हिंदी भाषा का अखिल भारतीय वैश्विक स्वरुप
Hindi bhasha
हिंदी भाषा का अखिल भारतीय वैश्विक स्वरुप
- डॉ.मजीद शेख
आज हिंदी जिस जगह और जिस रुप में खड़ी है, वह अखिल भारतीय
और वैश्विक स्वरुप
है। भारत की संस्कृति और राजनीति की भाषा है। इसका दायरा
लगातार बढ़ रहा है जिसे
सही दिशा में और आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। वह दिन दूर नहीं
जब हिंदी भारत
की शिक्षा, संस्कृति और सभ्यता के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान
की भाषा के रुप में स्थापित होगी।
हिंदी
विकासशील भाषा है और समय के साथ होनेवाले परिवर्तनों को यह स्वीकार
कर रही है। हिंदी केवल
भारत में ही नहीं, दुनिया
के 30 से अधिक देशों
में बोली जाती
है। हिंदी सर्वमत
स्वीकार्य स्वाधीनता आंदोलनकी भाषा रही है। पूरे
स्वाधीनता आंदोलन में हिंदी को लेकर किसी
भी तरह का न तो विरोध रहा है और न ही ऐसा कोई भाव। स्वाधीनता आंदोलन के समय हिंदी देश की जुबान
के रुप में विकसित हुई, परंतु स्वतंत्रता के बाद इसका
रुप भी बदल गया और इसे राष्ट्रभाषा बनानेवालों के भाव भी बदल गये। स्वतंत्रता के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर
पर ज्ञान-विज्ञान
को बनाए रखने
के लिए अंग्रेजी को बनाए रखने
का निर्णय किया
गया। इस दृष्टि
से एक बहुत
महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसे उठाया
नहीं जाता। वह यह कि जब भारत
स्वतंत्र हुआ उस समय कई ब्रिटिश कालोनियों को आजादी मिली।
विश्व के कई देश आजाद
हुए, उनमें अफ्रीका
भी था। अफ्रीका
देशों ने अपना
सबकुछ़ छोड़ दिया
और अंग्रेजों की न सिर्फ
भाषा, बल्कि संस्कृति को भी हूबहू
अपना लिया, स्वीकार
कर लिया। अब यह सोचना
चाहिए कि विकास
की दृष्टि से वे देश आज कहां
खड़े हैं? वे सभी अविकसित
राष्ट्र की सूची
में शामिल हैं।
अब एशिया के कुछ़ देशों
के बारे में भी जानना
चाहिए। कोरिया, जापान, चीन में कौन-सी भाषा स्वीकार
की गई? ये सभी देश भारत के आस-पास ही आजाद
हुए और आज कहां खड़े हैं, भाषा
के संदर्भ में यह गंभीर
विचार का विषय
है। जब इजराइल
आजाद हुआ तो उसके पास अपना कुछ़
भी नहीं था, लेकिन उसने
हिब्रू में ही काम करने
का निश्चय किया।
आज दुनिया में प्रतिवर्ष सर्वाधिक पेटेंट करानेवाला राष्ट्र
इजराइल है। भारत
के 70 वर्षों
के भाषाई ज्ञान-विज्ञान का परिणाम है कि एक साधारण मशीन, जो हमारे
रोजमर्रा के उपयोग
में आए, ऐसा कुछ़ भी हम ने डिजाइन नहीं
किया। हम जो भी टेक्नॉलॉजी उपयोग करते हैं या तो चीन की है, जापान
की है या कोरिया की है। फिर हम ने तो वही भाषा सीखी
जो भाषा अंग्रेजों की थी। ऐसा क्यों हुआ इस पर हमें पुनर्विचार करना आवश्यक है।
Ø राजभाषा हिंदी की स्थिति :-
15 अगस्त, 1947 ई. को देश स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता के बहत्तर वर्ष
पश्चात् भी हम सही मायने
में मानसिक रूप से आजाद
नहीं हुए। संविधान
निर्माण के समय 'राजभाषा' (Official
language) का प्रश्न
जब सामने आया तो राजभाषा-हिंदी को लेकर
सबसे अधिक बहस हुई। संविधान
सभा की प्रारुपण समिति के अध्यक्ष
डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर
जी के शब्दों
में, "संविधान का कोई भी अनुच्छेद इतना विवादास्पद साबित
