असम का लोकसाहित्य: - वीरेंद्र परमार
असम का लोकसाहित्य
- वीरेंद्र परमार
भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार और तिब्बत- पांच देशों की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अवस्थित है । असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम- इन आठ राज्यों का समूह पूर्वोत्तर भौगोलिक, पौराणिक, ऐतिहासिक एवं सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है । सैकड़ों आदिवासी समूह और उनकी उपजातियां, असंख्य भाषाएं व बोलियां, भिन्न–भिन्न प्रकार के रहन-सहन, खान-पान और परिधान, अपने-अपने ईश्वरीय प्रतीक, आध्यात्मिकता की अलग-अलग संकल्पनाएं इत्यादि के कारण यह क्षेत्र अपनी विशिष्ट पहचान रखता है । पर्वतमालाएं,हरित घाटियां और सदाबहार वन इस क्षेत्र के नैसर्गिक सौंदर्य में अभिवृद्धि करते हैं । जैव-विविधता, सांस्कृतिक कौमार्य,सामूहिकता-बोध, प्रकृति प्रेम, अपनी परंपरा के प्रति सम्मान भाव पूर्वोत्तर भारत की अद्धितीय विशेषताएं हैं । अनेक उच्छृंखल नदियों, जल- प्रपातों, झरनों और अन्य जल स्रोतों से अभिसिंचित पूर्वोत्तर की भूमि लोक साहित्य की दृष्टि से भी अत्यंत उर्वर है ।
महाभारत में असम का उल्लेख प्रागज्योतिषपुर के रूप में मिलता है। कालिका पुराण में भी कामरूप – प्रागज्योतिषपुर का वर्णन है। यजुर्वेद में सर्वप्रथम ‘किरात’ का उल्लेख किया गया है। इसके उपरांत अथर्ववेद, रामायण एवं महाभारत में भी उन मंगोल मूल की भारतीय जनजातियों की चर्चा मिलती है जो देश के उत्तर – पूर्वी क्षेत्र की पर्वतघाटियों एवं कन्दराओं में निवास करती हैं। ब्रह्मपुत्र घाटियों का संबंध किरात से है। संस्कृतभाषी आर्यों ने एक जाति के लोगों का उल्लेख किया है जिनका रंग पीला और आकृति चीनी लोगों के समान थी। इस वर्ग के लोगों को आर्य ‘किरात’ कहते थे। महाभारत के विख्यात योद्धा राजा भगदत्त पूर्वोत्तर भारत के थे। डॉ रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार “किरातों का मूल अभीजन पूर्वी चीन में था । वहीं से लोग तिब्बत, नेपाल, बर्मा, असम, उत्तरी बंगाल और उत्तरी बिहार में आए। भारत में किरातों का आगमन कब हुआ, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यजुर्वेद और अथर्ववेद में किरातों का उल्लेख है। उस समय के अन्य प्रमाणों से भी यह अनुमान निकलता है कि किरात ईसा से एक हज़ार वर्ष पूर्व भारत पहुँच गए थे और वे हिमालय की तराई तथा पूर्वी भारत में आबाद थे। नेपाल के नेवार और किरंती लोग, कश्मीर के लद्दाखी, दार्जिलिंग के लेपचा, त्रिपुरा और मणिपुर के क्षत्रिय, उत्तर असम के अक्का, मीरी, अबोर और मिश्मि लोग किरात वंश के हैं। ” (संस्कृति के चार अध्याय)
