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हिंदी में रोज़गार के लिए अनुवाद की भूमिका

हिंदी में रोज़गार के लिए अनुवाद की भूमिका 


डॉ. राजेन्द्र परमार 

सारांश- 

‌‌हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा तो है ही, पर साथ ही वह अंतरराष्ट्रीय भाषा के पद पर धीरे-धीरे स्थापित हो रही है। आज के संन्दर्भ में कोई भी भाषा तभी सक्षम मानी जा सकती है, जब उसमें रोजगार देने की क्षमता हो। प्राचीन समय में वहीं भाषा समृद्ध मानी जाती थीं जो व्याकरणिक दृष्टि से समृद्ध हो तथा जिसमें ज्ञान की सामग्री हो। प्राचीन समय में शिक्षा का तात्पर्य ज्ञान प्राप्ति था। साहित्य में भारत के एकमात्र नोबेल विजेता रवीन्द्रनाथ ठाकुर अगर विश्व में पहचान बना सके तो इसका एकमात्र कारण अनुवाद है अगर ‘गीतांजलि’ अनूदित नहीं होती तो क्या वह विश्व में अपनी पहचान बना सकती ? यह वह समय था जब अनुवाद पहचान बनाने का काम करता था। पर वर्तमान समय में इस बात पर बल दिया जाता है कि किस भाषा में से रोजगार अधिकाधिक प्राप्त कर सकते है ? तो प्रत्युत्तर होगा हिन्दी। और वह कौन सा साधन है जिसके जरिये हम घर बैठे सरलता से रोजगार प्राप्त कर सकते है? तो इसका उत्तर है अनुवाद। आज पूरा विश्व एक बाजार बन गया है। इस बाजारीकरण के कारण ही उत्तम अनुवाद की मांग बढी है, चाहे वह साहित्यिक क्षेत्र हो, धार्मिक क्षेत्र हो, सामाजिक क्षेत्र हो, प्रशासनिक क्षेत्र हो या जनसंचार का क्षेत्र हो। अनुवाद के लिए दो भाषाओं का पूर्ण ज्ञान अनिवार्य है। 

‌‌वर्तमान समय में रोजगार का प्रश्न एक गंभीर समस्या बना हुआ है। भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ योजना द्वारा इस दिशा में प्रयत्न जरूर हुआ है, पर अभी वह प्रयत्न के स्तर पर ही है । इस शोध पत्र में रोजगार के लिए अनुवाद की भूमिका, उसके विभिन्न क्षेत्र तथा अनुवाद में हिन्दी के महत्व पर विचार रखने का मेरा नम्र प्रयास रहेगा। 
hindi mein anuvad


बीज शब्द 

हिन्दी, रोज़गार, पाठानुवाद, माध्यम अनुवा, मौखिक अनुवाद 

हिंदी और अनुवाद 


‌वर्तमान युग ज्ञान-विज्ञान का युग है । आज पूरा विश्व एक गाँव बन गया है। मनुष्य को आज विभिन्न क्षेत्रों की जानकारी रखनी पड़ती हैं । अगर उसके पास विभिन्न क्षेत्रों की जानकारी नहीं हैंतो वह पिछड़ा हुआ माना जाता है । तो सवाल यह है कि एक भाषा में व्यक्त विचारों से तो व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर सकता है, जिसे वह जानता परंतु दूसरी ऐसी कई समृद्ध भाषाएँहैं, जिसको वह नहीं जानता। अर्थात् भाषाओं में प्रकट ज्ञान की उसे जानकारी नहीं हैं । ऐसी स्थिति में दूसरी भाषाओं का ज्ञानार्जन किस प्रकार किया जाए। इसके लिए अनुवाद से बेहतर दूसरा कोई साधन नहीं है। अनुवाद ही वह माध्यम है जिसके द्वारा विभिन्न प्रदेशों तथा विश्व के दूसरे देशों के ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति, शिक्षा से परिचित हुआ जा सकता हैं । 

भारत बहुभाषा-भाषी राष्ट्र है, जिसमें कई भाषाएँ बोली, लिखी और पढ़ी जाती है । पर इन सब भाषाओं में हिन्दी भाषा शीर्षस्थ हैं । शीर्षस्थ इसलिए कि हिन्दी आज राष्ट्रभाषा और राजभाषा के पद से विकसित होकर अंतरराष्ट्रीय भाषा का स्वरूप ग्रहण कर रही है। वैश्विक फलक पर वह आज अपनी विशिष्ट पहचान बना रही है। 

