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आधुनिक संस्कृत साहित्य में विदेशी विद्वानों का योगदान


आधुनिक संस्कृत साहित्य में विदेशी  विद्वानों का योगदान

अरुण कुमार निषाद

भारतीय वाड्मय में संस्कृत-साहित्य सरसता एवं भाव-गाम्भीर्य की दृष्टि से अनुपम रचनाओं का अक्षय भण्डार है | न केवल वह विश्व-साहित्य में प्राचीनता के लिये ही अपना स्थान रखता है, अपितु लोकमंगल की साधना, व्यावहारिकी शिक्षा मनोरंजन का अप्रतिम साधन होने के कारण इसने विश्वविश्रुत ख्याति प्राप्त की, सार्वदेशिक देशिकों द्वारा मुक्तकण्ठ प्रशंसा भी अर्जित की है | इस प्रकार महत्त्व को प्राप्त भारतीय काव्य-साहित्य और तत्सम्बन्धी लक्षण-ग्रन्थों के इतिहास ने पाश्चात्य संस्कृतज्ञों को आकर्षित किया, और उन्होंने लौकिक साहित्य के अन्तस्तल तक अवगाहन कर, उसके रसास्वादन से आनन्द-विभोर हो, भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए अपने मौलिक विचार प्रकट किये |  

भगवदाचार्य  

आपका जन्म स्यालकोट (पाकिस्तान) में सन् 1880 ई. में हुआ | आपने संस्कृत का प्रारम्भिक ज्ञान अपने बड़े भाई से प्राप्त किया | तत्पश्चात् आपने काशी के विद्वानों से संस्कृत का गहन अध्ययन किया | आप  राष्ट्रपिता  महात्मा गाँधी से अत्यधिक प्रभावित थे | यही कारण था कि आपने उनके साबरमती आश्रम में अध्यापन कार्य भी किया और सत्याग्रह आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई |

sanskrit



रचनायें- श्रीमहात्मागान्धिचरित | इसके तीन भाग हैं- 1. भारतपारिजात (25 सर्ग) 2. पारिजातापहार (29सर्ग) 3. पारिजातसौरभ (20 सर्ग) | सत्याग्रह के विषय में गाँधी जी कथन है-

सत्याग्रहस्तीव्रममोघमस्त्रं स्थातुं न शक्नोति पुरश्च तस्य |

अनीकिनी काऽपि महाबलाऽपीत्येतत्तु जानीथ चिरेण यूयम् ||1

(अर्थात् सत्याग्रह एक तीव्र अमोघ अस्त्र है, जिसके सामने बलवती सेना भी नहीं टिक सकती यह तुम चिरकाल से जानते हो ) |

इसी महाकाव्य में पं. जवाहरलाल नेहरू महात्मा गाँधी की हत्या पर कहते हैं-

न हि रोचिरद: प्रकाशते परितोऽस्मानिह साम्प्रतं |

वयमद्य समावृता: परं तमसामेव चयेन भारते ||

न हि राष्ट्रपिताऽद्य वर्तते गुरुदेवो गत एव मां त्यजन् |

परम: सुहृदस्तमन्वगादधुना को हि निषेव्यतां मया ||2

(अर्थात् हमारे चारों ओर जो प्रकाशित हो रही थी वह ज्योति अब बुझ गई | भारत में हम अन्धकार-समूह से घिर गये हैं | अब राष्ट्र के पिता नहीं रहे | मुझे छोड़ गुरुदेव चले गये | परम मित्र चले गये किसकी सेवा करूं) |                                                 

कालीपद तर्काचार्य 

आपका जन्म बांग्लादेश के फरीदपुर जनपद के कोटलिपारा-उनशिया गाँव में सन् 1888 ई. में हुआ | इनका उपनाम काश्यपकवि था | आपने सन् 1932 ई. में कोलकाता विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया | आप महामहोपाध्याय की उपाधि से भी सम्मानित हुए हैं |

रचनायें- 1.सत्यानुभाव (24 सर्गों का महाकाव्य) | यह महाकाव्य सत्यनारायण कथा पर आधारित है | इसमें कलि के प्रभाव का वर्णन, रमोपदेश, नारद बैकुण्ठ प्रवेश, नारद प्रेरणा, दरिद्र ब्राह्मण भिक्षाटन, नारदोपदेश, प्रदोष वर्णन, सत्यपूजोत्सव, ब्राह्मणवणिक्संवाद आदि का वर्णन है | इनके काव्य में राष्ट्रीय-चेतना का एक उदाहरण द्रष्टव्य है-

चरति भारतवक्षासि सन्ततं करुणरोदनमन्तरदारणम् |

शमय सोमकरैरिवतापितं सदुदेशकथामृतधारया ||3

 (अर्थात् भारत के वक्ष में सदा हृदय को विदीर्ण करने वाला करूण रोदन प्रवर्तमान है | आप सदुपदेशरूप कथामृत की धारा से उस ताप का शमन करें )