नहीं हुआ जितना
राजभाषा हिंदी से सम्बध्द अनुच्छेद। अन्य किसी अनुच्छेद ने इतनी गर्मी
पैदा की।" संविधान
के 17 वें भाग में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा
संबंधी प्रावधान हैं।
संविधान सभा ने इन अनुच्छेदों को अंतिम रूप से 14 सितंबर, 1949 ई. को सर्वसम्मत से स्वीकृत किया
था। इसी कारण
14 सितंबर
को 'हिंदी-दिवस' के रूप में मनाया जाता
है। राष्ट्रभाषा प्रचार
समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 ई. से 'हिंदी-दिवस' मनाना प्रारंभ
हुआ।
हिंदी
भाषा को 'राजभाषा' (Official
language) के रूप में स्वीकार करने
के बाद हम ने 'त्रिभाषा-सूत्र' का स्वीकार
किया। 'अ,ब,क' तीन प्रकार
का दर्जा राज्यों
को दिया गया।
'अ' में हिंदी-भाषी राज्य, 'ब' में अहिंदी-भाषी
राज्य और 'क' में दक्षिण के तमिलनाडू आदि राज्य आते हैं। हिंदी-भाषी राज्यों में हिंदी के साथ अंग्रेजी, अहिंदी-भाषी
राज्य जैसे महाराष्ट्र में हिंदी, मराठी
के साथ अंग्रेजी तथा दक्षिण के राज्य जैसे
तमिलनाडू में तमिल
के साथ अंग्रेजी का स्वीकार किया
गया। परंतु वर्तमान
समय में सभी भाषाएं हाशिए
पर जाकर अंग्रेजी यहां पर हावी
हो गयी है। अपितु मातृभाषाओं पर अस्तित्व का संकट बना हुआ हैं।
अर्थात् त्रिभाषा-सूत्र
का अनुपालन पूरी
शक्ति के साथ होता, तो आज शिक्षा
की स्थिति और भी बेहतर
होती।
Ø हिंदी भाषा के संवर्ध्दन हेतु रचनात्मक कार्य :-
हिंदी
भाषा के समृध्द
विकास के लिए रचनात्मक कार्य
करने की महती
आवश्यकता है। और ऐसा रचनात्मक कार्य कुछ़ जगह पर हो भी रहा हैं।
1. पल्लीपुरम् गांव में हिंदी सीखना अनिवार्य :-
केरल
के पल्लीपुरम् गांव
में हिंदी सीखना
अनिवार्य किया गया है। किसी
दूसरे प्रदेश या देश जाकर
वहां की भाषा
सीखना साधारण बात है। परंतु
केरल में ऐसा नहीं है। यहां के मलयाली भाषी
उत्तर प्रदेश या बिहार से आनेवाले मजदूरों
से हिंदी सीख रहे हैं।
सूबे की पल्लीपुरम् ग्राम पंचायत में सभी के लिए हिंदी
सीखना अनिवार्य कर दिया गया है। इनके
लिए दक्षिण भारत
हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई के साथ एक अभियान चलाया
जा रहा है। पंचायत के क्षेत्राधिकार में रहनेवाले सभी परिवार हिंदी
बोलना सीख रहे हैं। ऐसा इसलिए ताकि
दूसरे प्रदेशों से आनेवाले मजदूरों
से बातचीत सहजता
से की जा सके। पंचायत
वयस्कों को 52 सप्ताह का प्रशिक्षण दे रही है। बच्चों के लिए हिंदी
का प्रशिक्षण निःशुल्क है। पल्लीपुरम् पंचायत
के अध्यक्ष पी.आर.हरिकुट्टन बताते हैं, "आवेदक
को प्रशिक्षण के तहत 52 कक्षाएं लेनी
होती हैं। एक परीक्षा भी होती है, जिसके बाद प्रमाण-पत्र
मिलता है।" वे कहते हैं, "60 लोगों का पहला समूह
पास हो चुका
है। ये सभी अब अपने
पड़ोसियों और नजदीकी
पंचायत के लोगों
को प्रशिक्षण देंगे।
इस तरह आस-पास की सभी पंचायतें और रहनेवाला प्रत्येक स्त्री-पुरुष हिंदी
सीख लेगा। हमारी
कोशिश है कि पल्लीपुरम् के 17 वार्डों
में रहनेवाले 7850 परिवारों के लगभग 20 हजार लोग अगले दो वर्ष में बात करने
लगें।"
हिंदी
के प्रति लगाव
के पीछ़े भी कारण है। दरअसल, पल्लीपुरम् पंचायत अलपुझा जिले
का औद्योगिक केंद्र
है। यहां सूचना-प्रौद्योगिक केंद्र और केरल राज्य
