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पूर्वोत्तरीय राज्यों में हिंदी साहित्य लेखन का इतिहास- हरेराम पाठक

"पूर्वोत्तरीय राज्यों में हिंदी साहित्य लेखन का इतिहास" पुस्तक डॉ. हरेराम पाठक के गहन अध्ययन और शोध का परिणाम है। लेखक ने बड़ी गहराई से पूर्वोत्तर के आठों राज्यों में हिंदी की पृष्ठभूमि एवं उसकी वर्तमान स्थिति पर विचार किया है। यह पुस्तक कुल आठ अध्यायों में विभक्त है।  प्रत्येक अध्याय में क्रम से इन राज्यों में हिंदी की पृष्ठभूमि एवं उसकी वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। लेखक की मान्यता है कि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण से शुरु हुआ। पुस्तक में विभिन्न तथ्यों के माध्यम से यह सिद्ध किया गया है कि पूर्वोत्तरीय राज्यों में सरहपा आदि सिद्धों का प्रभाव व्यापक रूप से रहा है। इन सिद्धों ने न केवल भाषा और साहित्य को बल्कि तत्कालीन समाज, संस्कृति एवं धर्म को भी व्यापक रूप से प्रभावित किया। 

 'प्रथम अध्याय' में असम प्रांत के हिंदी रचनाकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का आलोचनात्मक परिचय प्रस्तुत किया गया है। इसमें सिद्धों के समय से लेकर असम में अद्यतन हिंदी के जो लेखक सक्रिय हैं उन सभी का परिचय विस्तारपूर्वक दिया गया है।
 'द्वितीय अध्याय' के अंतर्गत मणिपुर में हिंदी की विकास यात्रा का मूल्यांकन किया गया है।
'तृतीय अध्याय' में मेघालय एवं मिजोरम में हिंदी की स्थिति की पड़ताल की गई है और साथ ही इन प्रदेशों की भौगोलिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर भी प्रकाश डाला गया है।
'चतुर्थ अध्याय' में नागालैंड में हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं उसके वर्तमान स्वरूप को विवेचित किया गया है।
'पंचम अध्याय' में अरुणाचल प्रदेश में हिंदी साहित्य लेखन के इतिहास को बतलाया गया है और वहां  की अकादमी गतिविधियों पर भी लेखक की दृष्टि गई है।
'षष्ठम अध्याय' में त्रिपुरा और सिक्किम में हिंदी की विकास यात्रा का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
'सप्तम अध्याय' में पूर्वोत्तरीय राज्यों में हिंदी के भविष्य को लेकर आलोचनात्मक दृष्टिपात किया गया है।
'अष्टम अध्याय' के अंतर्गत उत्तर-पूर्वी राज्यों में राजभाषा हिंदी की स्थापना के विभिन्न आयामों को दर्शाने का प्रयास किया गया है।
लेखक का मानना है कि आठों राज्यों में हिंदी आज संपर्क भाषा के रूप में तो कार्य कर ही रही है साथ ही साहित्यिक प्रतिष्ठा भी प्राप्त कर चुकी है। पुस्तक की भूमिका के अंत में लेखक ने अपनी इस बात को स्पष्ट भी किया है कि हिंदी साहित्य लेखन के इतिहास में पूर्वांचलीय प्रांतों के हिंदी प्रचारकों एवं लेखकों को सम्मान पूर्वक स्थान देना इस राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता और अखंडता के लिए आवश्यक है। पूर्वोत्तर भारत और हिंदी के संबंधों को लेकर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिए यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है ही, साथ ही पूर्वोत्तर भारत के प्रति जिनके मन में साहित्यिक, सांस्कृतिक और भाषिक लगाव है उनके लिए भी यह पठनीय है। पुस्तक 'अनंग प्रकाशन' दिल्ली से प्रकाशित है।

इस गहन ,गम्भीर और शोधपूर्ण कार्य के लिए डॉ. हरेराम पाठक सर बधाई के पात्र हैं। उन्हें बधाई 💐💐💐

"पूर्वोत्तरीय राज्यों में हिंदी साहित्य लेखन का इतिहास" 
लेखक-  डॉ. हरेराम पाठक 
प्रकाशन- अनंग प्रकाशन, दिल्ली।
संस्करण- प्रथम, 2020

-आदित्य मिश्र

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