कोरोना संक्रमण और आपदाओं के संकट में आत्मनिर्भर भारत- सामाजिक संस्कृति के परिवर्तित परिप्रेक्ष्य में : रजनी
कोरोना संक्रमण और आपदाओं के संकट में आत्मनिर्भर भारत- सामाजिक संस्कृति के परिवर्तित परिप्रेक्ष्य में
रजनी,
शोध सार
वर्तमान में,
दुनिया कोरोना (कोविद
-19) महामारी की समस्या
से जूझ रही
है। जिसके कारण
दुनिया के कई
देशों को तालाबंदी का आदेश
जारी करना पड़ा
है। इस ताले
के प्रभाव को
प्रकृति पर देखें
तो वायु शुद्ध,
जल शुद्ध, पृथ्वी
शुद्ध, आकाश शुद्ध
और अग्नि शुद्ध।
कहने का आशय
यह है कि
पूरी दुनिया का
पर्यावरण शुद्ध है।
प्रकृति प्रदूशण की
गुलाम थी। मनुष्य
इस लॉक डाउन
की स्थिति में
स्वतंत्र प्रकृति का
आनंद ले रहा
है। इतिहास हमेशा
हमें जितना हो
सके उतना विकसित
होने की चेतावनी देता रहा
है की विकास
से संस्कृति और
प्रकृति पर आधात
पहुंचाया जा रहा
है जो की
पतन की ओर
मार्ग प्रश स्त
करता है। गौतम
बुद्ध ने कहा
कि वीणा के
तार को उतना
ही कसो जितना
कि मधुर ध्वनि
निकलती है। वीणा
के तार को
इतना तंग न
करें कि वह
टूट जाए। यही
है, विकास के
तार को उतना
ही कस लें
जितना आवश्यक हो,
अन्यथा विकास के
दौरान, विकास के
तार टूट जाएंगे।
मुख्य शब्द - संस्कृति, लॉकडाउन, प्रकृति, आत्मनिर्भर भारत।
भारत जैसे विशाल
संस्कृतियों भरे
देश को एकता का
प्रतीक माना जाता है
जिसे कभी प्रश्न के कटघरे में
किसी ने खड़ा करने
का प्रयास नहीं
किया। यहां कि संस्कृति
और परंपरा ही
एकता का सबसे बड़ा
स्रोत है। इस परंपरा
को जो अब तक
न हिला सका उसे
एक संक्रमण ने
हिला कर रख दिया।
यह परिस्थिति केवल
भारत में ही नहीं
अपितु यह पूर्ण विष्व
में एक महामारी के
रूप में उभरी है
जिसका प्रारंभ चीन
से होकर भारत तक
पहुंचा। जहां इसने भारत
की व्यवस्था को
जड़ से हिला दिया,
इसने आर्थिक व्यवस्था
के साथ-साथ राजनीतिक
और सामाजिक, धार्मिक
व्यवस्था को भी झुकने
पर विवश कर दिया है।
इसका सबसे अधिक प्रभाव
भारत में मंदिर, मस्जिद,
चर्च के साथ लोकप्रिय
उत्सव के रूप में
मनाएं जाने वालों त्यौंहारों
पर भी देखने को
मिला जैसे नवरात्रे, हनुमान
जयंती, श ब्ब-ए-रात, रोज़े
इत्यादि। जिसे सरकार द्वारा
दिषा-निर्देषों के उपरांत
बंद करने के आदेश के साथ भक्तों
का दौरा करने पर
भी पाबंदी लगा
दी गयी, कन्या
भोजन, ईद पर मिलने
को निशिद्ध किया
गया।
परंतु
इस प्रकार के आदेश के अंतराल में जनता के द्वारा किए जाने वाले पालन में कुछ ऐसे भी असामाजिक तत्व शामिल थे जिन्होने अपने धार्मिक प्रकारों को राजनीतिक रंग चढ़ाने का कार्य करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है तब्लीगी जम़ात। 13-15 मार्च को इस समूह द्वारा आयोजित एक धार्मिक सभा ने भारत में सबसे बड़ा कोरोना वायरस फैलाने करने में अहम भूमिका निभाई है, उसी
प्रकार जैनो द्वारा भी कुछ परिस्थितियां उत्पन्न की गई, परंतु
इस पर सरकार द्वारा निंयत्रण करने के प्रसासों मे काफी सीमा तक सफलता प्राप्त की है।
भारत
की प्रकृति, संस्कृति
को संरक्षण प्रदान
करने का कार्य इतिहास ने भरपूर किया है, वहीं
दार्शनिको ने भी अपने तरीको से समझाने का प्रयत्न किया है- जैसे
हॉब्स द्वारा एक कथन में कहा गया कि व्यक्ति पशु की