असम पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा प्रदेश है I असमिया असम की प्रमुख भाषा है । यहां बांग्ला और हिंदी भी बोली जाती है । इनके अतिरिक्त राज्य की अन्य भाषाएं हैं-बोड़ो, कार्बी, मिसिंग, राभा, मीरी आदि । लोकसाहित्य की दृष्टि से असम बहुत समृद्ध है I असमिया साहित्य, संस्कृति, समाज व आध्यात्मिक जीवन में युगांतरकारी महापुरुष श्रीमंत शंकर देव का अवदान अविस्मरणीय है । उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक मौन अहिंसक क्रांति का सूत्रपात किया । उनके महान कार्यों ने इस क्षेत्र में सामाजिक- सांस्कृतिक एकता की भावना को सुदृढ़ किया । उन्होंने रामायण और भगवद्गीता का असमिया भाषा में अनुवाद किया । पूर्वोत्तर क्षेत्र में वैष्णव धर्म के प्रसार के लिए आचार्य शंकर देव ने बरगीत, नृत्य–नाटिका (अंकिया नाट), भाओना आदि की रचना की । उन्होंने गांवों में नामघर स्थापित कर पूर्वोत्तर क्षेत्र के निवासियों को भाईचारे, सामाजिक सदभाव और एकता का संदेश दिया । असम में शास्त्रीय नृत्य के तीन रूप हैं – भाओना, मंदिर नृत्य और ओजापालि I भाओना की रचना श्रीमंत शंकरदेव ने की I भाओना नृत्य नाटिका (अंकिया नाट ) है I इसका मुख्य उद्देश्य वैष्णव धर्म के बारे में जनसामान्य को जानकारी देना है I इसका मंचन प्रायः नामघरों में ही होता है I ओजापालि नृत्य गायकों- नर्तकों द्वारा कोरस के रूप में प्रस्तुत किया जाता है I ओजापालि ओजा और पालि दो शब्दों के योग से बना है I ओजा का अर्थ है निपुण तथा पालि का अर्थ है सहायक अथवा साथी I कोरस का नेतृत्व करनेवाले को ओजा और उसके सहायक को पालि कहा जाता है I लोकसाहित्य की दृष्टि से असम बहुत समृद्ध है I यहाँ नृत्य के दो प्रमुख रूप हैं – बिहू नृत्य और सत्रिय नृत्य I बिहू लोकनृत्य है एवं सत्रिय शास्त्रीय नृत्य है I बिहू नृत्य असम की पहचान बन गई है I इसमें आबालवृद्धवनिता सभी भाग लेते हैं I बिहू त्यौहार के अवसर पर बिहू नृत्य की प्रस्तुति होती है I वर्ष में बिहू पर्व तीन बार मनाया जाता है जिसे रंगाली बिहू, कंगाली बिहू और भोगाली बिहू कहा जाता है I इस नृत्य में बिहू गीत भी गाये जाते हैं I बिहू गीतों का केंद्रीय विषय प्रेम होता है I इसमें असम की साझी संस्कृति झलकती है I बिहू नृत्य में नर्तकगण गोलचक्र बनाकर नाचते- गाते हैं I बिहू पर्व के अवसर पर हुसरी नृत्य भी प्रस्तुत किया जाता है I इस नृत्य में नर्तक घर- घर घूमते हैं और नृत्य-गीतों के द्वारा अपनी उत्सवधर्मी भावनाएं प्रकट करते हैं I ढुलिया और भावरिया भी असम के प्रमुख लोकनृत्य हैं I ढुलिया का आधार वाद्ययंत्र ढोलक है और इसे बजानेवाला ही नृत्य का मुख्य आकर्षण होता है I अभिनय इस नृत्य का अभिन्न अंग है I असम में नटुआ नृत्य भी खूब लोकप्रिय है I नटुआ नृत्य के दो प्रकार हैं- पखाजिया और हाजोवालिया I हाजोवालिया की प्रस्तुति महिलाओं द्वारा की जाती है I यह नृत्य तांडव और लास्य का मिश्रण है Iबोडो समुदाय की नृत्य शैली प्रकृति के निकट है I बगरुम्बा और बोरदोइसिकला इस समुदाय के प्रमुख नृत्य हैं I इन नृत्यों में प्रकृति की विभिन्न मुद्राओं को रेखांकित किया जाता है I मिसिंग(मिरि) जनजाति का प्रमुख त्योहार है