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Language (भाषा)- हिंदी की यात्रा- संस्कृति की विकास यात्रा

Language (भाषा)

हिंदी की यात्रा- संस्कृति की विकास यात्रा 

(Hindi ki yatra-sanskriti ki vikas yatra)

डॉ० ममता खांडल

भाषा क्या है bhasha kya hai 

भाषा का महत्व स्वयं सिद्ध है, किन्तु ‘भाषा क्या है?’  सामान्यत: भाषा व्यक्ति को उसके जन्मे के साथ ही उसके परिवेश से मिल जाती है और समान परिवेश या सामूहिक समाज में रहने वाला व्यक्ति सहज ही अपने जाने-पहचाने शब्दों या ध्वनि-संकेतों द्वारा अन्य सामाजिकों से अपने अनुभवों, भावों और विचारों का आदान-प्रदान करने लगता है । भाषा व्यक्ति एवं संस्कृति की पहचान के साथ-साथ किसी भी मानव-समाज एवं राष्ट्र की समृद्धि की भी पहचान है ।

प्रेमचन्द के शब्दों में “राष्ट्र की बुनियाद राष्ट्र की भाषा है । नदी, पहाड़ और समुद्र राष्ट्र नहीं बनाते । भाषा ही वह बंधन है, जो चिरकाल तक राष्ट्र को एक सूत्र में बांधें रहता है और उसका शीराजा (सरंचना) बिखरने नहीं देता ।”(1)  रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं – “भाषा ही किसी जाति की सभ्यता को सबसे अलग झलकाती है, यही उसके हृदय के भीतरी कल पुर्जों का पता देती है । किसी जाति को अशक्त करने का सबसे सहज उपाय उसकी भाषा को नष्ट करना है ।”(2)

hindi bhasha parichay evam itihas

हिन्दी भाषा का परिचय एवं इतिहास hindi bhasha ka parichay evam itihas

भारत और उसकी जातियता की भाषा हिंदी अपनी विकास यात्रा में संस्कृत के साथ किसी द्वंद्व के स्वरूप से नहीं अपितु, समन्वय स्थापित या संपर्क के माध्यम के रूप में ही विकास करती है ।भारतीय मानव के जिस प्रारम्भिक दौर में आर्य सभ्यता विकसित एवं विस्तृत हो रही थी, तब विभिन्न जनजातियों को जोड़ने का क्रम चला था । इस पूरी प्रक्रिया में आर्य संस्कृति के साथ अन्य आर्येतर/ समानांतर संस्कृतियों व धार्मिक-सभ्यताओं गोया कि- जैन, बौद्ध, अजीविक सभी ने सोद्देश्य प्रयास किये और सभी ने अपने-अपने ढंग से विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को अपने मत की और आकर्षित किया । इसी प्रयास में संस्कृत के समानांतर मागधी, पालि, प्राकृत का विकास होता है । इस भाषाई विकास-क्रम में, जिन अन्य भाषाओं का विकास हुआ, उसी की विरासत बाद में हिंदी सम्भालती हुई दिखाई देती है । अत: यह मूलत: संपर्क, समन्वय और सामंजस्य की भाषा बनकर ही उभरी थी ।

विदेशों के साथ बढ़ते संपर्क-संबंध, व्यापारिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान ने इस राष्ट्र के ‘सनातन’ धर्मावलम्बियों को ‘सिंधु’ नाम दिया  था, अर्थात जो सिंधु नदी के उस पार निवास करते हैं । आगे चलकर, उच्चारण के आधार पर ये ही लोग ‘हिंदी’ कहलाए । अरब या अरबी-भाषा के ‘अंकों’ के लिए प्रयुक्त शब्द ‘हिन्दसा’ भी इसी बात का द्योतक एवं प्रमाण है ।

