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प्लैजरिज्म तथा प्लैजरिज्म सॉफ्टवेयर का प्रयोग- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

 प्लैजरिज्म तथा प्लैजरिज्म सॉफ्टवेयर  का प्रयोग

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

            "सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकांत साधना में होता है।" अनंत गोपाल शेवड़े1 के ये शब्द किसी भी साहित्यकार के साहित्य सृजन के साथ गहरे सम्बन्ध को दर्शाते हैं। एक लेखक अनगिनत बार शब्दों के गहरे सागर में डूबकर सच्चे मोती निकालता है। जिस प्रकार एक तपस्वी कई वर्षों के अथक प्रयास द्वारा अपनी साधना को प्राप्त करता है, उसी प्रकार एक लेखक भी निरंतर साहित्य की अनेक विधाओं में तपता है और अपने विचारों को पुष्ट कर लेखन को परिष्कृत करता है। साहित्यकार जब अपनी लेखनी से सृजन कार्य आरम्भ करता है तब उसके स्थूल और सूक्ष्म भावों में समरसता होती है, जिसका परिणाम उसके लेखन से  परिलक्षित होता है। एक विशेष अवस्था में स्थितप्रज्ञ की भांति साहित्यकार मनन, चिंतन के उपरान्त अपने सूक्ष्मतम भावों को शब्दों के माध्यम से उद्धृत कर पाने में सक्षम हो पाता है।

            साहित्य का सृजन समाज में हो रहीं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष घटनाओं, परिस्थितियों, स्थान, समय और काल पर निर्भर करता है। उपरोक्त कथन के अनुसार कोई भी साहित्यकार किसी विशेष समाज की, विशेष घटना को कागज़ पर बड़ी ही भावपूर्ण शैली से उतार देता है। किसी भी घटनाक्रम को यथावत भाव में उतार देना कठिन कार्य है। अपने भाव, विचार, शैली के अतिरिक्त अन्य भाव को सरलता और सुस्पष्टता से कह पाना या लिख पाना उससे भी दुरूह कार्य है। ऐसे कई चरणों से गुज़रती हुई कृति अपने शुद्धतम रूप में उभर कर आती है और पाठकों पर अपनी अमिट छाप छोड़ती है।

"प्लैजरिज्म" व साहित्यिक चोरी किसे कहते हैं ?

            इसी के साथ ही हमारे साहित्यिक समाज में एक काला पक्ष भी जुड़ा है, जो है, किसी साहित्यकार या लेखक द्वारा रचित कार्य की नक़ल करना और बिना उस लेखक के नाम एवं कार्य का सन्दर्भ दिए हुए अपने नाम के साथ जोड़कर उसका प्रकाशन कराना। जब किसी साहित्यकार की लिखी हुई अप्रतिम कृति को कोई अन्य व्यक्ति अपने नाम के साथ जोड़कर प्रकाशित करता है तब हम उसे साहित्यिक चोरी के अर्थ में लेते हैं | इसे "प्लैजरिज्म" का नाम दिया गया है | इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द "प्लैजियारस"2 से हुई है जिसका अर्थ है 'अपहरण' या धोखा  देकर निकाल ले जाना।  मर्रिंयम-वेबस्टर डिक्शनरी4 के अनुसार "साहित्यक चोरी" का अर्थ है :-

ü किसी अन्य व्यक्ति के विचारों या शब्दों को अपना बताना

ü किसी व्यक्ति के कार्य का सन्दर्भ न देना

ü एक विद्यमान स्त्रोत के मूल विचार और विषय वस्तु को पुनः नया बता कर प्रस्तुत करना .