भांति और स्वार्थी होता है जो अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को हानि पहुंचा सकता है और वैष्वीकरण के युग की हानि को रूसों ने अपने शब्दों में स्पश्ट किया कि विज्ञान और विवके ने समाज को क्श ति की ओर प्रेरित किया है तो वहीं भारतीय दार्शनिक स्वामी विवेकानंद का वेदों की ओर लौटो की ओर संकेत करते है। यह सभी कथन और विचार आज यर्थाथ प्रतीत होते है इन्हे वर्तमान युग में मान्य देखा जा सकता है जिसका आशय प्रकृति और मानव से लगाया जा सकता है। कहा जाता है की प्रकृति से सब की रचना है जिसमें मानव भी शामिल है परंतु इसी मानव ने उसी प्रकृति को नष्ट करने
का भरपूर प्रयास किया है। भारतीय दर्शन जो सत्य की खोज के साथ अध्यात्म पर बल देता है वह नैतिकता और कर्मो की भाषा को
भी दर्शाता है
जिसका साक्ष्य वर्तमान युग में आने वाले जैसे कोरोना संक्रमण और उसके साथ में आने वाली आपदाओं के रूप में देखा जा सकता है जो इस बात का साक्ष्य है कि प्रकृति को जो हानि मानव द्वारा पहुंचाई गई है उसकी भरपाई अब प्रकृति स्वयं मानव से ही करने लगी है और यह प्रकृति का संकेत प्रथम बार नहीं है जो मानव को दिया गया है मानव सभ्यता को इस बात पर चेताया भी गया है, इसे
तीन रूपों में देखा जा सकता है-
1. संक्रमण
के रूप में- संक्रमण
के रूप से आशय जब कोई भी बीमारी कम समय में तीव्र गति से फैलने लगे तो महामारी कहा जाता है इसका प्रारूप प्राकृतिक और निर्मिती के आधार पर देखा जा सकता है और आज इसका रूप कोरोना के रूप में जाना जा रहा है। इस प्रकार के संक्रमण भारत या पूर्ण विश्व में प्रथम सूची में नहीं देखें जा सके यह आज के समय में 114 देषों
से अधिक में फैला है जिसे डब्लू. एच. ओ. ने
इसे महामारी घोशित किया है, परंतु
इसका आगमन पुराने समय से विभन्न रूपों में देखा जा सकता है। महामारियों का अपना ही इतिहास है जिसने 14वीं
शताब्दी में यूरोप के 70 प्रतिश
त लोगो
को प्रभावित कर जान ले ली थी। अंग्रेजी में महामारी के लिए 2 भिन्न
श ब्द
का प्रयोग होता है- प्रथम
बिडेमिक अर्थात वो बिमारी जो किसी एक क्षेत्र या देश में तीव्र गति से फैले परंतु जैसे ही कोई बीमारी किसी देश की सीमाओं से बाहर निकलकर दूसरे देश में फैलने लगती है तो उसे पेनेडेमिक कहा जाता है और यह प्रथम बार नहीं है कि किसी बीमारी को महामारी घोशित किया गया हो। इससे प्रथम वर्ष 2009 में
इसे महामारी घोषित किया जा चुका है तब पूर्ण विष्व में 200000 से
अधिक लोग स्वाइन फ्लू की चपेट में आने से मारे गए थे। ऐसे ही भारत में स्वाइन फ्लू और कोरोना वायरस से पहले भी तीन महामारियां वर्ष 1940, 1970, 1995 में घोशित की जा चुकी है। 1994 में
सितंम्बर के माह में गुजरात के सूरत में प्लेग से एक व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत इस मृत्यु के आकड़ों में वृद्धि हुई और स्वतंत्रता के उपरांत 25 प्रतिश त जनसंख्या
ने पलायन किया जिसे स्वतंत्रता के बाद का का सबसे बड़ा पलायन कहा गया। जहां बिहार और उत्तर प्रदेश की बड़ी संख्या रह रही थी जिसके पलायन से प्लेग अन्य स्थानों पर फैला और गांव के गांव समाप्त हो गए। सत्या्रह की एक रिर्पोट के अनुसार देश में 108 हजार
करोड़ की हानि हुई, लंदन
