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कृष्णा हैं किस कुंज मे,  
विषधर मारें दंश,
शिशुपाल अपशब्द बकें, 
मुक्त विचरते कंस,

मुक्त विचरते कंस, 
अधम, दुर्जन स्वतंत्र हैं,
गाते अपना राग , 
स्चार्थ बस मूल मंत्र है,

विदुर रहें फिर मौन, 
फैलती देख वितृष्णा, 
बढ़े प्रेम, सौहार्द , 
शीघ्र  अब आओ कृष्णा !  
-ओम प्रकाश नौटियाल
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