            "साहित्य में इस शब्द का प्रयोग पहली बार 80 इसा पश्चात् रोमन कवि मार्शल (40-102 एडी) द्वारा किया जब उसे ज्ञात हुआ की फिदेनतिनस उनके काव्य का गान उन्हें बिना बताए कर रहा है तथा यश लाभ प्राप्त कर रहा है।"3 साहित्य और शोध के सन्दर्भ में यह बेहद संजीदा समस्या के रूप में सामने आयी है। सभी राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक संस्थानों में यह समस्या काफी गंभीर रूप से देखने को मिली है। इसी के चलते विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देशानुसार उच्चतर शिक्षा संस्थानों में अकादमिक सत्यनिष्ठा एवं साहित्यिक चोरी की रोकथाम को प्रोत्साहन देने हेतु विनियम-20185 लागू किया गया। अकादमिक संस्थानों द्वारा साहित्यिक चोरी हेतु दंड के प्रावधान भी किए गए। 

साहित्यिक चोरी के अंतर्गत क्या-क्या है ?

नीचे वर्णित सभी बिंदु साहित्यिक चोरी के अंतर्गत आते हैं :-

ü किसी दूसरे के कार्य को अपना बता कर प्रस्तुत करना.

ü किसी दूसरे के कार्य का बिना आभार व्यक्त किए उसके शब्द या विचार की नक़ल करना.

ü किसी उद्धरण के स्त्रोत के विषय में गलत जानकारी देना.

ü श्रेय दिए बिना किसी स्त्रोत के वाक्य रचना की नक़ल करना परन्तु शब्दों को बदल देना.

            इस समस्या को ध्यान में रखते हुए यदि किसी भी शोध पत्र/ लेख/ आलेख या अन्य अकादमिक दस्तावेजों आदि में इस प्रकार का दोष पाया जायेगा तो विश्वविद्यालय में गठित समिति द्वारा उसका निवारण किया जायेगा। परन्तु प्रश्न ये उठता है की जो लेखक किसी अकादमिक संस्थान का हिस्सा नहीं हैं यदि उनकी मूल कृति के साथ छेड़छाड़ होती है तो इस समस्या को किस प्रकार रोका जाएगा। बाज़ारवाद और भूमंडलीकरण के दौर में सहज रूप से यह जान पाना बड़ा मुश्किल सा प्रतीत होता है की कैसे मौलिक लेखन और लेखक की धरोहर और बौद्धिक संपदा को बचाया जाए।

            इस सन्दर्भ में यह कहना अतिश्योक्ति न होगा की आज 21 वीं सदी में सभी राष्ट्र तकनीकी और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत आगे निकल चुके हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने हर जगह अपनी धाक जमाई है। सूचना क्रांति ने संचार एवं संप्रेषण के विभिन्न माध्यमों ने मानव सभ्यता को नए स्तर पर पहुंचा दिया है। कंप्यूटर, इन्टरनेट, लैपटॉप, स्मार्ट फोन, मोबाइल एप, ऑनलाइन टूल्स, विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग आदि तकनीकी शब्द हम सबकी शब्दावली में स्वत: ही जुड़ गए हैं। तकनीकी क्षेत्र के बढ़ते प्रभाव से आज कोई भी अछूता नहीं रहा है। जरुरत है की हम इन साधनों का उचित प्रयोग करना सीखें। यदि हम ऑनलाइन उपलब्ध ई-टूल्स का प्रयोग मौलिक लेखन की विषय वस्तु को जांचने के लिए करेंगे तो काफी हद तक हम साहित्यिक-चोरी को रोक पाने में सक्षम होंगे। आज हमारे पास बहुत से ऑनलाइन सॉफ्टवेयर हैं जो पूरी तरह से मुफ्त हैं तथा इनका प्रयोग भी बहुत सरल है। इन्हें "प्लैजरिज्म टूल्स" के नाम से जाना जाता है। जैस ही हम गूगल पर प्लैजरिज्म टूल्स टाइप करते हैं तो सबसे पहले जिस टूल का नाम आता है वह है :-


