बिगाड़ क्या ले महँगाई ?
महँगाई जितनी बढ़े,
पृथ्वी पर यह लुत्फ,
सूर्य परिक्रमा प्रति वर्ष,
मिल जाती है मुफ्त,
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मिल जाती है मुफ्त,
सैर करोड़ों मील की,
फ़्री में पूरी चाह,
प्रत्येक प्रगतिशील की,
-
इतना है जब लाभ ,
और वह सब भी स्थायी,
तनिक कर उछल कूद,
बिगाड़ क्या ले महँगाई ?
-ओम प्रकाश नौटियाल
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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