्र शर्मा अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रहे है। उनकी कहानियों की विशिष्टता का कारण सिर्फ उनका प्रवासी परिवेश से युक्त होना ही नहीं, बल्कि विदेश प्रवासरत आम लोगों के जीवन को नए दृष्टिकोण से देखना है। मसलन उनकी कहानियों में अन्य प्रवासी रचनाकारों के विपरीत नोस्टेल्जिया की प्रवृति नहीं के बराबर है, बल्कि इसके के स्थान पर उनकी कहानियों का मुख्य स्वर विदेशों में बस रहे या बसने की इच्छा लिए संघर्षरत भारतीयों का जीवन सफर है। उनकी कहानियाँ प्रवासी भारतीयों को आम आदमी के नजरिया से देखकर उनके रोजमर्रा की समस्याओं एवं मानसिक अंतर्द्वंद्व को रचनात्मक स्वर प्रदान करती हैं | तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों में आर्थिक, सामाजिक, भावात्मक एवं सांस्कृतिक आदि अनेक स्तर पर आंतरिक एवं  बाह्य संघर्ष झेल रहे पहली पीढ़ी के आम प्रवासी भारतीयों का जीवन अभिव्यक्त हुआ है |
शोध विस्तार : तेजेन्द्र शर्मा की कई कहानियाँ हिन्दी कथा-जगत में सर्वथा नवीन वातवरण, देशकाल एवं परिघटना लिए अवतरित हुई है। मसलन चरमराहट कहानी खाड़ी देश सऊदी अरब के जेद्दाह शहर में रह रहे एक आम किन्तु दिलचस्प भारतीय आई. एम. तिवारी की कहानी है। छोटी सी उम्र में  सांप्रदायिक दंगे की अमानवीयता देखने के बाद तिवारी को धर्म द्वारा संचालित नाम से चिढ़ हो जाती है और वह फक्र से अपना नाम बदलकर आई. एम. हिदुस्तानी कर लेता है । अपनी प्रकृति से नास्तिक होने के बावजूद नौकरी पाने के लिए उसे जन्मना धर्म हिन्दू धर्म का सहारा लेना पढ़ता है। हिंदुस्तानी के आत्मसंघर्ष को व्यक्त करते हुए तेजेन्द्र शर्मा लिखते है- वह केवल हिंदुस्तानी बना रहना चाहता था किंतु नौकरी ने उसे हिन्दू बनाकर ही दम लिया।”[i] नौकरी भी हिंदुस्तानी को धार्मिक नियमों के  शिंकाजे में कसे जेद्दाह में मिली जहाँ धार्मिक पुलिस मुतव्वा आम नागरिकों के रोज़मर्रा के जीवन को नियंत्रित करते हैं। विभेदीकरण एवं स्तरीकरण के नए रूप मुस्लिम - गैर-मुस्लिम विभेद, सउदी – गैर-सउदी विभेद, गैर-मुस्लिम में रंग आधारित विभेद आदि से हिंदुस्तानी का परिचय होता है। मुसलमानों के लिए आरक्षित सड़के , धर्म के आधार पर इकामा का रंग, डीपोर्टी कैम्प आदि विभेदीकरण के विशिष्ट स्वरूप से उसे गुजरना पड़ता है। सउदी अरब में मुतव्वा के कठोर शासन से प्रवासियों के रोजमर्रा के जीवन का तनाव  सर्वथा अलग अनुभव बोध है। धर्म को तार्किक रूप के अस्वीकृत करनेवाला हिंदुस्तानी धार्मिकता की आँधी से संचालित घटनाओं के भंवर में घसीट लिया जाता है। बाबरी विध्वंस से फैले तनाव की तरंगें सीमा पार कर पूरी दुनिया के भारतीयों को अपने दायरे में समेट लेती है। अफवाह और अविश्वास के माहौल में हिंदुस्तानी का इकामा रद्द कर भारत डीपोर्ट कर दिया जाता है। भारत आने के बाद उसे एहसास होता है कि हिंदुस्तानी नाम को हिन्दू सांप्रदायिक तत्वों ने धार्मिक के रंग से सराबोर कर दिया है | हिंदुस्तानी शब्द भारतीयता के स्थान पर हिन्दू धर्म और हिन्दू सभ्यता का प्रतीक बना दिया गया है। हिंदुस्तानी की अपने नाम को धर्म से संपृक्त रखने  की जीवन भर की साधना धूल-धूसरित हो जाती है- “सारे माहौल को देखकर हिंदुस्तानी को महसूस हुआ कि केवल एक ढांचा नहीं चरमराया बल्कि उसके साथ बहुत कुछ चरमरा गया है। लोगों का विश्वास, प्यार भाईचारा, समाज की नींव सब चरमरा गया है।”