विश्व हिन्दी दिवस पर बी यू के हिन्दी विभाग में हुआ अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन सम्मेलन
विश्व में भारतीयता की संवाहिका है हिन्दी : प्रो. कुमार रत्नम
(विश्व हिन्दी दिवस पर बी यू के हिन्दी विभाग में हुआ अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन सम्मेलन)
विश्व में भारतीय मूल्यों, संस्कारों एवं आदर्शों का प्रचार प्रसार आज हिन्दी के माध्यम से किया जा रहा है। हिन्दी सिनेमा ने हिन्दी भाषा को वैश्विक फलक पर उड़ने के लिए पंख दिए हैं और दुनिया के 150 से अधिक देशों में हिन्दी का शिक्षण कार्य किया जा रहा है। पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेई जी द्वारा सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी मे भाषण देने के बाद यह परम्परा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा भी कायम रखी गई है, जिससे विश्व हिन्दी के तथा भारतीयता के प्रति आकृष्ट हुआ है। योग की वैश्विक मान्यता इसी का उदाहरण है। यह उद्गार मुख्य अतिथि पद को सुशोभित कर रहे भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, भारत सरकार के सदस्य सचिव प्रो कुमार रत्नम ने विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित हिन्दी हैं हम कार्यक्रम में व्यक्त किए। कार्यक्रम में यूक्रेन से जुड़े राकेश शंकर भारती ने बताया कि रूस तथा यूक्रेन एवं यूरोप की सभी भाषाओं पर संस्कृत एवं हिन्दी का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। हिन्दी वर्णमाला ही लगभग सभी यूरोपीय देशों की वर्णमाला है। उन्होंने बताया कि रूसी और यूक्रेनी भाषा में दो को दू, चार को चितीर, आठ को अट्ठ कहा जाता है। इसी तरह भारत का चोखा आलू रूस, यूक्रेन, पुर्तगाल आदि देशों में थोड़े बहुत फेरबदल के साथ खाया जाता है। इसके अतिरिक्त भारतीय योग विज्ञान भी वहां समान रूप से प्रचलित है।
कंबोडिया से जुड़े वहां के क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष मनीष शर्मा ने बताया कि कम्बोडिया मूलतः हिन्दू देश रहा है और यहां की भाषा में हिन्दी इस तरह घुली मिली है कि यहां आकर लोगों को भ्रम हो जाता है कि वे किसी हिन्दी पट्टी के इलाके में घूम रहे हैं। कंबोडिया में दिन को दिवस, हवा को वायु आदि हिन्दी के शब्दों से ही उच्चारित किया जाता है और राम, विष्णु , शिव आदि देव यहां भी पूजे जाते हैं। अंकोरवाट मन्दिर विश्व को कम्बोडिया की अनुपम देन है।
दिल्ली से जुड़े डॉ साकेत सहाय ने कहा कि हिन्दी विश्व की चहेती भाषा है किन्तु इसे सर्वाधिक खतरा हिन्दी पट्टी के लोगों की उदासीनता से है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो देवेश निगम ने बताया कि बुल्गारिया और तुर्की में हिन्दी फिल्में समान रूप से मशहूर हैं और उनके दिलों में आज भी राज कपूर जिंदा हैं। विदेश के अपने संस्मरण बताते हुए उन्होंने कहा कि विदेशियों को हिन्दी फिल्में इसलिए अच्छी लगती हैं क्योंकि वे सुखांत होती हैं। इस तरह फिल्मे भारत की ब्रांड एम्बेसडर के तौर पर हिन्दी को आगे बढ़ा रही हैं। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संयोजक डॉ पुनीत बिसारिया ने कहा कि यदि उर्दू को बोलने वालों को भी जोड़ दिया जाए तो हिन्दी विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और भाषा वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाले पचास वर्षों में हिन्दी अंग्रेजी को पछाड़कर विश्व की सम्पर्क भाषा बन जाएगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा मातृभाषा में शिक्षण को अनिवार्य करने से हिन्दी का विकास और भी तीव्र होगा। कार्यक्रम को डॉ जयशंकर तिवारी गोंडा, डॉ राम भरोसे उत्तराखंड, डॉ योग्यता भार्गव अशोक नगर, डॉ रामकिंकर पांडेय कोरिया, डॉ शिर्ली बेबी, केरल, डॉ वन्दना तिवारी चूरू, डॉ यतेंद्र सिंह कानपुर ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर देश विदेश के अनेक शोधार्थी तथा विद्यार्थी उपस्थित थे। संचालन कार्यक्रम संयोजक एवं हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ पुनीत बिसारिया ने किया और शोधार्थी जितेन्द्र उपाध्याय ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
सामग्री के संदर्भ में अपने विचार लिखें-