औद्योगिक विकास निगम
का प्रशिक्षण केंद्र
है। नये उद्योग
भी यहां पहुंच
रहे है। अभी यहां करीब
1000 उत्तर
भारतीय मजदूर हैं और जल्द
ही संख्या बढ़ेगी।
कोच्चि के प्रवास
और समग्र विकास
केंद्र के कार्यकारी निदेशक बेनॉय पीटर
कहते हैं,"इस पहल से स्थानीय लोगों
से संवाद बेहतर
होगा।" राज्य सरकार
के आंकडें देखें
तो केरल में 2018 में लगभग 35 लाख बाहरी
मजदूर काम कर रहे हैं।
इनमें हिंदी भाषी
भी शामिल हैं।
2. लैंडोर
का अनोखा भाषा-स्कूल :-
उत्तराखंड़ राज्य में मसूरी
के पास बसे 'लैंडोर' के भाषा-स्कूल में प्रतिवर्ष 200 विदेशी हिंदी
सीखने आते हैं।
गाना गाकर हिंदी
सिखानेवाला यह देश का सबसे
अनोखा लगभग 108 साल पुराना
भाषा-स्कूल है। वैसे तो इस स्कूल
में हिंदी के अलावा पंजाबी, उर्दू, संस्कृत
और गढ़वाली भाषा
भी सिखाई जाती
है। किंतु 80-90 प्रतिशत हिंदी
सीखनेवाले ही होते
हैं। वर्तमान समय में यहां
पर 17 शिक्षक
हैं। काफी अर्से
से स्कूल में पढ़ा रहे हबीब अहमद
उत्तर प्रदेश से हैं। वे कहते हैं, "ये स्कूल एक अलग ही संसार है, जहां विदेशी
हिंदी, उर्दू, संस्कृत
सीखने आते हैं और तीन हफ्ते से तीन महीने
तक यहां गुजारते
हैं।" शुरुआत
में यह स्कूल
अंग्रेजों ने मिशनरीज
के लिए बनवाया
था। अंग्रेजों के जाने के बाद भी कई वर्षों
तक केवल मिशनरीज
को ही प्रवेश
¼Admission½
दिया जाता था। अब इस स्कूल का संचालन एक बोर्ड करता
है। यहां आनेवालों में शोधकर्ता, दूतावास
में काम करनवाले
कर्मचारी, राजदूत और फिल्मी सितारे
होते हैं।
प्रवेश
लेने वालों की आयु 18 वर्ष से लेकर 90 वर्ष तक हैं। सबसे
अधिक हिंदी सीखनेवाले अमेरिका से होते
हैं। निकोल इन दिनों इंग्लैंड़ से यहां आकर हिंदी सीख रहे हैं।
जबकि रांची में रिसर्च कर रही जूलियट
पोलेंड़ से हिंदी
सीखने आई है।
हिंदी
सिखाने के लिए स्कूल में रिकॉर्डिंग की खास व्यवस्था है। छात्र इसी रिकॉर्डिंग से सीखते हैं।
विशेषज्ञ कहते हैं कि हम भाषा जितनी
ज्यादा सुनते हैं, उतनी ही जल्दी सीखते
भी हैं। आम स्कूल में पहले लिखना-पढ़ना सिखाते हैं, लेकिन यहां
पर पहले बोलना, फिर व्याकरण
और फिर लिखना
सिखाया जाता है। यहां के शिक्षक हमेशा
नया तरीका ईजाद
करने का प्रयास
करते रहते हैं, जिससे कि सीखना उबाऊ
या बोझ न हो। प्रति
दिन 4 घंटे
पढ़ाई होती है। प्रति घंटे
की फीस लगभग
385
रुपये से 653 रुपये तक हैं।
3. पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी को बढ़ावा :-
हिंदी
भाषा को सम्मान
तभी प्राप्त होगा
जब हम व्यावहारिक रुप से आत्मीयता के साथ पूरी
निष्ठा से कार्य
करेंगे। सामान्यतः यह दिखाई देता
हैं कि हिंदीत्तर राज्यों में विराजमान राज्यपाल से लेकर
बड़े पदों पर कार्यरत लोग अपनी मातृभाषा हिंदी होने के बावजूद हिंदी
में बात नहीं
करते हैं। अपितु
वे अधिकतर मात्रा
में अंग्रेजी का प्रयोग करते
हैं। सभी सरकारी
कार्यालयों में अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग किया
जाता है। पूर्वोत्तर में अर्थात् मणिपुर
में हिंदी की स्थिति ठीक नहीं है। इसके कई कारण हैं - हिंदी में अध्ययन के पश्चात् रोजगार
न मिलना, हिंदी बोलनेवालों को हीनता की दृष्टि से देखना, राज्य के कार्यालयों में अंग्रेजी में कामकाज कराना, व्यवसायों में अंग्रेजी भाषा