[ii] यह कहानी प्रवासी भारतीयों  के जीवन में घरेलू संप्रदायिक तनाव के परिणामस्वरूप उपजे संघर्ष और उससे भी अधिक भावनात्मक टूटन को संवेदनात्मक अभिव्यक्त प्रदान करती है |
     तेजेन्द्र शर्मा की कहानी कैंसर ब्रेस्ट कैंसर से जूझ रही महिला एवं उसके पति के मानसिक तनाव एवं अंतर्द्वंद्व  की कहानी है। रेडिकल मैक्सोटोमी अर्थात स्तन काटकर निकालना एक सर्जिकल प्रक्रिया भर नहीं है | अपनी पत्नी से बेइन्तहा मुहब्बत करने के बाद भी नरेन का मन भी इस दुविधा में जूझता रहता है कि एक छाती न रहने के बाद क्या वह पूनम को उतना प्यार कर पाएगा। वहीं दूसरी ओर पूनम इस ग्लानिबोध में पिसती है कि उसके पति की प्रिय वस्तु  उसका गोलदार स्तन उससे सदा के लिए बिछड़ जाएगी। स्पष्ट है की अगर कैंसर इलाज योग्य भी हो तब भी कैंसर पीड़ित व्यक्ति को जीवन एवं संबंधों में फैल रहे तनाव,घुटन और बेबसी के कैंसर से लड़ना पड़ता है। डाक्टरी इलाज पूनम की छाती सपाट कर देते हैं और आपरेशन की लम्बी प्रक्रिया से गुजरते – गुजरते नरेन और पूनम की तार्किकता और आत्मविश्वास घिस – घिसकर चिथड़े हो जाते हैं | प्यार को खाने का डर व्यक्ति की तर्कशक्ति को पंगु बना देता है। देवी-देवताओं में विश्वास नहीं रखने के बावजूद नरेन पूरी श्रद्धा से ताबीज बांधता है, किसी सिर हिलाती देवी के सामने घुटने टेकता है, बर्न अगेन ईसाइयों के साथ प्रार्थना करता है। इन सब के पीछे उसकी एक ही ख्वाहिश है की कहीं कोई चमत्कार हो जाए और डॉक्टरी रिपोर्ट झूठ निकल जाए। इस प्रकार कैंसर से लड़ने की प्रक्रिया में लोग नए तरह के कैंसर का शिकार होते चले जाते हैं, जिससे उन्हें जीवन भर जूझना पड़ता है।
विमान दुर्घटना पर आधारित कहानी काला सागर अनेक परस्पर विरोधी संवेदनाओं को समेटे हुए हैं। एक ओर आतंकवादी हमले से अपनों को खोए लोगों की संतप्त व्यथा व्यथा है तो दूसरी ओर भावना विहीन रिश्तेदार भी हैं, जो अपनों की मौत का भी यथासंभव फायदा उठाने में लगे हुए हैं। लाशों की पहचान के लिए लंदन पहुंचे रिश्तेदारों में कोई इंपोर्टेड की टीवी खरीदने की धुन में है तो कोई मुफ्त की शराब उड़ाने में। इस कहानी में रिश्तों एवं भावनाओं का बिखराव सामान्य पारिवारिक कलह से कई गुना अधिक विषादमय, नग्न और विद्रूप है। यहाँ अपनों की मौत का दुख भी भौतिकता एवं लोभ के संवरण से दब चुका है। इसी कड़ी में देह की कीमत कहानी को रखा जा सकता है, जहां जापान के अवैध प्रवास के दौरान मृत बेटे को मिले तीन लाख के चेक पर सगे रिश्तेदार आँखें गड़ाए रहते हैं। काला सागर कहानी में जो रिश्तों की भावनाहीनता अनेक परिवारों के माध्यम से व्यक्त की गई है वही देह की कीमत में एक परिवार की कहानी बन गई है।लेखक के विमान परिचालन के वास्तविक अनुभव ने कहानी के वातावरण की बिलकुल संजीदा और जीवंत कर दिया है।

