सुधीर सक्सेना की कविताएँ
1. सुन्दरी
तुम
समुद्र से नहाकर निकलीं
और पहाड़ को
तकिया बनाकर
लेट गईं
घास के बिछौने पर
अम्लान।
2. आई बरसात तो
गाती हैं बेग़म अख़्तर
फ़ाकिर की ग़ज़ल
फिर-फिर सुनता हूँ
ग़ज़ल के बोल
बेग़म की बेमिसाल गायकी
मगर बारिश दिल नहीं तोड़ती
सुप्रिया साथ है खुले आसमान तले
बारिश में
बरसात में सचमुच बरसती है शराब
3. वर्जना से प्रेम
पहाड़ वर्जना है
वर्जना है पहाड़ हवा के लिए
वर्जना है बाँध
बाँध वर्जना है नदी के प्रवाह के लिए
गति के लिए वर्जना है गतिरोध,
श्वेत को बरजता है श्याम
ऊष्मा को शीत
और प्रकाश को अन्धकार
संसार की अधोगति
कि वर्जनाओं में जॊता हैसंसार
संसार में वर्जनाएँ हैं इस कदर
कि जीवन मायने वर्जनाएँ बेहिसाब
इसका विशुद्ध विलोम है प्रेम
ऐन वर्जनाओं को बरजने के क्षण से
शुरू होता है प्रेम
4. सातवीं ऋतु
ऋतुओं से नाता नहीं है प्रेम का
कि प्रेम अपने आप में अलग ऋतु है
सातवीं ऋतु है प्रेम
छहों ऋतुओं को समोये अपने आप में
प्रेम में ताप है
प्रेम में शीत
प्रेम में बयार है
प्रेम में वृष्टि,
प्रेम को फ़र्क नहीं पड़ता, न आँधी से, न पानी से,
भीति नहीं जानता प्रेम, न ओलों से, न पाले से,
उतना ही उद्दाम फूटता है, जितनी ज़्यादा विषम होती है
पारिस्थितिकी
अगर्चे देह में उमगता है हठात् रोमांच,
और मन की डार पर फूटता है अचानक बौर
तो समझ लो आ गई जीवन में
सातवीं ऋतु प्रेम की
5. आकांक्षा
हम देखें वह दृश्य,
जो हमारे देखे तमाम दृश्यों से अधिक
ख़ूबसूरत और मनहर है,
बोलें हम बोल
जो मीठे हैं हमारे बोले गए
तमाम बोलों से,
मुस्कुराएँ हम
तो हमारी मुस्कान में सम्मिलित हों
किसी और के होंठ
हम उस धड़कन को जिएँ
जिसमें गुँथी होती है
किसी और की धड़कन
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