का प्रयोग करना, राष्ट्रीय नेताओं
द्वारा इन राज्यों
में अंग्रेजी में भाषण देना,उच्चस्तरीय पाठ्यक्रमों में पढ़ाएं जानेवाले विषय हिंदी में उपलब्ध न होना और हिंदी भाषी
क्षेत्र के लोगों
से भावनात्मक संबंध
का अभाव आदि।
पूर्वोत्तर राज्यों में बड़े
पदों पर कार्यरत् अधिकारी अपनी मातृभाषा हिंदी में संभाषण
करें। ताकि स्थानीय
लोगों में हिंदी
को लेकर ऊर्जा
प्राप्त होगी। मणिपुर
में हिंदी टेलीविजन धारावाहिक, बॉलीवुड़
की हिंदी फिल्मों
तथा गीतों को बहुत पसंद
करते हैं। केंद्र
सरकार ने इसे गंभीरता से लेना चाहिए।
अर्थात् पूर्वोत्तर राज्यों
में हिंदी भाषा
को प्रोत्साहित करने
हेतु इसे रोजगार
से जोड़ना आवश्यक
होगा।
4. हिंदी भाषा लिंगुआ फ्रांका (Lingua Franca) बननी चाहिए :-
मातृभाषा के अतिरिक्त किसी
अन्य भाषा को सीखने की आवश्यकता इस बात पर निर्भर है कि किस देश का प्रभुत्व दुनिया
में ज्यादा है। जिस देश का प्रभुत्व होगा वहां की भाषा दुनिया
सीखेगी। इतिहास और वर्तमान इस बात के साक्षी हैं कि शक्तिशाली लोगों की मातृभाषा विश्व स्तर पर सीखी, बोली
और लिखी जाएगी
और 'लिंगुआ
फ्रांका'(Lingua Franca) बनेगी।
'लिंगुआ
फ्रांका' का अर्थ
है- इस्तेमाल में ली जाने
वाली वो सबसे
प्रभावशाली भाषा, जो इस्तेमाल करनेवालों की मातृभाषा न हो। दूसरे
शब्दों में कहना
चाहूं तो 'लिंगुआ फ्रांका'
का अर्थ है सामान्य भाषा
या लोक भाषा।
इस पैमाने पर देखें तो बीते तीन हजार वर्ष
में ग्रीक, लैटिन, पोर्तुगीज, स्पेनिश, फ्रेंच और अंग्रेजी अलग-अलग दौर में प्रभावशाली रही हैं। 18वीं सदी के मध्य में फ्रांस के विद्वान वॉल्टेयर ने 'फिलॉसोफी ऑफ हिस्ट्री' (Philosophy
of History) लिखी। इसका विषय
संपूर्ण मानव जाति
का इतिहास था। अध्ययन में यह तथ्य
निकलकर आया कि ईसा पूर्व
नौवीं सदी से लेकर चौथी
सदी तक यूरोप
शहर रुपी कई साम्राज्यों में बंटा हुआ था। इनमें
से एथेंस व्यापार
और सैन्य ताकत
बनकर उभरा। इसलिए
प्रभावशाली एथेंस की ग्रीक भाषा
यूरोप की 'लिंगुआ फ्रांका'
बनी। इसी दौरान
रोमन साम्राज्य उभरने
लगा और ईसा पूर्व 201 से आनेवाले
600 वर्षों
तक यूरोप का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बना रहा।
अपितु कैथोलिक चर्च
की ताकत बढ़ी और रोमन
भाषा लैटिन 'लिंगुआ फ्रांका'
बन गई। चौथी
सदी में रोमन
साम्राज्य दो हिस्सों
में बंट गया।
इसके बाद यूरोप
अंधेरे युग में प्रवेश कर गया। लेकिन
लैटिन 'लिंगुआ
फ्रांका' बनी रही क्योंकि आनेवाले
एक हजार वर्ष
तक कोई नई वैश्विक शक्ति
नहीं उभरी। सन्1492 में कोलंबस ने अमेरिका की खोज की और छ़ह वर्ष बाद वास्को-डि-गामा ने भारत में कदम रखा।
ये दोनों यात्राएं पुर्तगाल के खर्चे
पर हुई और इस तरह से पुर्तगाल साम्राज्य शक्तिशाली होने
लगा। पुर्तगाल की देखा-देखी
स्पेन और फ्रांस
भी उपनिवेशवाद में कूदे। इस दौरान पोर्तुगीज, स्पेनिश और फ्रेंच 'लिंगुआ फ्रांका'
की दौड़ में रहीं। इंग्लैंड़ में स्थिति ऐसी थी कि राजघराने में शिक्षा फ्रेंच
भाषा में ली जाती थी। सभ्य समाज
में अंग्रेजी गरीबों
की भाषा और दरिद्रता की निशानी मानी
जाती थी।
17वीं सदी के अंत में स्पेन
का युध्द इंग्लैंड़ से हुआ, जिसमें
