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हिंदी साहित्य और भारतीय सिनेमा-डॉ. संतोष राजपाल नागुर

 

हिंदी साहित्य और भारतीय सिनेमा

                           डॉ. संतोष राजपाल नागुर 

                           पोस्ट डोकटोरल रिसर्च फैलो

                           हिंदी अध्ययन विभाग

                           मानसगंगोत्री,मैसूर विश्वविद्यानिलय

                           मैसूर ५७०००६

 

हिंदी साहित्य और भारतीय सिनेमा के बीच एक अनन्य और अनोखी संबंध है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। यदि हम सिनेमा को साहित्य का दर्पण कहें तो, साहित्य सिनेमा का प्रतिबिंब है। साहित्य और सिनेमा ऐसी माध्यम हैं जिससे सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में परिवर्तन और सुधार लाया जा सकता है। सिनेमा मनोरंजन के साधन हैं, और साहित्य समाज की यथार्थ  अनुभूति। साहित्य के माध्यम से कथा-कहानियों को सुनाया, बताया जाता था, और कथा-कहानियों के पात्रों के जरिये नाटक प्रदर्शन होते गए। नाटकों से रंगमंच बनते गए और धीरे-धीरे आधुनिक उपकरणों की सहायता से सिनेमा मंदिर बनते गए। इस तरह सिनेमा और साहित्य का संक्षिप्त इतिहास को देखा जा सकता है। साहित्य और सिनेमा के संबंध अपने विचार प्रकट करते हुए पश्चिमात्य विद्वान हरबर्ट रीड ने कहा है “जो लोग पट-कथा साहित्य में कोई संबंध नहीं मानते हैं, मेरे विचार से फिल्म और साहित्य दोनों के संबंध में उनकी धारणा गलत है... यदि आप मुझसे पूछें तो श्रेष्ठ लेखक की एक मात्र विशेषता है-हृदयात्मकता; शब्दों के माध्यम से बिंबों को संप्रेषित करना; मस्तिष्क को देखने के लिए प्रेरित करना। साहित्य का कार्य मस्तिष्क के अंतःपट पर वस्तुओं और घटनाओं के चल-चित्र प्रक्षेपित करना है। होमर से लेकर शेक्स्पीयर और आधुनिक कवियों का यही प्राप्य रहा है। अच्छी फिल्म का भी यही लक्षण है।”१



साहित्य और फिल्म दोनों के तुलना में यदि विचार करें तो, साहित्य में सर्वकालिक सत्य होने का गुण है, परंतु यथार्थपरक भौतिक चित्र के कारण फिल्म काल-निबद्ध हो जाती है। फिल्म के लिए परिधान, वेषभूषा आदि का बड़ा महत्व है। अर्थात फिल्म की वास्तविकता अपरिवर्तित है। फिल्म का यथार्थ काल-सापेक्ष्य और साहित्य का काल-जयी होता है। फिल्म देखने और साहित्य के पठन में आधारभूत अंतर है। आधुनिक सौंदर्यशात्र के निर्माण में सिनेमा और साहित्य का दोनों का परियाप्त योगदान है। सिनेमा के उदयकाल से ही फिल्म पर साहित्य का प्रभाव सर्वमान्य है। परंतु आधुनिक साहित्य पर फिल्म का प्रभाव भी काफी गहराई तक लक्षित हो रहा है।”२

सिनेमा आधुनिकता की सोच है। सिनेमा आज के दौर में साहित्य की तुलना में अधिक प्रभावशाली और सरलता से जनता तक पहुँचने का माध्यम बन चुका है। यह बात कहने में अतिशयोक्ति न होगी कि सिनेमा का प्रारंभ साहित्य से ही माना गया है। भारत में बननेवाली पहली फिल्म आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक हरिश्चंद्र से प्रेरित थी। हिंदी फिल्म हो या किसी अन्य भाषी फिल्म सिनेमा में साहित्य का अधिक महत्व है। फिल्मों में साहित्य की महत्ता को बताते हुए रूसी फ़िल्मकार आंद्रेई तारकोवस्की का एक साक्षात्कार संवाद में कहना है कि “फ़िल्मकारों के पास अपने विचार नहीं होते हैं। साहित्यिक कृतियों पर फिल्में बनाने से उन्हे अपनी कल्पना के घोड़े नहीं दौड़ाने पड़ते। उन्हे एक कहानी मिल जाती है।”३ 

