अंबर ओर पतंग
दंगे धरती पर चलें ,
सेवा खातिर जंग,
चैन खोजने तब चली ,
अंबर ओर पतंग,
अंबर ओर पतंग ,
वहाँ भी चैन न पाएं,
थाम हाथ में डोर ,
मनचले पेंच लड़ाएं,
बहुरंगी यह देश ,
कहें रंगीन पतंगे ,
दिखा गगन के स्वप्न ,
वहाँ करवाते दंगे !
-ओम प्रकाश नौटियाल
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