इंग्लैंड़ की महारानी
एलिजाबेथ की जीत हुई। कुछ़
ही वर्षों में इंग्लैंड़ की नौसेना विश्व
में सबसे शक्तिशाली बनी और अमेरिका
से लेकर चीन तक इंग्लैंड़ का साम्राज्य फैल गया। विश्व
की अधिकतम् पूंजी, तकनीक और सैन्य शक्ति
में इंग्लैड़ का कोई मुकाबला
न बचा। लिहाजा
अंग्रेजी भी विश्व
की 'लिंगुआ
फ्रांका' बन कर उभरी। फिर सन् 1945 में दूसरे विश्व
युध्द के अंत में इंग्लैंड़ ने अपना वर्चस्व
खो दिया, लेकिन
चूंकि अमेरिका भी मुख्यतः अंग्रेजी भाषी था और पूंजी, तकनीकी
और सैन्य ताकत
में प्रथम राष्ट्र
बनकर उभरा, इसलिए
अंग्रेजी का दबदबा
न केवल बना रहा, अपितु
यह और बढ़ा।
अंग्रेजी आज भी ताकतवर
है और तब तक ताकतवर
रहेगी, जब तक विश्व के वित्तीय, सैन्य
और तकनीकी ताकत
अंग्रेजी भाषियों के पास रहेगी।
आज जो हिंदी
का प्रभुत्व बढ़ रहा है, वो इसलिए
है क्योंकि भारत
का प्रभाव भी दुनिया में बढ़ रहा है। जैसे-जैसे यह बढ़ेगा, हिंदी
भी बढे़गी। हिंदी
'लिंगुआ
फ्रांका' के तौर पर दुनिया
में और विस्तार
पाए इसके लिए जरुरी है कि भारत
को अपनी वित्तीय, सैन्य और तकनीकी ताकत
को बढ़ाना होगा।
अंग्रेजी भाषा से लड़कर या उसका विरोध
करके हिंदी 'लिंगुआ फ्रांका'
नहीं बन सकती।
अंतर्राष्ट्रीय संबंध शिक्षा
संस्थान ने अंतर्राष्ट्रीय मामलों
की पढ़ाई करनेवाले छात्रों को पढ़ने
के लिए पांच
भाषाएं सुझाई हैं।
इनमें हिंदी भी है। संस्था
का कहना है कि आबादी
के लिहाज से भारत दुनिया
का दूसरा सबसे
बड़ा देश है। यहां 24 आधिकारिक भाषाएं
हैं, परंतु हिंदी
लगभग सब जगह बोली जाती
है और यह सबसे अधिक
तेजी से बढ़ भी रही है। अर्थात्
हिंदी भाषा को 'लिंगुआ
फ्रांका' भाषा का स्थान ग्रहण
करना है तो भारतवर्ष को वित्तीय, सैन्य
और तकनीकी क्षमता
को बढ़ाना होगा।
Ø संपर्क भाषा और विश्व भाषा के बीच फंसी हिंदी :-
हिंदी के विस्तार को इससे जोड़ते
ही दुनिया में तो इसका
मजाक बनता ही है, भारत
में अन्य भारतीय
भाषाओं (जो साहित्यिक-सांस्कृतिक दृष्टि
से हिंदी से अधिक पुरानी
और प्रतिष्ठित हैं) के कान खड़े हो जाते हैं।
अंग्रेजी के पैरोकार
तुरंत इस बेचैनी
का लाभ उठाते
हुए 'हिंदी साम्राज्यवाद'
की थियरी चलाने
लगते हैं। हिंदी
भाषा को देश की संख्यात्मक दृष्टि से सबसे
बड़ी भाषा होने
के नाते संपूर्ण
भाषाओं को अंग्रेजी के वर्चस्व के खिलाफ संगठित
करना आवश्यक है, न कि बेवकूफी भरी दावेदारी बताकर
अलग-थलग पड़ना
पड़े। अभय कुमार
दुबे जी लिखते
हैं, "हिंदी के ऊपर एक बहुभाषी
देश में यूरोपीय
किस्म की राष्ट्रभाषा होने का दावा
न करते हुए एक सर्व-स्वीकार्य संपर्क भाषा
बनने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी है। इसे निभाना उसका
पहला उद्देश्य होना
चाहिए। विश्व भाषा
बनने का सपना
देखना न केवल
एक नादानी है, बल्कि हिंदी
के हित के लिए नुकसानदेह भी है।"
अर्थात् भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक विनिमय के रुप में हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है। देश के लगभग सभी हिस्सों में हिंदी की उपस्थिति किसी सरकारी आदेश का फल न होकर एक दीर्घकालीन ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है। मुंबई के सार्वदेशिकता ने एक भाषा के रुप में हिंदी को अपनाया है। अंड़मान में रहनेवाले हिंदी, मलयालम, बंगाली, तमिल और तेलुगू भाषी लोगों ने आपसी संपर्क के लिए हिंदी को ही अपनी भाषा बनाया है।
