संगीत चिकित्सा (रक्तचाप एवं मानसिक रोगियों के संदर्भ में) - श्रीमती रचना सिंह
संगीत चिकित्सा
(रक्तचाप एवं मानसिक रोगियों के संदर्भ में)
श्रीमती रचना सिंह
संगीत के द्वारा कई मानसिक रोगियों के मस्तिष्क के विचार व भाव पक्ष को जागृत करने का कार्य कई चिकित्सालयों में सफलतापूर्वक किया जा चुका है। हास्य चिकित्सा के द्वारा भी अनेक रोगों का उपचार किया जा रहा हैं। जैसे हृदय रोग, मधुमेह, नेत्र रोग आदि प्रभावित हुये हैं, यह थैरेपी अत्यधिक लोकप्रिय हो रही है। मनोविज्ञान क क्षेत्र में संगीत के द्वारा ही जाने वाली उपचार विधि के अत्यधिक सकारात्मक निष्कर्ष सामने आये है आज भारत में कई चिकित्सक संगीत के माध्यम से रोगियों का उपचार कर रहे है वर्तमान समय में युवा पीढ़ी अनेक मानसिक और शारीरिक दुष्परिणामों में इतना अधिक ग्रसित हो गई है, ऐसी परिस्थितियों में सम्पूर्ण परिवेश को सौम्य, सुन्दर, मधुर, शान्त बनाने में एवं शारीरिक मानसिक उद्दिग्नता में सहयोगी संगीत की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हो रही हैं।
संगीत एवं चिकित्सा
हमारा इतिहास इस बात का गवाह है कि संगीत पत्थर को भी पिछला सकता है, तथा मदमस्त हाथी को भी अपने वश में करने की क्षमता रखता हैं। संगीत मनोरंजन की दृष्टि से अत्यधिक आनन्द देने वाला साधन माना गया है लेकिन इसे मनोरंजन के सीमित संकुचित दायरे में सीमित रखना सम्भव हैं। क्योंकि इसका चिकित्सकीय दृष्टिकोण भी अपना विशेष महत्व रखता है, गायन, वादन, नृत्य तीनों ही संगीत चिकित्सा में अपना पृथक-पृथक महत्व रखते हैं। आज अत्यधिक व्यस्तता के दौर में व्यस्त दिनचर्या व असंतुलित खान पान के कारण होने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों में उपयुक्त औषधियों के साथ ही साथ यदि संगीत चिकित्सा का भी प्रयोग किया जाए, तो निश्चित ही हमें, इसका बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। ऐसा आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा भी सिद्ध हो रहा हे।
आज के युग में जब विज्ञान ने चिकित्सा जगत में अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हैं। ऐसे चुनौती भरे समय में संगीत चिकित्सा ने अपने प्रभावी परिणामों से चिकित्सा जगत को नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है- संगीत के अतिरिक्त कोई ऐसा विज्ञान नहीं है जो मानव स्वभाव और व्यवहार को विकसित करें, मनुष्य को व्यवहारिक एवं कुशल बनाये साथ ही बुद्धि को भी विकसित करें। संगीत मनुष्य के शारीरिक, मानसिक विकास के लिए लाभप्रद है। (3) संगीत शान्ति प्रदान करता हैं। संगीत चिकित्सा मानसिक तनाव, खिचाव और निराशा पर पूर्ण रूप से कारगर हैं।
संगीत शरीर की आन्तरिक क्रियाओं (डमजंइंसपब ंबजपअपजपमे) पर भी प्रभाव भी डालता है।
संगीत हमारी श्वसन क्रिया को तेज करता है, निराशा को दूर करता है।
पं0 रविशंकर द्वारा राग काफी, मिश्रमाड, पूरिया, धनाश्री और रागेश्वरी रागों के वादन से एक 25 मिनट का टेप तैयार किया गया हैं। जिसका रोगियों पर सकारात्मक प्रभाव देखा गया हैं भारतीय संगीत के राग आदि उत्सावर्धन और प्रफुल्लता धोतक हैं इनके प्रयोग के परिणामों को देखने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि भारतीय राग रागनियों से आशापूर्ण फल प्राप्त हुये हैं। वास्तव में स्वरों के उच्चारण के ढ़ंग राग, गायन, वादन की गति तथा स्वरों की तारता तथा तीव्रता पर बहुत कुछ रोग चिकित्सा निर्भर करती है।
