दीपक यात्री की रचनाएं
विश्वहिंदीजन चौपाल7:05:00 pm
आँखें मटका कर निकलते जा रहे हैं दिन मुठ्ठियों के रेत-सा फिसलता जा रहा है - जीवन शनै: शनै: क्षीण हो रही हैं तुम्हारी स्मृतियाँ ...
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