इस प्रकार हिंदी अपने नामकरण संस्कार के साथ अपनी विकास यात्रा पर निकलती है । बौद्ध धर्म के चर्या गीतों में नैरात्म्य भावना, कायायोग, सहयोग, शून्य और समाधि की विभिन्न अवधारणाओं का वर्णन करती हुई ‘पालि’ नाम से अभिहित होती है । यह सिद्धों की वाणियों का माध्यम बन वर्णाश्रम व्यवस्था पर तीव्र प्रहार करती हुई ‘संधा भाषा’ बनती है । वज्रयानी सिद्धों के साथ-साथ नाथपंथ के प्रवर्तक गोरखनाथ के द्वारा पतंजलि योग दर्शन को सहज रूप दे जन सामान्य तक उपलब्ध कराने का माध्यम बन, सिद्धों  और नाथों के साहित्य का माध्यम बनकर दसवीं शताब्दी के सांकृतिक परिदृश्य का एक अहम भाग बनती है । उसी कालखंड में यह भारत के गुजरात, राजस्थान और दक्षिण में जैन साहित्य में आदिकालीन हिंदी का स्वरूप धारण कर तत्कालीन संस्कृति का पोषण करती है । पौराणिक काव्यधारा में अपभ्रंश के महान कवि स्वयंभू के ग्रंथ ‘पउमचरिउ’ में रामकथा को तत्कालीन संस्कृति के परिदृश्य में प्रस्तुत करती है । इस प्रकार हिंदी के आदिकाल में हमें रासो साहित्य के समय की संस्कृति के दर्शन होते हैं और उसके मूल्यों का परिचय मिलता है ।

चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते हिंदी भाषा एक परिपूर्ण रूप लेकर हमारे सामने प्रकट होती है । यही वह कालखंड है जिसे विद्वानों ने हिंदी भाषा और साहित्य का स्वर्णकाल कहा है । जिसे हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है । यहाँ हिंदी कबीर द्वारा सिद्धों, नाथों के विचार-दर्शन का अनुसरण करते हुए जाति-पांति और बाह्याडम्बरों का विरोध करते हुए आक्रोश के तेवर अपनाती है और फिर उलटबासियों में भी ढलती है । “भारतीय संस्कृति के इस मध्यकाल का पाट बहुत बड़ा है और इसमें विविधताएँ भरी पड़ी हैं ।”(3) हिंदी के एक रूप अवधी के माध्यम से इसमें एक ओर तुलसी का रामचरितमानस संरक्षित है =, जिसका भारतीय सांस्कृतिक जीवन में अत्यधिक महत्व है । भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए ही उन्होंने राम के आदर्श जीवन को उजागर किया है और मानवीय मूल्यों की स्थापना की है । वहीं दूसरी ओर जायसी का पद्मावत प्रेम की साधना का संदेश देता है ।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल भक्ति को ‘धर्म की रसात्मक अनुभूति’(4)  कहते हैं और इस रसात्मक रूप वाली संस्कृति को भारत के कोने-कोने में हिंदी का ही एक प्रमुख रूप ब्रजभाषा लोकप्रियता दिलाती है । उस दौर में देशभर में ब्रजभाषा ही साहित्य सजृन की प्रधान भाषा बनकर उभरती है जिसका एक रूप बंगाल में ‘ब्रजबलि’ के नाम से जाना जाता था । गुजरात और सिंध से लेकर असम तक इसी भाषा में साहित्य की रचना हो रही थी । यह वह समय भी था जब गुजरात और सिंध से लेकर असम तक इसी भाषा में साहित्य की रचना हो रही थी । यह वह समय भी था जब भारत में इस्लामी संस्कृति अपनी जड़ें जमा चुकी थी और राजनीति से लेकर भवन निर्माण कला तक में हिन्दू और इस्लामी संस्कृति आपस में मिलकर एक नई धारा का रूप ले रही थी । प्राचीन काल से चली आ रही वैदिक संस्कृति इस काल में भाषा के स्तर पर, कला के स्तर पर, काव्य और संगीत के स्तर पर अपना रूप परिवर्तित कर रही थी । संस्कृति से जुड़े हर क्षेत्र में परिवर्तन का दौर शुरू हो चुका था और इस बदलाव को हिंदी अपने समर्थ रूप में न केवल ग्रहण करती है, बल्कि उसे अभिव्यक्त भी करती है ।