2.         योगिभक्तचरित | 

श्री द्विजेन्द्रलाल शर्मा

इनका जन्म बांग्लादेश के सिलहट नगर में सन् 1917 ई. को हुआ |

रचनायें-

1.         अमेयावधानम् (महाकाव्य)

 2.        महीमहम् (12 सर्गों का महाकाव्य)

 3.        अलकामिलनम्

 4.        द्वैतकाव्यम्

 5.        अद्वैतामृतसागर  

 6.        मैत्र्यमाधुर्यम्

 7.        गुञ्जनपुञ्जाञ्जलि तथा

 8.        ऋतुकौतुकम्  |     

कविरत्न कृष्ण प्रसाद शर्मा घिमिरे

इनका जन्म नेपाल देश के काठमाण्डू नगर में सन् 1918 ई. में हुआ |

रचनायें-

1.         श्रीकृष्णचरितम् (58 सर्ग )

2.         नाचिकेतसमम्  (28 सर्ग)

3.         वृत्तवधमम् 

4.         ययातिचरितम् 

5.         श्रीरामविलाप

6.         सम्पातिसंदेश:

7.         नेपालेश्वरगौरवम् 

8.         मनोयानम् 

9.         गौरीगिरीशम् 

10.       गीतिमहाकाव्य

11.       श्रीकृष्णगद्यसंग्रह

12.       श्रीकृष्णपद्यसंग्रह

13.       सत्सूक्तिकुसुमाञ्जलि |

 इसके अतिरिक्त इन्होंने नेपाली भाषा में भी अनेक गद्य-पद्य ग्रन्थों की रचना की है |     

रामचन्द्र (हरिशरण) शाण्डिल्य

इनका जन्म सन् 1927 ई. को पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में हुआ था |

रचनायें- इनके चार लघुकाव्य प्राप्त होते हैं

1.यात्राप्रसंगीयम्- इसमें दो खण्ड हैं पूर्वार्ध और उत्तरार्ध | इसका प्रकाशन 1988 ई.में हुआ |

2.ऋतुवर्णनम्- इसमें छ: ऋतुओं का वर्णन है | यह श्रृंगाररस प्रधान खण्डकाव्य है |

3.स्तोत्रावलि:

4.कामदूतम्- यह खण्डकाव्य मेघदूत की शैली पर आधारित है | इस काव्य में पाकिस्तान में रह रही एक प्रेमिका  भारत में रह रहे अपने प्रेमी को संदेश भेजने का वर्णन है | इसमें दूत का कार्य स्वयं कामदेव ने किया है | इसके दो भाग हैं पूर्वकाम और उत्तरकाम |                             

डॉ. सत्यव्रत शास्त्री

इनका जन्म लाहौर नगर ( पाकिस्तान) में 29 सितम्बर 1930 को हुआ था | इनके पिता का नाम आचार्य प्रवर श्री चारूदेव शास्त्री है | आपके पिता  पाणिनि व्याकरण के अच्छे विद्वान थे | आपकी शिक्षा-दीक्षा अम्बाला,जालन्धर तथा वाराणसी में सम्पन्न हुई | आप दिल्ली विश्वविद्यालय में संस्कृत के आचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए हैं |

रचनायें श्रीबोधिसत्वचरितम् (महाकाव्य) | इसका प्रथम संस्करण 1960 ई. तथा द्वितीय संस्करण 1973 ई. में प्रकाशित हुआ | इसका प्रकाशन केन्द्र है- मेहरचन्द लछमनदास, दरियागंज दिल्ली | यह पालि तथा संस्कृत की जातक कथाओं पर आधारित है | इसमें गौतमबुद्ध द्वारा बुद्धत्व प्राप्त की घटना का उल्लेख है |

 इस महाकाव्य के विषय में प्रसिद्ध आलोचक डॉ.धर्मेन्द्र कुमार गुप्त का कथन है –“कथानक की सीमाओं के होते हुए भी कवि उक्त पात्रों (जैसे अरिष्टपुर का नरेश शिबि, युक्तमना कृषक, संघ, और उसका मित्र पीलिय ) एवं अन्य पात्रों में चरित्र का क्रमिक विकास दिखने में सफल हुआ है |”     

इस महाकाव्य में श्रृंड़्गार रस का एक उदाहरण द्रष्टव्य है

अनड़्गरड़्गस्थलमन्तरड़्गं तरड़्गयन्ती कुटिलै: कटाक्षै: |

असौ विशालायतपक्ष्मलाक्षी मनोऽहरन्ते वनकिन्नरीव ||

मणिप्रभोद्भासितकुण्डलश्रीर्होमद्युतिर्विद्युदिवोल्लसन्ती |

मुग्धा विदग्धोचितलीलाया मां व्यलोकयत्सा चकिता मृगीव ||4   

 (अर्थात् कुटिल कटाक्षों से कामदेव के रंगस्थल रूप मेरे अन्तरंग को तरंगित करती हुई यह विशाल, आयत तथा पक्ष्मल नेत्रों वाली वन-किन्नरी की भाँति मेरा मन हर चुकी है, मणिकी प्रभा से उद्भासित कुण्डल-शोभा वाली सुवर्णकान्तिवाली, बिजली की भांति कौंधती हुई उस मुग्धा ने विदग्ध के समुचित लीला से चकित मृगी की भाँति मुझे निहारा) |                                          