में इण्डिया के प्लेन को ’’प्लेग
प्लेन’कहा गया
वहीं ब्रिटिश समाचार पत्रों में इसे मध्यकालिन श्राप की संज्ञा दी गई। गुजरात के बाद यह अहमदाबाद और हैदराबाद में फैला। प्लेग फैलने का कारण चूहों को बताया गया। 1853 में इसके लिए एक जांच कमीश न नियुक्त
किया गया यह 1876,
1898, फैला।
वहीं 1940 के दश क में
फैला कॉलरा जिसे हैजा कहा जाता है जिसका मुख्य कारण दूषित जल
रहा। जिस पर बाद में 1975 में
और 1990 के
दशक में टीके के कारण इस पर नियंत्रण पाया गया। 1960 के आस-पास
भारत में फैलने वाले चेचक से 18 वी. शताब्दी के प्रारंभ में ही हर वर्ष 4 लाख
लोग मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे और 20वी. सदी में विष्व में करोड़ो लोगो की मौत हुई है।
2. आपदा
के रूप में- सूखा, बाढ़, चक्रवाती
तूफानों, भूकम्प, भूस्खलन, वनों
में लगनेवाली आग, ओलावृष्टि, टिड्डी दल और ज्वालामुखी फटने जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है, न
ही इन्हें रोका जा सकता है, लेकिन
इनके प्रभाव को एक सीमा तक कम अवष्य किया जा सकता है, जिससे
कि जान-माल
की कम से कम हानि हो। यह कार्य तभी किया जा सकता है, जब
सक्श म रूप
से आपदा प्रबंधन का सहयोग मिले। प्रत्येक वर्ष प्राकृतिक
आपदाओं से अनेक लोगों की मृत्यु हो जाती है। परंतु इन आपदाओं का वर्तमान युग में एक विशेष स्थान
है जिसका कारण कोरोना संक्रमण को कहा जा सकता है इसे कुछ विशेष ज्ञों द्वारा ईष्वर की मानव पर दोहरी मार भी कहा जा रहा है क्योंकि जहां अभी विष्व में कोरोना जैसी बीमारी से सुरक्षा प्राप्त नहीं हुई है कि अन्य प्रकार की घटनाएं अपना प्रकोप दिखाने लगी है-उदाहरणस्वरूप
भूकम्प जो भारत में 2 मई
और फिर 15 मई
और फिर इसकी संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिली। अप्रैल और मई में चिली, मैक्सिको, इंडोनेषिया, कोलंबिया, ग्रीस, जापान, ब्रिटेन, साउथ कोरिया आदि में यह देखने को मिला। इसी प्रकार बिना मौसम के होने वाली निंरतर बारिश जो मानवता को नष्ट करने
की ओर अग्रसर है जिसका हाल ही में उदाहरणस्वरूप इम्फान और निसर्ग जैसे तूफानों का दस्तक देना तो दूसरी ओर लोक्ट्स टिड्डी का आक्रमण रहा है।
3. मानव
निर्मित संकट- अभी
हाल ही में भारत के विषाखापत्ट्नम और साउदी अरब में होने वाला गैस रिसाव, साउदी
अरब जैसे कई देषो के कुछ इमारतों में लगने वाली भंयकर आग और भूख तथा लॉकडाउन के चलते लोगो का अपने वाहनों में गति के नियंत्रण में न होने
के कारण दुर्घटनाओं का होना और रेल द्वारा लोगो की मृत्यु इत्यादि घटनाओं का होना मानव नियंत्रण में है जिसे रोका जा सकता है, परंतु
यह सब राजनीति की चपेट में है।
1. अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता
वैसे
तो समकालीन दुनिया ने 2008 की
मंदी का दौर भी देखा था, जब
कंपनियां यकसाथ बंद हुईं थीं और एक साथ कई सौ-हजार
लोगों को बेरोजगार भी होना पड़ा था। परंतु यह समय उससे भी अधिक खराब हो सकता है। क्योंकि उस समय तो एयर कंडिशन जैसी चीजों पर टैक्स कम हुए थे। तब, सामान
की कीमत कम होने पर भी लोग उसे खरीद रहे थे, लेकिन
लॉकडाउन में सरकार यदि अपना टैक्स जीरो भी कर दे तो भी उसे कोई खरीदने वाला नहीं है। लिहाजा, विशेष