रोजगार और अनुवाद 

वर्तमान दौर में हिन्दी सृजनात्मकता से रोज़गारोन्मुख हिन्दी की ओर तीव्र गति से बढ़ रही है । हिन्दी आज रोज़गार देने में और अधिक सक्षम बनती जा रही है । उसमें भी अनुवाद का क्षेत्र रोज़गार प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। 

अनुवाद से रोज़गार प्राप्त करने के तीन आयाम है- 


(1) पाठानुवाद 

(2) माध्यम अनुवाद 

(3) मौखिक अनुवाद 

(1) पाठानुवाद : 

पाठानुवाद के अंतर्गत पत्रकारिता, शिक्षा, आकाशवाणी, विज्ञापन, विधि-अनुवाद, साहित्यिक 

अनुवाद के जरिये भी रोज़गार प्राप्त किया जा सकता है । उपर्युक्त क्षेत्रों में तथा इसके अलावा भी ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिसमें अनुवाद की मांग की जाती है । 

अनुवाद के माध्यम से रोज़गार प्राप्त करने के लिए पत्रकारिता का खुला मैदान पड़ा हुआ है। आज विभिन्न भाषाओं में कई समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं । इन समाचार पत्रों और समाचार ऐजंसियों को अच्छे अनुवादकों की जरुरत पड़ती हैं, जो हिन्दी में से अन्य भाषाओं में तथा प्रादेशिक और विदेशी भाषाओं में से हिन्दी में अनुवाद कर सके। भारत में ही नहीं विदेशों में भी हिन्दी पत्रकारिता की धूम मची हुई हैं । विदेशों में खास कर एशिया के देशों में हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं को बड़े चाव से पढ़ा जाता हैं । उदाहरण स्वरुप देखा जाए तो नेपाल की ‘प्रतिध्वनि’, ‘सही रास्ता’, ‘जन चेतना’, बर्मा की ‘प्राची’, ‘कलश’,श्रीलंका की ‘जनता’, ‘लंकादीप’, जापान की ‘सूर्योंदय’, चीन की‘चीनसचित्र’, रूस की ‘युवक दर्पण’, त्रिनिनाद की ‘कोहिनूर’, फिजी की ‘शांतिदूत’,कनाड़ा की ‘विश्वभारती’ आदि। हिन्दी पत्रकारिता व उसके माध्यम से रोज़गार की संभावना तेजी से बढ़ रही है ।1 लेकिन शर्त यह है कि अनुवाद करने के लिए अनुवादक का स्रोत और लक्ष्य भाषा प्रयोग पर प्रभुत्व अनिवार्य है। 


आकाशवानी 

आकाशवाणी संविधान मान्य प्रमुख 22 भाषाओं में अपने कार्यक्रमों का प्रसारण करती है। अतएव आकाशवाणी जैसे एक संगठन के लिए एक भाषा से दूसरी भाषा में प्रसारण सामग्री के अनुवाद का आश्रय लेना अनिवार्यत: आवश्यक हो जाता है।सन् 1949 में संविधान द्वारा हिन्दी को राजभाषा घोषित किए जाने के बाद आकाशवाणी के राष्ट्रीय कार्यक्रम हिन्दी भाषा में प्रसारित होते थे और आज भी हो रहे हैं । आकाशवाणी ने पूरे देश में अनुवादकों और रूपांतरकारों का एक जाल फैला रखा हैं ।2 रेड़ियों पर जो समाचार प्रसारित किए जाते है, उसको हम तीन भाषाओं में विभाजित कर सकते हैं-1. प्रादेशिक भाषा, 2. राजभाषा और 3. विदेशी भाषा। यहाँ एक ही बात अनूदित होकर भिन्न-भिन्न भाषाओं में प्रसारित की जाती है । पर प्रश्न यह है कि अनुवादक बहुभाषी हो, या कम से कम दो भाषाओं का संपूर्ण ज्ञान उसमें होना चाहिए। आकाशवाणी का क्षेत्र अनुवाद के माध्यम से रोज़गार कमाने के लिए वाकई में 'आकाश वाणी'(देवता की वाणी) ही है, जो अनुवाद और अनुवादकों के लिए वरदान साबित हो रहा है। 