2.इन्दिरागाँधीचरितम् (महाकाव्य)- इस महाकाव्य में 25 सर्ग हैं | इसका प्रकाशन केन्द्र है- भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली 1976 ई. |

3.श्रीरामकीर्ति (महाकाव्यम्)- इसमें 25 सर्ग है | यह थाईदेश की रामायण पर आधारित महाकाव्य है | यह महाकाव्य बैकांक से सन् 1990 ई. में प्रकाशित हुआ | इसमें कुछ ऐसे श्लोक हैं, जिनका वर्णन वाल्मीकि रामायण में नहीं है | यथा-

 हनुमान जी का वेञ्जकयी और सुवर्णमत्स्या के साथ रमण करना |

दृष्ट्वैनमत्र मनस:सुतरामनीशा जाने न किं खलु मया करणीयमत्र |

पर्याकुलेव लुलितेव सुविह्लेव वल्लीव पौरुषतरुं श्रयितुं लषामि ||5

(अर्थात् इन्हें देखकर ही पूरा मन दे बैठी, समझ में नहीं आता क्या करूं ? पर्याकुल-सी, लुलित-सी, विह्वल-सी लता की भाँति इनके पौरूष रूपी वृक्ष का आश्रम लेना चाहती हूँ  )|

4.         वृहत्तरभारतम्  (शतक काव्य )

5.         श्रीगुरुगोविन्दसिंहचरितम् (प्रबन्धकाव्य, 1937 ई.)

6.         शर्मण्य देश: सुतरां  विभाति (यात्रा वृत्तान्त)

7.         थाई देश विलासम् (खण्डकाव्य) |

डॉ.मदनलाल वर्मा -

इनका जन्म ग्राम तुलम्बा (वर्तमान में पाकिस्तान में है) में 16 मई सन् 1931 ई.  में हुआ था |

रचनायें- 1.सदानीरा  तथा 2.कपिशा (दो संस्कृत काव्य संग्रह) |

डॉ.रामजी ठाकुर

इनका जन्म नेपाल देश में फुलगामा नामक स्थान पर 13 मई सन् 1935 ई. में हुआ था | इनके पिता का नाम श्री सत्यनारायण ठाकुर तथा माता का नाम श्रीमती गायत्री देवी है |

रचनाएँ

1.         वैदेहीपदाङ्कम् (खण्डकाव्य)

 2.        राधाविरहम् (खण्डकाव्य) 

3.         वाणेश्वरी (खण्डकाव्य) 

4.         गोविन्दाचरितामृतम्  (खण्डकाव्य) 

5.         प्रेम रहस्यम् (खण्डकाव्य) |                      

पं.पशुपति झा

इनका जन्म नेपाल देश में जनकपुर के निकट सादा नामक गाँव में हुआ | इनके पिता का नाम श्री कृष्णानन्द झा है |

रचनायें-

 1.        नेपालसाम्राज्योदम्  (15 सर्गों का महाकाव्य)

2.         वाताह्वानम्  |

भारत के सम्बन्ध में कवि का कथन है

यत्प्राड़्गणे भव्यमनेकतीर्थगड़्गार्कजानिर्मलतोयपूतम् |

स्वरर्गलोद्घाटनमस्ति नूनं तद्भारतं वेत्ति न को जगत्याम् ||

डॉ.हरिहर शर्मा अर्याल हरि अरविन्द

इनका जन्म नेपाल देश के लुम्बनी क्षेत्र में ग्राम मदनपोखरा में सन् 1952 ई. को हुआ था |

रचनाएँ

1.         मातलिमहिमा 

2.         समयशतकम् 

3.         तपस्विकृषीवलम्  

4.         नवग्रहावदानम् 

5.         भावनक्षत्रमालिका  |

रामनाथ आचार्य                

रामनाथ आचार्य नेपाल के  वाल्मीकि संस्कृत महाविद्यालय में प्राचार्य हैं |

रचनायें- पद्यमालिका | इसमें अनेक देवी-देवताओं की स्तुतियाँ हैं | इसमें पारम्परिक छन्दों का प्रयोग किया गया है |

इस प्रकार हम यह देखते हैं कि- देववाणी संस्कृत का प्रचार-प्रसार केवल भारत की सीमाओं तक ही सीमित न होकर देश-देशान्तर तक फैला हुआ है |

 

सन्दर्भ ग्रन्थ

1.आधुनिक संस्कृत साहित्य का इतिहास, सम्पादक डॉ.जगन्नाथ पाठक, उ.प्र. संस्कृत संस्थान, लखनऊ, प्रथम सं. 2000 ई.,  पृ.36

2.वही, पृ.37

 3.वही, पृ.52

 4.वही, पृ.45

5.वही, पृ.48

6.वही, पृ.118                             



(चित्र साभार: खालीपेपर)



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