Ø हिंदी के तकनीकी (Technical) पक्ष को मजबूत करना आवश्यक :-
आज हिंदी वैश्विक
भाषा के रुप में अपना
स्थान बना रही है। हम हिंदी की वैश्विक स्थिति
की बात जब करते हैं तो हमें
उन मानदंड़ों को सामने रखना
होता है जिससे
आधुनिक तकनीक के दौर में कोई भाषा
अपना वैश्विक रुप ग्रहण करती
है।
भारतीय
भाषाओं के समक्ष
मौजूद चुनौतियां एक सच्चाई हैं बावजूद ऐसे समय में किसी भी भाषा या लिपि के संरक्षण हेतु
आवश्यक है कि वह कारोबार, व्यवसाय, रोजमर्रा का जनजीवन और शिक्षा के साथ-साथ तकनीक से जुड़ना अनिवार्य हैं। बालेंदु शर्मा
दाधीच के शब्दों
में, "भारत में उपभोक्ताओं की विशाल संख्या
और उनकी बढ़ती
आर्थिक शक्ति वैश्विक
कंपनियों को हमारी
भाषाओं को साथ लेने के लिए विवश
कर रही है। दूसरी ओर तकनीकी माध्यमों में हिंदी और दूसरी भाषाओं
का प्रयोग धीरे-धीरे सहज होता चला जा रहा है जिससे
झिझक और असुविधा
की दीवार टूट रही है।"
वर्तमान समय समृध्द डिजिटल
प्लेटफार्म का है, जहां सबकुछ़
डिजिटल है। जो भाषा डिजिटल
प्लेटफार्म पर नहीं
चल सकती, उसका
अस्तित्व संकट में है। हिंदी
इस मानक पर बहुत आगे निकल चुकी
है। दुनिया की बड़ी भाषाओं
के समानांतर डिजिटल
प्लेटफार्म पर चल रही है और श्रेष्ठतम् साबित हो रही है।
हिंदी के तकनीक पक्ष
को और मजबूत
करने का काम अभी शेष है। नये सॉफ्टवेयर, शब्दकोश
और वर्तनी जांच
करनेवाले (Spellchecker) आदि को और विकसित करने
की बड़ी जिम्मेदारी है। महात्मा गांधी
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,
वर्धा के कुलपति
प्रो.रजनीश कुमार
शुक्ल जी लिखते
हैं, "हम ने आचार्य विनोबा
की 125वीं जयंती
से बदलाव और लक्ष्य को हासिल करने
का संकल्प लिया
है। देश के बेहतरीन वैज्ञानिक पद्मभूषण डॉ.विजय
भटकर के साथ लंबी चर्चा
के बाद तकनीक
और भाषा के समन्वय पर सहमति बनी है। इसके
तहत सीडैक पुणे
तकनीकी सहायता देगा, जबकि विश्वविद्यालय भाषा
प्रौद्योगिकी में कार्य
करेगा। दोनों के सहयोग से कृत्रिम मेधा
(Artificial
Intelligence), मशीन ट्रांसलेशन, नये प्रकार
के टूल्स और संसाधनों का निर्माण किया
जाएगा। विश्व में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (Artificial
Intelligence) में बहुत
तेजी से अनुसंधान हो रहे हैं।
इस प्रक्रिया में हिंदी को सम्मानजनक स्थान
पर लाने की सहायक व्यवस्था अगले 6 माह में विश्वविद्यालय तैयार
कर लेगा।"
Ø महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा की भूमिका :-
महात्मा गांधी
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,
वर्धा के कुलपति
प्रो.रजनीश शुक्ल
जी का मानना
हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप
होने के बावजूद
भी 19 वर्ष
के लंबे अंतराल
में विश्वविद्यालय अपने
मूल लक्ष्य को हासिल नहीं
कर पाया है। इस लिहाज
से महात्मा गांधी
जी की 150वीं जयंती के अवसर पर विश्वविद्यालय के लिए प्रायश्चित का अवसर है। केवल हिंदी
ही नहीं, अपितु
संपूर्ण भारतीय भाषाओं
का केंद्र बनाने
का संकल्प लिया