सूरदास के काव्यालोक में मानों पूरी ब्रज संस्कृति और मानवीय अनुभूति की सूक्ष्म से सूक्ष्म अभिव्यक्तियाँ साकार हो उठती हैं । मीरां के गीत, रहीम के दोहे, पद्माकर और मतिराम की श्रृंगार रचनाएँ, आलम, बोधा ठाकुर और घनानन्द के प्रेमात्मक अनुभूति का स्वरूप दिखाई देता है ।

यद्यपि रीतिकाल संस्कृति में हिंदी जीवन की शुद्ध लौकिकता से रंग भरती है लेकिन आगे चलकर यह अन्याय, अत्याचार और दासता के खिलाफ आवाज उठाने वाली विद्रोह की भाषा बनकर सामने आती है । भारतेंदु और महावर प्रसाद द्विवेदी के हाथों एक नई भंगिमा, एक नई दृष्टि लेकर भारत के मध्यदेश और एक बृहतखंड की भाषा बन स्वतन्त्रता आन्दोलन की आधारभूमि बनती है । हिंदी की शक्ति ही अंग्रेजी सरकार और उसकी संस्कृति से टक्कर ले सकती है यह राजा राममोहन राय, केशवचन्द्र सेन, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, सुभाष चन्द्र बोस, काका कालेलकर, विनोबा भावे, महात्मा गांधी आदि ने सहज ही स्वीकार किया । इसका मुख्य कारण हिंदी भारत के प्राणतत्व से निर्मित भाषा है, जिसमें एक ओर संस्कृत की तत्सम जीवन्तता है तो दूसरी ओर लोक भाषाओं और बोलियों के अनंत फूल खिल रहे हैं । हिंदी इन बोलियों से रस ग्रहण कर ही पुष्ट हुई है और उसने अपने आपको धारधार बनाया है । भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, गढ़वाली, कुमायँनी, ब्रज, अवधी आदि ऐसी ही बोलियाँ हैं । जिनके पास लोक साहित्य का अमूल्य भंडार है जिसमें भारतीय संस्कृति अपने को अभिव्यक्त करती दिखाई पड़ती है ।

“भारत देश का संतुलन गंगा-यमुना का क्षेत्र रहा है।”(5) भारत की सांस्कृतिक एकता में हिंदी क्षेत्र और हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका है ।गांधी जी जब दक्षिण अफ्रिका से आये तो उन्होंने हिंदी को ही जनता की भाषा पाया । जहाँ हिंदी नहीं थी उसके व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए राष्ट्रभाषा हिंदी की संस्थाएँ खोली गयीं ।गांधी जी ने इसे लोक भाषा और जनता के हृदय की भाषा कहा । आजादी की लड़ाई उन्होंने हिंदी में लड़ी और उसी के आधार पर भारत स्वतंत्र हुआ । फिर स्वतंत्रता प्राप्ति के समय तक हिंदी दुनिया की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा थी, परन्तु आज यह दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बन गई है और अगर हिंदी जानने-समझने वाले हिंदीतर भाषी देशी-विदेशी हिंदी भाषा प्रयोक्ताओं को भी इसके साथ जोड़ लिया जाए तो “हिंदी भाषा के जानकारों का प्रसार विश्व में चीनी भाषा से अधिक है ।”हिंदी के इस वैश्विक विस्तार का बड़ा श्रेय भूमंडलीकरण और संचार माध्यमों के विस्तार को दिया जाता है । निसंदेह संचार माध्यमों ने हिंदी के जिस विविधतापूर्ण सर्वसमर्थ नए रूप का विकास किया है उसने भाषा समृद्ध समाज के साथ-साथ भाषा वंचित समाज के सदस्यों को भी वैश्विक संदर्भों से जोड़ा है । यह नई हिंदी अनेकानेक बोलियों में व्यक्त होने वाली ग्रामीण भारत की नई संपर्क भाषा है । भारत की 65 फीसदी आबादी 25 साल से कम उम्र के नौजवानों की है और भूमंडलीकरण ने उसकी आकांक्षाएं बदली है । इसी भारत तक पहुंचने के लिए बड़ी से बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भी हिंदी और भारतीय भाषाओं का सहारा लेना पड़ रहा है ।