पं0 जगदीश नारायण पाठक ने अपनी पुस्तक संगीत निबन्ध माला में रागों के रोगों से संबंध एवं उपचार का वर्णन किया हैं।
पागलपन (बहार, बागेश्री), मिरगी- (विहाग-धानी), सिरदर्द (सोहनी, तोड़ी, भैरवी) रक्तचाप (पूर्वी, तोड़ी) हिस्टीरिया (खमाज, दरवारी कान्हडा, पूरिया) क्षयरोग (तिलंग, विलावल, मुल्तानी, रामकली तथा मलेरिया (हिण्डोल, मारवा))
संगीत प्रत्यक्ष रूप से मनोविकारों से उत्पन्न व्याधियों के उपचार में भी सहायक हैं। व्याधियों का कारक मुख्यतः तनाव होता हैं। जिसके कारण अनिद्रा रोग से ग्रसित को संगीत चिकित्सा द्वारा उपचार देने से अत्यन्त सार्थक प्रभाव पड़ता है।
‘‘अमेरिका के एक चिकित्सक ने संगीत को नींद की गोली कहा है।’’1
प्रो0 शर्मा के अनुसार पं0 ओंकारनाथ ठाकुर ने अपने गायन द्वारा कई दिनों तक लगातार जागते रहने वाले मुसेलिनी को सुला दिया था इससे सिद्ध होता है कि उपयुक्त संगीतकार और डाॅ0 मिलकर अनिद्रा से पीड़ित रोगियों को सुला सकते हैं। राग भैरवी अच्छी निद्रा, राग शिवरंजनी स्मरण शक्ति बढ़ाने में, राग तोड़ी तनाव कम करने में सहायक सिद्ध हुई हैं। दुखी हृदय पर राग नट भैरव मरहम का काम करता है। शुद्ध रिषभ का स्वर व्यक्ति में आशा का संचार करता है।
‘‘रक्तचाप वाले रोगियों तथा मन्द्र-मध्य लय में बजाई गई धुनें उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगियों को लाभ पहुँचाती है अर्थात् वैज्ञानिक, लय और स्वर का प्रयोग मस्तिष्क को सुधारने एवं मानसिक कष्ट को कम करने एवं उच्च रक्तचाप को नियंत्रण करने में सहायक होता हैं।’’2
‘‘डाॅ0 सुभद्रा चैधरी ने हाॅलैण्ड की यात्रा में बने बुक शहर के एक मानसिक अस्पताल में राग पूरिया गाकर अनिद्रा रोगियों पर सफल प्रयोग किया।’’3
‘‘रूसी वैज्ञानिक’’ डाॅ0 वेरिवनिस्की ने अपने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया है कि कुछ रागात्मक बंदिशों द्वारा अनिद्रा दूर की जा सकती हैं।’’4
मनोरोगियों के संदर्भ में जो शोध हुये उनके आधार पर कहा जा सकता है कि उदासीनता, डिप्रेशन तथा अन्य मनोरोगों में राग बिहाग, मधुवन्ती लाभकारी हैं। राग जय जयवन्ती एवं सोहनी भी तनाव कम करने में समर्थ है।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। शहरी सभ्यता ने आज हमारे जीवन में नये प्रकार के तनाव एवं मानसिक जड़ता को जन्म दिया है आज के इस युग को हम तनाव का युग कह सकते है। तनाव व्यकि के दैहिक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों प्रकार के कार्यो को प्रभावित करता है।
उक्त रक्तचाप एवं मानसिक रोगियों के संदर्भ में पूर्व किये गए प्रयोग एवं शोध निष्कर्ष प्रमाणित करते है कि रोगों के हिसाब से रागों को नियमानुसार सुना जायें यह प्रक्रिया लाभप्रद एवं प्रभावशाली साबित हुई है। सामान्यतः तनाव, मानसिक रोग, रक्तचाप आदि बीमारियों से बचा जा सकता है।
‘‘इन्नस 1969 के सिद्धान्त के अनुसार’’ कुछ व्यक्ति अपने व्यक्तित्व में क्रोध एवं रोष का तूफान छिपा रखते है। भले ही वह ऊपर शान्त दिखाई देते है। ऐसे व्यक्तियों में हाइपरटेंशन का रोग उत्पन्न होने की संभावना तीव्र होती है।’’5
1. भारतीय संगीत एवं मनोविज्ञान ‘वसुधा कुलकर्णी पृ0-140
2. संगीत चिकित्सा भाग-1 सम्पादक संगीता श्रीवास्तव
3. संगीत संजीवनी डाॅ0 लावण्य कीर्ति पृ0-31
4. भारतीय संगीत का इतिहास ‘उमेश जोशी’ पृ0-213
5. आधुनिक सामान्य मनोविज्ञान ‘‘अरूण कुमार सिंह’’ पृ0-345
एम0ए0, एम0फिल0
बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी
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