सन् १९३१ में आलम आरा जो पहली बोलती फिल्म बनी तबसे लेकर आजतक सर्वाधिक फिल्में हिंदी भाषा और साहित्य के आधार पर ही बनी हैं। पहले पहल बोलती फिल्मों (शाब्दिक फिल्मों) का शुरुआती दौर फारसी रंगमंचों की विरासत में थे। जिसमें नाटकीयता और गीत-संगीत का अधिक समावेश हुआ करता था। सन् १९३३ हिंदी साहित्य के प्रख्यात कथाकार मुंशी प्रेमचंद जी का हिंदी सिनेमा में लेखक के रूप में प्रवेश हुआ। प्रेमचंद कहानी पर आधारित मिलमज़दूर फिल्म बनी जिसका निर्देशन भावनानी ने किया। तदोपरांत सन् १९३४ में प्रेमचंद जी की लेखनी से आधारित नवजीवन और सेवासदन फिल्म बनीं। प्रेमचंद जी के अलावा चतुरसेन शास्त्री, फणीशवरनाथ रेणु, भगवतीचरण वर्मा, अमृतलाल नागर, पाण्डेय बेचन शर्मा, और कई हिंदी साहित्यकारों की रचनाओं से हिंदी सिनेमा बनती गईं।

हिंदी सिनेमा में साहित्य का योगदान अविस्मरनीय है। साहित्य हमेशा से समाज को प्रभावित करता आया है। हिंदी साहित्य और सिनेमा में सन् १९७० का समय अत्यंत सुनहरा समय माना गया है। इस समय में हिंदी सिनेमा पूरे भारतवर्ष में लोकप्रिय बनती गईं। लोकप्रिय लेखक एवं रचनाकार गुलज़ार ने कमलेश्वर की रचना पर आधारित आँधी और मौसम फिल्में बनाईं, और वह दोनों अत्यधिक लोकप्रिय फिल्में बनीं। और इसी समय उपन्यासकार कमलेश्वर का योगदान भी अद्वितीय है।

उपेन्द्रनाथ अश्क और अमृतलाल नागर के बाद कमलेश्वर ही ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने सिनेमा की भाषा और सिनेमाओं की आवश्यकताओं को समझा। इसी समय के एक और लोकप्रिय फ़िल्मकार बासु चटर्जी जो मूलतः बंगाली भाषी थे उनहोंने हिंदी साहित्य की प्रख्यात लेखिका मन्नू भण्डारी की कहानी पर आधारित यही सच्च और राजनीगंधा जैसी फिल्में बनाईं। यह फिल्में उन दिनों अधिक लोकप्रिय साबित हुईं। इस तरह इस समय में हिंदी भाषी फ़िल्मकारों की संख्या बड़ती गईं। हिंदी फिल्म की इस नई दौर को समांतर सिनेमा के नाम से संभोदित किया गया।

हिंदी साहित्य और रचनाओं पर आधारित फिल्मों की सूची निम्नलिखित हैं।

 

लेखक              

रचना/कृति            

फिल्म

निर्देशन

फणीशवरनाथ रेणु

मारे गए गुलफाम

तीसरी कसम (१९६६)

बासु भट्टाचार्य

धर्मवीर भारती

गुनाहों का देवता

द सेम नाम (१९४९)

श्याम बेनेगल

धर्मवीर भारती

सूरज का सातवाँ घोड़ा

कड़ियाँ (१९९३)

श्याम बेनेगल

प्रेमचंद

सेवासदन

निर्मला (१९३८)

सुब्रमण्यम

प्रेमचंद

मज़दूर

मज़दूर (१९८३)

भावनानी

प्रेमचंद

नवजीवन

नवजीवन (१९३९)

नीरज ओरा

प्रेमचंद

गोदान

गोदान (१९६३)

गुलज़ार

प्रेमचंद

गबन

गबन (१९६६)

ऋषिकेश मुखर्जी

प्रेमचंद

शतरंज के खिलाड़ी

शतरंज के खिलाड़ी (१९७७)