विधि साहित्य 

विधि साहित्य में अनुवाद के माध्यम से भी रोज़गार प्राप्त किया जा सकता है । विधि की जानकारी के लिए यह जरूरी है कि कानून ऐसी भाषा में हो, जिसे लोग जानते हों। जब कानून ऐसी भाषा में निर्मित किए जाते हैं, जिसे देश की अधिकांश जनता समझती न हो, तब कानूनों को जनता की भाषा में उपलब्ध कराने के लिए अनुवाद का सहारा लिया जाता है । संसद द्वारा पारित होने वाले अधिनियम, अध्यादेश, नियम आदि मूलरूप से अंग्रजी में लिखे जाते हैं और फिर उनका हिन्दी अनुवाद किया जाता है । अर्थात् यदि कोई दस्तावेज अंग्रेजी में लिखा जाता है तोउसका हिन्दीसंस्करण और हिन्दी में लिखा जाता है तो अंग्रेजी संस्करण जारी किया जाता है।3 जिन छात्रों ने 'डिप्लोमा इन हिन्दी ट्रान्सलेशन' का कोर्स किया है और वह विधि साहित्य का अनुवाद करना चाहता है तो उससे विधि साहित्य के ज्ञान की पूरी जानकारी अपेक्षित है। यह इसलिए कि विधि साहित्य के अनुवाद में पारिभाषिक शब्दावली का अधिकाधिक प्रयोग होता है। विधि साहित्य का अनुवाद करना अब इसलिए सरल हो गया है कि विभिन्न विश्वविद्यालयों में डिप्लोमा इन हिन्दी ट्रन्सलेशन का कोर्स शुरू कियागया है । गुजरात विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग ने भी इस दिशा में ठोस कदम उठाया है । गुजरात जैसे अहिन्दी भाषी प्रदेश में इस कोर्स की अहमीयत सहज ही समझी जा सकती है ।हाँलाकि इस कोर्स में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या कम हैं । कम इसलिए कि छात्र इस कोर्स से अनभिज्ञ है । हिन्दी विभाग के अध्यापक इस कोर्स का छात्रों में प्रचार भी कर रहे हैं ।वर्तमान समय में रोज़गार का प्रश्न युवाओं के लिए एक विकट प्रश्न बना हुआ है, ऐसी स्थिति में डिप्लोमा इन हिन्दी ट्रान्सलेशन का कोर्स ढ़ाल का काम दे सकता है, इसमें दो राय नहीं। 

वैज्ञानिक साहित्य 

वैज्ञानिक साहित्य के अनुवाद के अंतर्गत सामाजिक एवं भौतिक दोनों प्रकार के विषय आते हैं । इनमें मनोविज्ञान, व्यवहार विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, पर्यावरण विज्ञान, भौतिक विज्ञान आदि विषयों को अनुवाद की दृष्टि से शामिल किया जा सकता है। 

व्यावसायिक जगत 

व्यापार और व्यवसाय करने हेतु भारत एक बड़ा बाज़ार है । बाज़ार की भाषा हिन्दी है । इसलिए विदेशी कम्पनियाँ अपने माल की बिक्री के लिए हिन्दी को अपनाये हुए है । वे अपनी चीज-वस्तुओं का विज्ञापन अंग्रजी में न देकर हिन्दी में देते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि भारतीय बाज़ार की भाषा हिन्दी है, जिसे आम जनता बख़ूबी समझती है, भले ही वह किसी अंचल विशेष से सम्बन्धित क्यों न हो। व्यावसायिक जगत में भाषा के संदर्भ में जो कहावत प्रचलित है वह यह कि उपभोक्ता अपनी भाषा में खरीदता है, किन्तु व्यापारी ग्राहक की भाषा में ही बेच सकता है ।4 यो हम भारत के बाज़ार के संदर्भ में यह कह सकते है कि विज्ञापन और अनुवाद का अन्योन्याश्रित संबंध है।

साहित्यिक अनुवाद  

साहित्यिक अनुवाद आज के युग की आवश्यकता है । राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कई प्रकाशन संस्थाएँ हैं, जो श्रेष्ठ पुस्तकों के अनुवाद के लिए अनुवादक की मांग करती है । ऐसी प्रकाशन संस्थाएँ तथा साहित्य अकादमी प्रादेशिक भाषाओं में से हिन्दी में अनुवाद के लिए प्रति शब्द एक रूपया की धनराशि भी देती है । साहित्य अकादमी, दिल्ली, राज्य स्तर की साहित्य अकादमियाँ तथा साहित्य परिषदें भी श्रेष्ठ पुस्तकों का अनुवाद करवाती हैं ।इसके साथ ही श्रेष्ठ अनूदित कृति को विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा पुरस्कार भी दिये जातेहैं । 

