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बादल - -ओंम प्रकाश नौटियाल



कई रंगो में खिल गया बादल

बूंद बूंद समा फल गया बादल


उसे कहा इस अंगना बरसना

घुडकी देकर निकल गया बादल


सूर्य रश्मियाँ ले भीतर अपने

छाँव देकर विकल गया बादल


स्वयं की शक्ल से ऐसा खेला

कई शक्लों में ढ़ल गया बादल


झुक कर दूर उस पर्वत शिखर पर

बर्फ़ चूमने  मचल गया बादल


पीर देख उस पहाडी गाँव की

फटा दुःख से अजल गया बादल


नीर खारा पीकर समन्दर का

मधुर जल बरसा , चल गया बादल !

-ओंम प्रकाश नौटियाल

(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित )


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