है, ताकि भाषा
विकास के मूल लक्ष्य को हासिल किया
जा सके। वे लिखते हैं, "जार्ज ग्रियर्सन्स के बाद स्वतंत्र भारत में अब तक कोई भी भाषाई
सर्वेक्षण नहीं हुआ है। जार्ज
ग्रियर्सन्स ने भाषा
विकास की बजाय
अंग्रेज सरकार के हितों की खातिर भाषाई
सर्वेक्षण किया था, लेकिन हम ने भारतीय
भाषागत् सर्वेक्षण की चुनौती को स्वीकार किया
है। हम ने इस दिशा
में काम को आरंभ भी कर दिया
है। आगामी दो साल में विश्वविद्यालय के माध्यम से भारतीय भाषाओं
का सर्वेक्षण पूरा
किया जाएगा। इस प्रक्रिया में देश भर के संस्कृत, अंग्रेजी समेत
तेलुगू भाषा के 50 से अधिक विश्वविद्यालयों की नेटवर्किंग करेंगे।
इस प्रक्रिया में विश्वविद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों को भी सक्रिया
रुप से जोड़ा
जाएगा। इस सर्वेक्षण की बदौलत सारे
विश्वविद्यालयों को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (Artificial Intelligence) समेत
सभी तकनीकी बाधाओं
की चुनौती से निपटने में सुविधा होगी।
संभावना यह है कि अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रुप में हमारी सबसे
बड़ी उपलब्धि होगी।"
Ø देश में हिंदी का बढ़ता प्रभाव
:-
भारतवर्ष में हिंदी बोलनेवालों की संख्या 10 वर्षों में लगभग 10 करोड़ बढ़ गई हैं।
जनगणना 2011 के आंकड़ों
के अनुसार 10 वर्ष
में हिंदी बोलनेवाले लोगों की संख्या
लगभग 10 करोड़
बढ़ी हैं। जबकि
अन्य क्षेत्रीय भाषाएं
चिंताजनक ढंग से घट रही हैं।
क्रम |
भाषा |
बोलनेवाले |
आबादी
में % |
4 दशक में
वृध्दि % |
1. |
हिंदी |
52.83 |
43.63 |
17.95 |
2. |
बंगाली |
9.72 |
8.03 |
-1.71 |
3. |
मराठी |
8.30 |
6.86 |
-9.97 |
4. |
तेलुगू |
8.11 |
6.70 |
-17.89 |
5. |
तमिल |
6.90 |
5.70 |
-17.15 |
10. |
मलयालम |
3.48
(संख्या करोड़ में) |
2.88 |
-28.00 |
छ़ठे, सातवें, आठवें
और नौवें स्थान
पर गुजराती, उर्दू, कन्नड़ व उड़िया है।
Ø दक्षिण भारत
में हिंदी का बढ़ता प्रभाव :-
दक्षिण भारत
में हिंदी परीक्षा
में शामिल होनेवाले छात्रों की संख्या
तेजी से बढ़ रही है। दक्षिण भारत
हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई द्वारा
आयोजित हिंदी परीक्षा
में बैठनेवाले लोगों
की संख्या 5 वर्ष में 22 % बढ़ी है। 2019 में हुई इस परीक्षा
में लगभग 6 लाख लोग बैठे
थे।
Ø इंटरनेट पर हिंदी का बढ़ता प्रभाव :-
इंटरनेट पर हिंदी का प्रयोग सबसे
तेज 94 % की दर से बढ़ रहा है। अंग्रेजी की गति 19 % है। हर पांच
में एक व्यक्ति
हिंदी में सामग्री
ढूंढ रहा है। स्मार्ट फोन और कंप्यूटर पर हिंदी में सामग्री ढूंढनेवाले लोगों की संख्या 2 गुना तेजी
से बढ़ रही है। और 68 % लोग मानते हैं कि उन्हें
इंटरनेट पर उनकी
भाषा में मिलनेवाली सामग्री अधिक भरोसेमंद होती है। इंटरनेट
पर 2021 तक लगभग 549 करोड़
लोग भारतीय भाषाओं (हिंदी, मराठी, बंगाली आदि) के होंगे।
इनमें सबसे अधिक
35 करोड़
हिंदी के होंगे।
जबकि अंग्रेजी प्रयोग
करनेवाले 21 करोड़ होंगे।
अर्थात् 2021 में इंटरनेट पर हिंदी प्रयोग
करनेवाले लोगों की संख्या अंग्रेजी से ज्यादा होगी।
Ø विश्व में हिंदी का बढ़ता कार्य क्षेत्र :-
वर्तमान समय में 170 देशों में हिंदी पढ़ाई
जा रही हैं।