सत्यजीत राय

भीष्म साहनी

तमस    

अर्थ (१९९८)

दीपा मेहता

कृष्णा सोबती

जिंदगीनामा

ट्रेन टू पाकिस्तान (१९९८) 

पामेल रुक्स

यशपाल

झूठा सच्च

खामोशी पानी (१९९६)

संजय लीला भंसाली

अमृतलाल प्रीतम

पिंजर

गदर (२००१)

अनिल शर्मा

मोहन राकेश

मलबे का मालिक

हीना (१९६१)

रणधीर कपूर

कृष्ण चंदर

पेशावर एक्सप्रेस

वीर ज़ारा (२००४)             

यश चोपड़ा

कमलेश्वर

काली आँधी

आँधी (१९७५)

गुलज़ार

भारतेन्दु हरिश्चंद्र

हरिश्चंद्र

राजा हरिश्चंद्र (१९७९)

दादा साहब फाल्के

मुंशी ज़हीर 

फकीर पर आधारित

आलम आरा (१९३१)

आर्देशिर ईरानी

कमलेश्वर

मौसम

मौसम (१९७५)

गुलज़ार

मन्नू भण्डारी

यही सच्च

रजनी गंधा (१९७४)

बासु चटर्जी

निर्मल वर्मा

माया दर्पण

माया दर्पण (१९७२)

कुमार शहानी

मोहन राकेश

आषाढ़ का एक दिन

आषाढ़ का एक दिन (१९७१)

मणि कौल

विजयदान देथा

दुविधा

पहेली (२००५)

अमोल पालेकर

विजयदान देथा

हबीब तनवीर

चरणदास चोर (१९७५)

श्याम बेनेगल

विजयदान देथा

दुविधा

दुविधा (१९७३)

मणि कौल

मुक्तिबोध

सतह से उठा आदमी

सतह से उठा आदमी (१९८०)

मणि कौल

विनोद कुमार शुक्ल

आया

आया

मणि कौल

बिहारी

कालसूत्र

दामुल (१९८४)

प्रकाश झा

विजय दान देता

परिणति

परिणति (१९८६)

प्रकाश झा

आलोक धन्वा

पतंग

पतंग (१९९४)

गौतम घोष

तेजेंद्र शर्मा

कोख का किराया कहानी

कोख (१९९४)

राहुल देव बर्मन

प्रेमचंद

सद्गति

सद्गति (१९८१)

सत्यजीत राय

केशव मिश्र            

कोहबर की शर्त

नदिया के पार (१९८२)

गोविंद मुनीस

शरत बाबू

बिराज बहू

बिराज बहू (१९५४)

विमल राय

 

उपरयुक्त प्रमुख रचनाओं पर बनी फिल्मों के अलावा हिंदी साहित्य पर कई धारावाहिक, लघु फिल्म भी बनीं, जैसे कि तमस, चंद्रकांता, राग दरबारी, कबतक पुकारूँ, मुझे चाँद चाहिए आदि धारावाहिक अत्यंत लोकप्रिय रहे।

संदर्भ ग्रंथ सूची

§  हिंदी चलचित्रों में साहित्यिक उपदान, अध्याय २ सिनेमा और साहित्य, पृष्ठ २४, डॉ. विश्वनाथ मिश्र। हिंदी प्रचारक संस्थान वाराणसी-०१

§  हिंदी चलचित्रों में साहित्यिक उपदान, अध्याय २ सिनेमा और साहित्य, पृष्ठ १३, डॉ. विश्वनाथ मिश्र। हिंदी प्रचारक संस्थान वाराणसी-०१

§  साहित्य, सिनेमा और समकालीन सच, सिनेमा समकालीन सिनेमा, अजय ब्रामातमज पृष्ठ १९७, वाणी प्रकाशन नई दिल्ली

§  साहित्य, सिनेमा और समाज। जनसत्ता दिसम्बर ११/२०१६

§  भारतीय फिल्मों की कहानी। बच्चन श्रीवास्तव, राजपाल एण्ड संज़ दिल्ली

§  अंतर्जाल से प्राप्त सूचनाएँ।

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