काला सागर, देह की कीमत, कैंसर आदि कहानियों की तरह कहानी कब्र का मुनाफा मृत्युबोध को केंद्र में रखकर लिखी गई है। पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था ने आंखों पर भौतिकता का आवरण डालकर जीवन के अनिवार्य एवं अवश्यंभावी सत्य मृत्यु को बाजार के लिए एक प्रॉडक्ट बना दिया है। हमारी मानसिकता ने लाश को भी बुर्जुआ और गैर  बुर्जुआ में बांट दिया है। अमीर लोग गरीबों के साथ दफन नहीं होना चाहते बल्कि अपने लिए फाइव स्टार कब्र की बुकिंग कर रहे हैं।  लाशों को सजाने, संवारने एवं दफनाने की प्रक्रिया पैकेज के मुताबिक बंट गई है। खलील और नजीम मियां भी खुद के और अपने बेगमों के लिए कब्रें बूक करवाकर निश्चिंत हो जाते हैं कि मरने के बाद उनकी लाशें फाइव स्टार कब्रों में दफनाई जाएगी। अपनी बेगमों के विरोध के बाद जब वे बूकिंग रद्द करते हैं तो उन्हें पता चलता है कि बाजार के उतार- चढ़ाव के साथ कब्र की कीमतें बढ़ती- घटती है। मनुष्य के आदरपूर्वक अंतिम संस्कार के लिए पूर्वजों द्वारा ईजाद की गई प्रथाएँ प्रॉपर्टी डीलरों के लिए रियल स्टेट का धंधा बन गई है। हर संभव तरीके से धन बटोरने की लालसा में खलील और नजीम मियां जीवन के आखिरी दिनों में भी मृत्यु की वास्तविकता एवं अवश्यंभावित को स्वीकार करने को तैयार नहीं है।
विदेशों में आर्थिक रूप से सक्षम और सफल पारिवारिक जीवन गुजार रहे भारतीयों के लिए भी सांस्कृतिक और नस्लीय अलगाव के अंतर को पाट पाना आसान नहीं होता। हाथ से फिसलती जमीन... कहानी एक ऐसे प्रवासी भारतीय  नरेन की कहानी है जो जैकी से प्रेम-विवाह कर अपना भरा-पूरा परिवार बसा चुका है, परंतु इसके बावजूद अपनी चमड़ी का रंग अलग होने के कारण वह अपने ही बच्चों से भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पता। भारत में जातीय शोषण का शिकार नरेन जब ब्रिटेन में प्रेम विवाह करता है तो उसे लगता है की उसे जन्म आधारित भेदभाव का शिकार ब्रिटेन में नहीं बनना पड़ेगा। लेकिन नस्लीय भेदभाव वहाँ भी उसका पीछा नहीं छोडते। परिवार में वह धीरे-धीरे अपनी गोरी पत्नी और गोरे बच्चों से अलग होता चला जाता है। नरेन का पाकी रंग जो कभी जैकी के लिए आकर्षण का कारण था, वही रंग उसे बार- बार याद दिलाते  हैं की वह अपने परिवार से अलग दिखता है। यही चमड़ी का रंग जीवन के लंबे सफर के बाद उसे परिवारविहीन कर  देते हैं।
निष्कर्ष:  तेजेंद्र शर्मा की कहानियों की विशिष्टता का कारण है -उनका नवीन अनुभव संसार और उसे समझने की उनकी अपनी व्यक्तिगत दृष्टि। विमान परिचालन की व्यवसायिक सेवा, लंदन प्रवास, लंदन में रेलवे की नौकरी, कैंसर पीड़ित पत्नी का जीवन संघर्ष आदि व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक अनुभवों ने न सिर्फ नई कथावस्तु प्रदान की है, बल्कि कहानियों के वातावरण को अत्यंत जीवंत बना दिया है। उनकी कहानियों में लेखकीय कल्पना के समावेश के बावजूद वे सहज और आपबीती गाथा जैसी लगती है। उनकी कहानी इस रूप में भी विशिष्ट है कि लंदन प्रवास के बावजूद उनकी कहानियों में नॉस्टैल्जिया बहुत कम है। बीते दिनों की यादों के स्थान पर प्रवासी भारतीयों के जीवनसंघर्ष को उन्होने अपनी कहानियों का आधार बनाया है। हालांकि हाथ से निकलती जमीन कहानी में जो कुंठा और व्यर्थताबोध है वह नोस्टेलिजीया की ओर ले जाने वाला प्रतीत होता है, जहां लंदन में घर बसा लेने के बावजूद पाकी रंग के कारण व्यक्ति अपने ही परिवार के सदस्यों से जुड़ नहीं पाता है।  संक्षिप्ततः तेजेंद्र शर्मा अपने जीवन के अनुभव-संसार से हिंदी कहानी को समृद्ध करते हैं और पाठकों को संवेदनात्मक धरातल पर नितांत नूतन अनुभव लोक से परिचित कराते हैं।





1.तेजेन्द्र शर्मा, देह की कीमत, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2007, पृ. सं. 121.
2.तेजेन्द्र शर्मा, देह की कीमत, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2007, पृ. सं. 121.









संदर्भ ग्रंथ सूची:
1। बृज नारायण शर्मा भटनागर(सं०), तेजेंद्र शर्मा वक्त के आईने मे,रचना समय, भोपाल 2009।
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3। शर्मा तेजेन्द्र, बेघर आँखें, अरु प्रकाशन, 2007।
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10।संधु मधु, हिन्दी का भारतीय एवं प्रवासी कथा लेखन, वामन प्रकाशन, दिल्ली, 2013।




Research paper written by:
अभिनव कुमार
शोधार्थी, कर्नाटक केन्द्रीय विश्वविद्यालय
Mob: 9555751870






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