देश के बाहर
600 से अधिक हिंदी
विश्वविद्यालय और शोध-संस्थान हैं । नासा के अनुसार हिंदी
एकमात्र फोनेटिक भाषा
है। भविष्य में यह कंप्यूटर-भाषा होगी। इसी वर्ष संयुक्त
राष्ट्र (United Nation) ने हिंदी में समाचार सेवा
प्रारंभ की है। ये सम्मान
पानेवाली हिंदी पहली
गैर-संयुक्त राष्ट्र
(United Nation) एशियाई
भाषा बन गई है। विश्व
में मंदारिन, स्पेनिश, अंग्रेजी के बाद चौथी
सबसे ज्यादा बोली
जानेवाली भाषा हिंदी
है।
हिंदी का शब्दकोश भी समृध्द हुआ है। पिछ़ले
20
वर्षों में ये शब्द-संपदा
20 हजार
से बढ़कर 1.5 लाख शब्द
हुए हैं। यानी
इंटरनेट पर हिंदी
का विस्तार हो रहा है। अपितु हिंदी
अधिक समृध्द हो रही है। देश की शीर्ष 10 भाषाओं में केवल हिंदी
बोलनेवाले लोग बढे हैं। चार दशक में हिंदी
बोलनेवाले लोगों की संख्या 19 % बढ़ी हैं।
इस दौरान अन्य
बोली जानेवाली 9 भाषाओं
के लोग घटे हैं। मलयालम
में 28 % की कमी आई है। और 20 वर्ष
में हमारे सरकारी
शब्दकोश में 7.5 गुना शब्द
बढ़े हैं। अब 20 हजार
से बढ़कर 1.5 लाख शब्द
हो गए हैं।
जबकि 30 वर्ष
में अंग्रेजी के ऑक्सफोर्ड शब्दकोश
में 9500 शब्द
जुड़े हैं।
सारांश
रूप में कहा जा सकता
हैं कि आज हिंदी भाषा
बाजार और व्यापार
की भाषा बन गई है। कोई भी बड़ी विदेशी
कंपनी हिंदी जाने
बिना मध्य एशिया
में व्यापार नहीं
कर सकती। आज अपने माल के प्रचार-प्रसार, पैकिंग, गुणवत्ता आदि के लिए हिंदी को अपनाना बहुराष्ट्रीय कंपनियों की विवशता
है और उनकी
यही विवशता हिंदी
की शक्ति तथा सामर्थ्य की परिचायक है। वर्तमान समय में हिंदी
की बदलती दुनिया
को समझने की महती आवश्यकता है। मल्टी मीडिया
के इस्तेमाल के लिए, आविष्कार के अनुरुप, विज्ञापन, एस.एम.एस., कम्प्यूटिंग सॉफ्टवेयर आदि तकनीकों
के अनुरुप हिंदी
भाषा परिवर्तित हो रही है। विचारणीय यह है कि हिंदी भाषा
में यह परिवर्तन उसके लिए कितना
उचित और कितना
अनुचित हैं, चूंकि
भूमंडलीकरण तो वह बिजली है, जिससे आपका
घर रौशन भी हो सकता
है और आपके
द्वार में आग भी लग सकती है।
Ø संदर्भ :-
1.
विश्व हिंदी पत्रिका (2016) - प्र.सं.प्रो.विनोद कुमार मिश्र ।
2.
विश्व हिंदी पत्रिका (2017) - प्र.सं.प्रो.विनोद कुमार मिश्र ।
3.
भोपाल से मॉरीशस - सं.अशोक चक्रधर ।
4.
गगनांचल (11वां विश्व हिंदी सम्मेलन विशेषांक) - सं.डॉ.हरीश नवल ।
5.
स्मारिका (विश्व हिंदी सम्मेलन, मॉरीशस-2018) - प्र.सं.प्रो.राम मोहन पाठक ।
6.
आधुनिक हिंदी साहित्य के विविध परिदृश्य - डॉ.मजीद
शेख ।
7.
बालेंदु शर्मा दाधीच (टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट) - दैनिक भास्कर, रविवार-रसरंग के स्तंभ से ।
8.
दैनिक भास्कर (शनिवार -14 सितंबर, 2019) - सं.कृष्णकांत तिवारी ।
9.
लोकमत समाचार (बुधवार -18 सितंबर, 2019)
- सं.विकास मिश्र ।
10. www.balendu.com
11.
www. bharatiyabhasaparishad.com
12.
www. vartmansahitya.com
13.
www.hindisamay.com
14.
www.rsaudr.org
संपर्क : सहायक प्राध्यापक एवं शोध निर्देशक,
हिंदी विभाग,प्रतिष्ठान महाविद्यालय,पैठण,
जिला -औरंगाबाद - 431107
(महाराष्ट्र)
चलित दूरभाष - 09765944586
ई-मेल
- majidmshaikh@gmail.com
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