आज के समय में बाजार, सूचना तकनीकी और विज्ञापन केंद्र में है ।उनमें पड़कर हिंदी भाषा की अभिव्यक्ति कौशल का विकास हुआ है । अभिव्यक्ति कौशल का अर्थ भाषा का विकास है ।बाजारीकरण के साथ विकसित होती हिंदी भारतीयता के साथ और अधिक जुड़ती है ।चूँकि भारत एक बड़े बाजार के रूप में उभर रहा है तो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को विज्ञापन की भाषा में हिंदी को रखना अनिवार्य हो रहा है ।भारत अब कश्मीर से कन्याकुमारी और कामाख्या से द्वारिका की सीमाओं तक नहीं सिमित है बल्कि हिंदी भाषा के द्वारा अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड, जर्मनी, फ़्रांस,दक्षिण अफ्रिका, ऑस्ट्रलिया आदि देशों में भाषा एवं संस्कृति का विस्तार कर रहे हैं । जिसमें विज्ञापनों की महत्वपूर्ण भूमिका है । ऐसे में अपने सामान को बाजार उपलब्ध कराने के लिए कम्पनियां विज्ञापनों का सहारा लेती है जैसे- ‘ठंडा मतलब कोका कोला’ ‘अपना लक पहन के चलो’ ब्रू से होती है खुशियाँ शुरू’ जैसे विज्ञापन हिंदी में गढ़ती है । कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने विभाग जैसे मार्केटिंग, प्रोक्योरमेंट और कस्टमर रिलेशन्स में काम करने वालों के लिए काम चलाऊ हिंदी का ज्ञान अनिवार्य कर दिया है ।

मनुष्य की आस्था उसकी अपनी मातृभाषा या राष्ट्रभाषा में सबसे अधिक होती है ।इसी कारण हिंदी का प्रकाशन जगत, मनोरंजन, ज्ञान, शिक्षा और परस्पर व्यवहार के विभिन्न क्षेत्रों में विस्तार हो रहा है । डिजिटल टेक्निक और बहुरंगे चित्रों के प्रकाशन की सुविधा ने हिंदी पत्रकारिता जगत में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है । इसी कारण हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में हिंदी और हिंदीतर राज्यों का अंतर मिटता जा रहा है । दैनिक भास्कर समाचार पत्र की रोज 1 करोड़ 70 लाख प्रतियाँ छपती है जबकि सर्वाधिक बिकने वाले अंग्रेजी पत्र ‘टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की 80 लाख प्रतियाँ ही छपती है । इसी से हिंदी के प्रभाव, प्रचार, प्रसार और फैलाव को आंका जा सकता है । हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का पाठक वर्ग तो सम्पूर्ण देश में है ही, साथ ही विदेशों से भी हिंदी भाषा की पत्रिकाओं का प्रसार नियमित रूप से स्तरीय टूर पर हो रहा है । जिसमें मुख्य रूप से सर्वोदय, जापान भारती, ज्वालामुखी (जापान से), सचित्र (चीन से), पुरवाई, प्रवासिनी (बिट्रेन से), शांतिदूत, अप्रवासी टाईम्स (नार्वे से), सौरभ विवेक, (अमेरिका से), अर्योदन, बसंत (मारीशस से) निकलती है । इससे यह पता चलता है कि साहित्य और बोलचाल की भाषा से निकल कर हिंदी अब बाजार की भाषा बन गई है ।