ज्ञ
मौजूदा स्थितियों को सरकार के लिए भी बहुत ही चुनौतीपूर्ण मान रहे हैं। क्योंकि अचानक ही उसके सामने कोरोना त्रासदी से उपजे लॉकडाउन जैसी एक विशाल समस्या आ खड़ी
हुई है। यहां यह स्पष्ट कर दें कि 2008 के
दौर में तो कुछ कंपनियों को आर्थिक सहायता देकर संभाला गया था। लेकिन, आज
यदि सरकार ऋण भी दे तो उसे सभी को देना पड़ेगा। क्योंकि हर सेक्टर में उत्पादन और खरीदारी प्रभावित हुई है। किंतु सरकार सबको लोन देने का जोखिम कितना उठा पाएगी, यह
समय बताएगा। बहरहाल, इस
बात में कोई दो राय नहीं कि कोरोना वायरस का प्रभाव पूर्ण विष्व पर पड़ा है। चीन-अमेरिका
जैसे बड़े देश और मजबूत अर्थव्यवस्थाएं भी इसके सामने लाचार दिखाई दे रहे हैं। इटली-फ्रांस
की हालत से सभी वाकिफ ही हैं। इस कोरोना त्रासदी से भारत में विदेशी निवेश के जरिए अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने की कोशिशों को भी बड़ा धक्का पहुंचेगा। क्योंकि जब विदेशी कंपनियों के पास भी पैसा ही नहीं होगा तो वो निवेश में भी रूचि नहीं दिखाएंगी। हालांकि, जानकारों
का यह भी कहना है कि अर्थव्यवस्था पर इन स्थितियों का कितना गहरा असर पड़ेगा, यह
निकट भविष्य में घटित होने वाली दो बातों पर निर्भर करेगा। पहला तो ये कि आने वाले समय में कोरोना वायरस की समस्या भारत में और कितनी गंभीर होती है, और
दूसरा ये कि कब तक इस पर काबू पाया जाता है। अब जो भी हो, लेकिन
किसी भी नेतृत्व के लिए यह स्थिति किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। परंतु इस समस्या से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार देश के सामने ‘आत्मनिर्भर
भारत’ का
खाका पेश किया। सीआईआई की 125वीं
सालगिरह पर पीएम मोदी ने कहा कि भारत को फिर से तेज विकास के पथ पर लाने के लिए, और
अर्थव्यवस्था संभालने के लिए आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए 5 चीजें
बहुत जरूरी हैं. ये
हैं- Intent,
Inclusion, Investment, Infrastructure, InnovationA इन सभी की झलक लिए गए अब तक सभी निर्णयों में मिल जाएगी। महिलाएं हों, दिव्यांग
हों, बुजुर्ग
हों, श्रमिक
हों, हर
किसी को इससे लाभ मिला है। लॉकडाउन के अंतर्गत सरकार ने गरीबों को 8 करोड़ से ज्यादा गैस सिलेंडर उपलब्ध कराए हैं। साथ ही प्रवासी श्रमिकों के लिए भी मुफ्त राशन पहुंचाया जा रहा है। कोरोना के खिलाफ अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत करना, हमारी
पहली प्राथमिकता में से एक है। अधिक कमाई के रास्तों को जैसे मदिरा के ठेके, दुकानों, रेस्टरॉन को पुनः प्रारंभ किया गया।
2. सामाजिक व्यवहार और संस्कृति
जिस
प्रकार भारत की अर्थव्यवस्था चरमराई है, उसी
प्रकार इसका विपरित रूप सामाजिक व्यवहार में संबंधो को लेकर देखने को मिला है उदाहरणस्वरूप विवाह, षोक
समारोह, जन्म
समाहरोह या अन्य कोई भी पार्टी। इस प्रकार के समारोंह में जहां कोरोना से पूर्व दिखावे के जलसे अधिक देखनें को मिलते थे, लोगों
की भीड़ उमड़ पड़ती थी, सबसे
बड़ी समस्या मध्यमवर्गीय के लिए उत्पन्न होती थी कि उसे अपनी हैसियत से अधिक देने के लिए विवश होना पड़ता था, फिर
