हिंदी कविता- क्षितिज का प्रचार
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हिंदी कविता- क्षितिज का प्रचार
कहाँ नभ की ऊँचाई
और कहाँ
तल धरती का
कहीं मेल नहीं
छूना अंबर का
कोई खेल नहीं,
पर क्षितिज ने
सदियों से फैलाया है भ्रम कि
उसके अंगना में
धरा नभ से मिलने आती हैं
इस असत्य प्रचार से उसने
नाम तो प्रचुर कमाया है
पर धरती नभ की
गरिमा को
बहुत घटाया है !
--ओंम प्रकाश नौटियाल
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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