प्लैजरिज्म टूल्स व सॉफ्टवेयर 

smallseotools.com › plagiarism-checker6

1. इस टूल की विशेषता है की यह ई-टूल प्रयोगकर्ता के लिए पूरी तरह से प्रयोग हेतु मुफ्त उपलब्ध है तथा इसका प्रयोग भी बहुत सरल है। उदहारण के लिए लिंक पर क्लिक करने पर नीचे दर्शाए चित्र 1 के अनुसार स्क्रीन दिखेगी। गहरे लाल रंग के सूचक से दर्शाए गए बॉक्स में दिए गए फाइल फॉर्मेट अपलोड किए जा सकते हैंI इसी के साथ यूआरएल को भी कॉपी कर सकते हैं।

चित्र 1





2. स्क्रीन (चित्र 2) पर बने टेक्स्ट बॉक्स में अपना लिखा हुआ लेख या विषय वस्तु को अपलोड करें या कॉपी करके पेस्ट भी किया जा सकता  है। इस बॉक्स के ठीक नीचे दो नीले रंग के बटन भी दिए गए हैं। पहले बटन पर check plagiarism  तथा दूसरे बटन पर check grammar का विकल्प दिया गया है। पहले बटन 'check plagiarism' को क्लिक करते ही यह अपलोड की हुई विषय वस्तु को यह टूल गहराई से जांचेगा।

चित्र 2


3. नीचे चित्र 3 में दर्शाए अनुसार कंप्यूटर द्वारा की गयी जांच का परिणाम देखा जा सकता है। इस परिणाम से यह ज्ञात होता है की उदाहरण के रूप में दी गयी विषय वस्तु 100 प्रतिशत शुद्ध पायी गयी है। इसी प्रकार प्रयोगकर्ता अपनी विषयवस्तु या किसी अन्य दस्तावेज़ की भी जांच सुगमता से कर सकता है। एक-एक वाक्य को पृथक करके दिखाया गया है। लाल रंग के बने बॉक्स में परिणाम देखा जा सकता हैI प्रयोगकर्ता परिणाम को डाउनलोड कर सकता है तथा रिपोर्ट को अपनी ईमेल पर भी प्राप्त कर सकता है।


 चित्र 3

 इसके अतिरिक्त ग्रेमर्ली, क्यूटेक्स्ट, कॉपीस्केप आदि ई-टूल्स भी ऑनलाइन उपलब्ध हैं जिनकी मदद से काफी हद तक विषय-वस्तु से सम्बंधित सभी पक्षों की सटीक जांच हो सकती है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देशानुसार सभी विश्वविद्यालयों द्वारा प्रौद्योगिकी आधारित एंटी प्लैजरिज्म सॉफ्टवेयर "उरकुंड" उपयोग में लाया जा रहा है। जिसका प्रयोग शोध ग्रंथों/ शोध पत्र की प्रमाणिकता जांचने की लिए किया जा रहा है। सभी अकादमिक तथा अन्य संस्थाओं को भी इसी प्रकार के एंटी प्लैजरिज्म सॉफ्टवेयर को प्रयोग करना चाहिए जिससे किसी लेखक की आत्मा का हनन होने से बचाया जा सके। मनुष्य ने जहाँ सूचना प्रौद्योगिकी को बड़ी ही सहजता से अंगीकार किया है, ऐसे में बौद्धिक सम्पदा को सुरक्षित रखना अब कोई बड़ी चुनौती नहीं है। आज जरुरत है की इलेक्ट्रॉनिक युग में हम डिजीटल माध्यमों की मदद से एक स्वस्थ लेखन संस्कृति और साहित्य का सृजन अनवरत रूप से करें।

 

संदर्भ:-

1.      (भारत कोश)https://bharatdiscovery.org/india/anantgopalshevdae

2.      https://en.विकिपीडिया.org/wiki/Plagiarism

3.      turnitin.com/ब्लॉग/5historical-moments-that-shaped-plagiarism.

4.      http://www.मर्रियम-वेबस्टर.कॉम/डिक्शनरी/ प्लैजरिज्म

5.      https://www.यूजीसी.इन/pdfnews/7044741_UGC-letter-reg-Regulations-on-Plagiarism-(1).pdf

6.      smallseotools.com › plagiarism-checker

 वरिष्ठ अनुवाद अधिकारी

राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय

j.tulsipriya@gmail.com

9810424170

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