भले ही विवाह हो या जन्म का समारोह। परंतु इस कोरोना के काल ने इस प्रकार की दिखावी परंपरा को तोड़ कर रख दिया है जिसका वर्णन हमारे षास्त्र भी नहीं करते। वहीं सबसे बड़ी राहत दहेज प्रथा पर बहुत हद तक रोक देखने को मिली है जिसके कारण कई लोग कर्जे के षिकार होते तो कई षोशण और अत्याचार और घरेलू हिंसा के तो कई आत्महत्या के षिकार होते थे। दहेज प्रथा को जिसे अब तक सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद नियंत्रित न किया
जा सका उसे इस कोरोना ने नियंत्रित कर दिया। वहीं सरकार के निर्देषो अनुसार 20 से 50 तक
लोगो की संख्या सीमित कर दी गई। वहीं इसने पारिवारिक महत्वता की समझ को बढाया है जहां मनुष्य अपने
फोन, मोबाईल, ऑफिस जैसे कार्य और रोजगार के लिए परिवार से अलग होना महत्वपूर्ण समझता था वहीं आज उसे अपने परिवार तक पहुंचने के लिए प्रयास करना पड़ रहा है। अपने जीवन की चिंता किए बिना अपने परिवार के पास लौटने के लिए ललायित है। सामाजिक जीवन से अत्यंत प्रिय अब परिवार का साथ लगने लगा है। सनातन संस्कृति जो हाथ जोड़कर प्रणाम करना अपनी विरासत समझती थी, वह
भी पश्चिम की नकल कर आलिंगन में ही आधुनिक होने की तस्वीर देख रही थी, ऐसे
में जब विश्व गुरु कहलाने वाले विभिन्न देश ही हमारी संस्कृति की अनुगामी बनने को तैयार खड़ी हो।
· आलोचनात्मक मूल्यांकन
21वीं सदी की दुनिया को लॉकडाउन किया गया है। जिस प्रकार प्रकृति खिलकर अपने यौवन को प्रदर्शित कर रही है, उसी
प्रकार कोरोना की मार वैश्विक स्तर पर काफी व्यापक है। कोरोना की त्रासदी संग मानव जाति जीने की जीवंतता भी अभिव्यक्त कर रही, वह
सुखद पहलू है। इन सब के बीच प्रकृति जैसे-जैसे
अपने यौवन का श्रृंगार कर रही, ऐसे
में वह कहीं न कहीं
मानव समाज से अपने प्रतिशोध की खुशी व्यक्त कर रही है।
आज
मनुष्य घरों
में प्रकृति के बंदी है, इंसानी
गतिविधियाँ ठप्प हैं। इन सब के बीच आसपास का वातावरण और अन्य जीव-जन्तु
कलरव कर यह संदेश दे रहे कि मानव मस्तिश्क भले कोरोना को “चीनी-वायरस” या
अन्य नाम देकर अपनी कर्तव्यों से दूर भागने की कोशिश कर लें, लेकिन
वास्तव में यह प्रकृति द्वारा ली गयी अंगड़ाई है। परंतु सामाजिक व्यवहार में होने वाले परिवर्तन ने कहीं न कहीं
पष्चिमीकरण की ओर भी रूख किया है-जैसे
व्यक्तिगत जीवन जीना जो हमारी संस्कृति में हमारे वेदो में नहीं देखने को मिलता। मानव से दूरी बनाए रखना जिसका परिणाम मनुष्य ने
मानवता से भी दूरी बना ली है। सामाजिक दूरी से मानवता से दूरी की ओर उन्मुख हुआ है, पिता, मां, भाई
पत्नि की मृत्यु पर सहारा देने के बजाए उनसे मुंह मोड़ने लगे है, वहीं
लोगो को भूखमरी, दरिद्रता, और आपदाओं जैसे संकट का सामना करना पड़ रहा है।
3. निष्कर्ष
निष्कर्षतः
कहा जा सकता है की कोरोना का संक्रमण न किसी
धर्म से समाप्त हो सकता और न ही
किसी राजनीति के धृणित खेल से, इसे
समाप्त करने हेतु आवष्यकता है कि समाज को हिंदू-मुस्लिम
जैसे साम्प्रदायिक श ब्दों
में न जकड़कर
पुनः एकता के साथ लोकतंत्र को बचाएं रखने का प्रयास करना आवष्यक है जिसे सरकार के द्वारा दिए गए दिषा-निर्देषो
का पालन करने के उपरांत ही प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही इसके नकारात्मक प्रभाव के साथ इसके सकारात्मक प्रभाव देखने को मिले- प्रथम
