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सब बिकता है

कहीं शिक्षा बिकाऊ है,
कहीं पर योग बिकता है,
दवा बिक्री बढाने को
प्रथम पर रोग बिकता है,

कहीं पर अंग बिकते हैं,
कहीं अंतरंग बिकते है,
साधु जीवन बिताने के
विलासी ढंग बिकते हैं ,

अदा औ’ नाज बिकता है,
कलम, अन्दाज बिकता है,
किसी का कल बनाने को
हमारा आज बिकता है,

कही दुर्भाव बिकता है,
तंगी, अभाव बिकता है,
कहीं अद्दश्य शक्ति तुल्य
केवल प्रभाव बिकता है, 
-ओम प्रकाश नौटियाल
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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