रेडियों तो हिंदी और भारतीय भाषाओं का प्रयोग करने वाला व्यापक माध्यम रहा ही है, टेलीविजन भी बहुत थोड़े समय के भीतर ही हिंदी भाषा का माध्यम बन गया । वैश्विकरण की एक और देन है अनुवाद । आज अंग्रेजी के तमाम जानकारीपूर्ण और मनोरंजनात्मक दोनों प्रकार के, कार्यक्रम हिंदी में डब करके प्रसारित किये जा रहे हैं ।हिंदी अनुवाद के माध्यम से ‘द ममी रिटर्न्स’ को सन् 2001 में 23 करोड़ रुपए का लाभ हुआ 2002 में स्पाइडर को 27 करोड़ का और 2004 म स्पाइडर-2 को 34 करोड़ का लाभ मिला । इसी तर्ज पर डिस्कवरी, कार्टून नेटवर्क, एनिमल वनडे आदि कार्यक्रम भी अंग्रेजी में ही प्रारम्भ हुए परन्तु विवश होकर इन सबको हिंदी अपनानी पड़ी क्योंकि हिंदी मुनाफे की भाषा सिद्ध हुई । अकेले ‘कौन बनेगा करोडपति’ ने मीडिया के क्षेत्र में हिंदी के झंडे गाड़ दिये । इंग्लैण्ड में दूरदर्शन पर रामानन्द सागर का ‘रामायण’ और बी० आर० चोपड़ा का महाभारत इतना लोकप्रिय हुआ कि स्वयं ब्रिटेन के तरुण –वृद्ध भी भारत के अतीत की शौर्य-गाथा से मुग्ध हो गये । सूरीनाम में दूरदर्शन पर ‘महाभारत’ का दो बार प्रसारण हुआ । तुर्की, इराक, सउदी अरब, मिस्र, लीबिया, अल्जीरिया आदि इस्लामी देशों में भी हिंदी फिल्मों के प्रति विशेष लगाव रहा है । इंग्लैण्ड, कनाडा, अमेरिका, स्वीडन, नार्वे, डेनमार्क, मारीशस, फिजी, त्रिनिनाड, मलेशिया, सिंगापुर, हांगकांग जहाँ-तहाँ भारतीय, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, नेपाली मूल के लोग बसे हुए हैं, वहाँ के बाजार में हिंदी फिल्म, गीत, धारावाहिक आदि की सी०डी० सहज रूप में उपलब्ध हो रही है । इस प्रकार सिनेमा के माध्यम से भी हिंदी वैश्विक स्तर पर सम्मान प्राप्त कर रही है । आज अनेक फिल्मकार भारत ही नहीं यूरोप, अमेरिका और खाड़ी देशों के अपने दर्शकों को ध्यान में रखकर फ़िल्में बना रहे हैं और हिंदी सिएनमा ऑस्कर तक पहुँच रहा है, (स्लमडॉग मिलिनेयर, वाटर, तारे जमीं पर, पीपली लाईव, बर्फी आदि) । दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री भी हमारे यहाँ है, जहाँ सालाना 600 के करीब नई फ़िल्में बनती हैं । इनमें हिंदी की लगभग 150 फ़िल्में होती हैं, जिससे हजारों करोड़ रुपए का कारोबार होता है । मोबाइल और कम्प्यूटर क्रान्ति ने विश्व का नक्शा बदल दिया है । आज आम आदमी मोबाइल और कम्प्यूटर से जुड़ा हुआ है और उसके जीवन का अभिन्न भाग बना हुआ है ।ये ऐसे माध्यम है जिन्होंने दुनिया को सचमुच मुठ्ठी में कर दिया है । ‘नई दुनिया’ मीडिया के क्षेत्र में पहली बार हिंदी भाषा, देवनागरी लिपि को लेकर उपस्थित हुई ओत उसने रोमन लिपि, अंग्रेजी भाषा के एकाधिकार को तोड़ हिंदी भाषा, देवनागरी लिपि की नयी भूमि तैयार की । बिल गेट्स ने स्वयं हिंदी और देवनागरी लिपि को कम्प्यूटर के लिए श्रेष्ठ माना । कम्प्यूटर पर द्विभाषिक शब्द संसाधन के लिए कई पैकेज बाजार में उपलब्ध हैं  जैसे- सुलिपि, आकृति, लीला, हिंदी प्रबोध, बैंक मित्र, श्री लिपि, प्रकाशक, सुविंडो, गुरु आदि । लेखक, हिंदी वाणी, अनुसारका, सॉफ्टवेयर हैं । अमेरिकी सॉफ्टवेयर कम्पनी माइक्रोसॉफ्ट कोर्पोरेशन ने अपना पहला सॉफ्टवेयर हिंदी वर्ड 2000 जारी किया, जिससे हिंदी में सर्च इंजन के आ जाने के साथ इंटरनेट पर उपलब्ध हैं । बढ़ती मांग के कारण हिंदी में लिखने के लिए सी-डैक ने निशुल्क सॉफ्टवेयर जारी किया, जिसमें अनेक सुविधाएँ उपलब्ध हैं । आईबीएम द्वारा विकसित सॉफ्टवेयर में हिंदी भाषा के  65000 शब्दों को पहचानने की क्षमता है । इंटरनेट पर 50,000 से भी ज्यादा हिंदी ब्लॉग हैं । गूगल से हिंदी में जानकारियाँ धडल्ले से खोजी जाती हैं । हिंदी यूनिकोड के विकास ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हिंदी लिखना आसान बनाया है, आगे भी यह विकास लगातार जारी है । गतिशीलता हिंदी का बुनियादी चरित्र है और हिंदी अपनी लचीली प्रकृति के कारण स्वयं को सामाजिक आवश्यकताओं के लिए आसानी से बदल लेती है । वैश्विकरण के दौर में उसके बढ़ते हुए कदमों के साथ टैक्नोलोजी को लेकर हिंदी दुनिया की किसी भाषा से कम नहीं है । हमारे वैज्ञानिक और टैक्नोक्रेट जी जान से जुड़े हुए हैं जिससे हिंदी की सारी कमियां दूर हो और यह दुनिया की सबसे गतिशील भाषा बन जाए ।