कहा जाता है कि संस्कृत भाषा के सुप्रसिद्ध कवि कालिदास के ख्यातनाम नाटक ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ को पढ़कर जर्मन कवि गेटे उसे सिर पर रखकर नाचा था।5 इसका प्रमुख कारण अनुवाद ही था। अंग्रेजी भाषा के प्रसिद्ध नाट्यकार शेक्सपियर के नाटकों का अनुवाद विश्व की प्रमुख भाषाओं में मिल जाता है । रविन्द्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ को कौन भूल सकता ?जिसने स्वयं कवि द्वारा अनूदित होकर वैश्विक फलक पर अपनी विशिष्ट पहचान बनायी ।कुल मिलाकर यह कहा जा सकता कि साहित्यिक अनुवाद के माध्यम से रोज़गार तो प्राप्त किया ही जा सकता है, परंतु साहित्यिक क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में भी अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । 

(2) माध्यम अनुवाद 

माध्यम अनुवाद के अंतर्गत फिल्मों की डबिंग, साहित्य से फिल्म बनाना, साहित्य से नाट्यरूपांतरकरना आदि माध्यमों से भी रोज़गार मुहैया कराया जा सकता है । विभिन्न कार्यक्रमों के निर्माण, प्रसारण, संचालन व अभिनय के क्षेत्र में आज पहले से अधिक अवसर उपलब्ध है । कई हिट फिल्मों का डबिंग, डबिंग-आर्टिस्ट के माध्यम से किया जाता है। प्रोड्यूसर, निर्देशक देश की सीमाओं को लांघकर विदेशों में भी अपनी फिल्में प्रदर्शित करते हैंतो वह डबिंग के माध्यम से ही है। टाईटेनिक, अवतार, बाहुबलि-1, बाहुबलि-2 आदि फिल्मों ने देश-विदेश में धूम मचा दी थी। जरूरत यह है कि माध्यम अनुवाद के जितने भी प्रकार है, उसके लिए विधिवत प्रशिक्षण लेकर नाम और रोज़गार दोनों कमाया जा सकता है । 

(3) मौखिक अनुवाद 

मौखिक अनुवाद में दुभाषिए के माध्यम से पर्यटन का क्षेत्र तथाराजनीति का क्षेत्र  रोज़गार दे सकता है । पर्यटन के क्षेत्र में कोई विदेशी प्रवासी भारत घूमने के लिए आते हैं, तो वह ऐतिहासिक स्थलों के नाम से तो परिचित होते हैं, परंतु इन स्थलों के इतिहास से वह परिचित नहीं होते।ऐसी स्थिति में वह टूरिस्ट गाईड (जो बहुभाषा-भाषी है) के माध्यम से इन चीजों से अवगत हो सकते हैं । दूभाषियाँ अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रेंच, जर्मन, चीनी, जापानी आदि विदेशी भाषाएँ जानता है तो पर्यटन का क्षेत्र उसके लिए आजीविका प्राप्त करने का साधन बन सकता है । 

इसी प्रकार एक देश का राजनीतिक दल किसी दूसरे देश के राजनीतिक दल से किसी मुद्दे पर चर्चा-विमर्श करता है, तब दोनों दल भिन्न भाषा-भाषी होते हैं, जो अपने साथ लाए हुए दुभाषियों का सहारा लेते हैं । 

आज अनुवाद कार्य और अनुवाद क्षेत्र का प्रचार-प्रसार अधिकाधिक हो रहा है । यही कारण है कि प्रत्येक देश की सरकार ने अनुवाद के एक स्वतंत्र विभाग की स्थापना की है । केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो, नई दिल्ली, भारतीय अनुवाद परिषद, नई दिल्ली, ट्रान्सलेटर सोसायटी ऑफ इंडिया, कोलकाता, विभिन्न विश्वविद्यालयों के अनुवाद विभाग आदि संस्थाएँ अनुवाद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहीं हैं । 


संदर्भसूची 

(1) शब्द ब्रह्म, शोध पत्रिका, पृष्ठ 35 

(2) अनुवाद कला और समस्याएँ, पृष्ठ 33 

(3) अनुवाद सिद्धांत और प्रयोग, पृष्ठ 55 

(4) बाज़ारवाद में हिन्दी, पृष्ठ 9 

(5) अनुवाद सिद्धांत और प्रयोग, पृष्ठ 36 


सहायक प्रोफेसर हिन्दी विभाग
गुजरात युनिवर्सिटी, अहमदाबाद, गुजरात ।
चलभाष - 9723527487
ई-मेल- rajendraparmar3685@gmail.com11/ [उम्मीद है, कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई होगी। और यदि पोस्ट पसंद आई है, तो इसे अपने दोस्तों में शेयर करें ताकि अन्य लोगों को भी इस पोस्ट के बारे में पता चल सके। और नीचे कमेंट करें, कि आपको हमारी यह पोस्ट कैसी लगी।]

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