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दुनियाँ लगे अलाव

कैसा खेला धूप ने, यह अजीब सा दाँव
पहले वृक्ष सुखा दिये, ढूंढ़ रही अब छाँव

किरणें दिखलाने लगी , अपना रूप प्रचंड़
मौसम के आदेश पर , हमे दे रही दंड़

सूरज तपता देखकर , गई बसंत बहार
रूखा सूखा हो चला , नदियों का व्यवहार

तनहा सूरज धूप से, कैसे करे बचाव
अंतस मे जब आग हो, दुनियाँ लगे अलाव

सूर्य देव के क्रोध को, मौसम की पहचान
ठंड़ा पड़ता शीत में,  चढ़ता ग्रीष्म उफान

सूरज का चाबुक चला नदियाँ हुई लकीर
ताल तड़ाग सूख गये, नयन बचा बस नीर

हरा भरा पथरा गया, फैली रेत ही रेत
झुलसे झुलसे लोग हैं, सूखे सूखे खेत

भानु भट्टी भभक रही, धरा तपे बेभाव
जले भुने जो विगत से,उन पर कहाँ प्रभाव ?
-ओम प्रकाश नौटियाल
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
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