इसने परिवार षैली को अधिक बढ़ावा दिया जहां लोग परिवार से दूर रहने के लिए तत्पर रहते थे वह अब परिवार के पास लौटने के लिए जान की बाजी लगाने को भी तत्पर है। दूसरी ओर इसने वेदों की ओर लौटो जैसे मोदी जी द्वारा दिए गए ’दीये
जलाने’ के
संदेश को जो की ऊर्जा के स्रोत का प्रतीक है, वहीं
तीसरा धार्मिक मान्यताएं जो लोगो में थी वह सभी परंपराओं को कोरोना घर पर बंद करके भी समाप्त नहीं कर पाया। नियमित होने वाले कार्यो में सभी कार्यो को भली-भांति
संपन्न कि गया, चौथा
कार्य कट्टर धार्मिकता को समाप्त कर समाज सेवा की ओर लोगो को अग्रसर होते देखा गया है। वहीं कुछ अस्पतालों और चिकित्सकों के साथ होने वाला दुश्कर्म जिसे मुसलमानों द्वारा जो तब्लीगी जमात से जुड़े हुए थे द्वारा होने वाली घटना जिसके कारण यह आरोंपो के घेरे में आए है उन्हें नकारा नहीं जा सकता।
वहीं
इस प्रकार की होने वाली घटनाएं जो प्रकृति की मार के साथ मानव की ही मार मानव को नष्ट करने
पर उतारू है। कोरोना जैसा संक्रमण अपने साथ प्राकृतिक और मानव आपदा दोनो को ही साथ लेकर आया है। जहां प्रकृति ने स्वयं की भरपाई मानवता से करने का प्रयास किया है उदाहरणस्वरूप वर्तमान में होने वाली सभी प्रकार की नदियों का जल षुद्धता में गुणवत्ता को प्राप्त करने में अधिक सफल रहा है, वहीं
दूसरी ओर प्रकृति की वायु में फैली विशैली वायु ने स्वयं को स्वच्छता प्रदान की है। इसी प्रकार अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए गांवों को सशक्त किया जाएँ। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दी जाएँ। इससे दो फायदे होंगें- आगामी
भविष्य में कभी संकट काल आएगा तो सम्पूर्ण देश एकाएक बन्द नहीं होगा और दूसरा लोगों को अपने आसपास के क्षेत्रों काम मिल पाएगा। चौथी बात हमें ही नहीं सम्पूर्ण विश्व को विकास के साथ प्रकृति के संरक्श ण की
बात को हमेशा जेहन में रखनी होगी। इसके अलावा जिस दिन मानव समाज ईमानदारी के साथ पर्यावरण के प्रति वफादारी और शाकाहार के साथ अपने पुरातन संस्कार को आत्मार्पित कर लेगा, कोरोना
जैसी विपदा से डरकर घर में छिपने की नौबत नहीं आएगी।
संदर्भ
· शेख, नोवुल; राबिन, रोनी कैयर्न (10 मार्च 2020)। "द कोरोनावायरस: वैज्ञानिकों ने अब तक क्या सीखा है"। न्यूयॉर्क टाइम्स। 24 मार्च 2020 को लिया गया।
· रेगन, हेलेन; मित्रा, एशा; गुप्ता, स्वाति (23 मार्च 2020)। "भारत कोरोनोवायरस से लड़ने के लिए लाखों लोगों को बंद कर देता है"। सीएनएन।
· "कोरोनोवायरस आशंकाओं के बीच भारत में 100 मिलियन से अधिक लोग बंद हैं"। अल जज़ीरा। 23 मार्च 2020।
· "भारत के कोरोनावायरस लॉकडाउन: यह कैसा दिखता है जब भारत के 1.3 बिलियन लोग घर रहते हैं"। Ndtv.com। 22 फरवरी 2019। 11 अप्रैल 2020 को लिया गया।
· "17 मई तक लॉकडाउन विस्तारित: क्या खुलेगा, बंद रहेगा"। Livemint। 1 मई 2020. 14 मई 2020 को लिया गया।
· रे, देवराज; सुब्रमण्यन, एस।; वांडेवेल, लोर (9 अप्रैल
2020)। "भारत का तालाबंदी"। भारत मंच।
शोधार्थी,
राजनीति विज्ञान विभाग,
दिल्ली विश्वविद्यालय ,
ईमेल riya7116@gmail.com,
संपर्क 9716452972
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