इस प्रकार 1000 ई० के आस-पास शौरसैनी अपभ्रंश से अपने विकास की यात्रा को आरम्भ कर हिंदी आज न केवल हमारी भाषा है बल्कि हमारी अस्मिता, हमारे विचारों की संवाहक, हमारे जीवन का आधार, हमारी सांस्कृतिक जातिगत चेतना, हमारा अस्तित्व, हमारा राष्ट्र-अभिमान है । इसे हर दशा में प्रगतिशील बनाए रखना हम सबका कर्तव्य है ।

 

सन्दर्भ ग्रंथ :-

1.      साम्य – 22 अगस्त 1995, पृष्ठ 177

2.      नागरी प्रचारिणी पत्रिका, जनवरी 1912, पृष्ठ 10

3.      भाषा साहित्य और संस्कृति- सं० विमलेश कांति वर्मा, मालती ओरिएंट ब्लैकस्वान प्रा० लि० 2009, पृष्ठ 395

4.      आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : प्रस्थान और परम्परा – राममूर्ति त्रिपाठी, वाणी प्रकाशन, 2005, पृष्ठ 191

5.      भाषा साहित्य और संस्कृति- सं० विमलेश कांति वर्मा, मालती ओरिएंट ब्लैकस्वान प्रा० लि० 2009, पृष्ठ 94 

सहायक आचार्य, हिंदी विभाग

राजस्थान केन्द्रीय विश्वविद्यालय

किशनगढ़, अजमेर 

  



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