अलिलिगंग I इस त्योहार में गुमराग नृत्य प्रस्तुत किया जाता है I पोरग भी मिसिंग समुदाय की प्रमुख नृत्य शैली है I इसमें ढोलक की धुन पर सभी ग्रामवासी नाचते हैं I सग्रामिसवा और पिसु तिवा आदिवासी के प्रमुख त्योहार हैं I इस त्योहार का मुख्य आकर्षण यौवन, जोश, उमंग से परिपूर्ण नृत्य हैं I देवरी समुदाय का नृत्य गिरा एवं गिरासी शिव- पार्वती को समर्पित उपासना नृत्य है I यह नृत्य पहले घर के आँगन में किया जाता है, बाद में मंदिर में इसकी प्रस्तुति की जाती है I कार्बी समुदाय में अंत्येष्टि से सम्बंधित नृत्य छोमंगकन प्रचलित है I किसी की मृत्यु होने के बाद इसकी प्रस्तुति की जाती है I असम के आदिवासी समुदायों में प्रचलित अन्य लोकनृत्य हैं – निमसो- केरुंग, हच्छा- केकन, गरई – दबरई- नाई ,गन – दुअला- बन- नाई, नेन्लई- गेला-नाई इत्यादि I
असम में महिलाओं द्वारा प्रस्तुत किये जानेवाले लोकनाट्य भी प्रचलित हैं I इन लोकनाट्यों के द्वारा महिलाएं अपनी भावनाओं का इजहार करती हैं I लोकनाट्य की यह शैली असमिया महिलाओं की स्वतंत्र अस्मिता को रेखांकित करती है I असम में लोकगीतों की उन्नत परम्परा है I बिहू गीत इस क्षेत्र के प्रतिनिधि लोकगीत हैं जिनके माध्यम से जनसामान्य के राग-अनुराग, आशा- आकांक्षा, हर्ष-विषाद आकार ग्रहण करते हैं I बिहू गीतों के अनेक प्रकार हैं और गाने की अनेक शैली प्रचलित है I सोनोवाल कछारी जनजाति का लोकगीत हैदंग केवल पुरुषों द्वारा गाए जाते हैं I गीत के साथ- साथ अंग संचालन व नृत्य हैदंग की विशेषता है I श्रीमंत शंकरदेव ने पूर्वोत्तर भारत में वैष्णव धर्म के प्रसार के लिए भक्तिगीतों की रचना की I ये गीत ब्रजावली अथवा ब्रजबुली में लिखे गए हैं जिन्हें बरगीत कहा जाता है I बरगीत का तात्पर्य है बड़ा गीत अथवा महान गीत I ये गीत आध्यात्मिकता के रंग से सराबोर होते हैं I असम का राभा समुदाय लोकगीतों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है I इनके लोकगीतों में प्रकृति अपने यथार्थ रूप में अभिव्यक्त होती है I मिरि अथवा मिसिंग जनजाति के लोकगीतों को ओई- नितोम कहा जाता है I इस समुदाय के जीवन और संस्कृति का विकास ब्रह्मपुत्र एवं सुबनसिरी नदियों की उर्वर घाटी में हुआ है I इसलिए मिरि लोकगीतों में नदियों की चर्चा प्रमुखता से होती है I निम्नलिखित प्रणय गीत में प्रेमी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहता है कि मैं नदी के इस पार खड़ा हूँ और तुम उस पार I हम दोनों सियांग नदी के दो तटों पर खड़े तड़प रहे हैं, मेरे ह्रदय में तुमको देखने की प्रबल प्यास निरंतर बनी रहती है –
नाक्के दोलंग केकोंदे
गोक्के दोलंग केकोंसे
सियांग असी दुंगकोम्ना
काली दाकोम कापमा I ( श्री एन सी पेगू )
असम में प्रचलित लोककथाओं को साधु कथा कहा जाता है I यहाँ के सभी समुदायों में लोककथा की समृद्ध विरासत है I यहाँ की लोककथाएँ अलौकिक घटनाओं से परिपूर्ण होती हैं I असम तंत्र –मंत्र,जादू – टोना एवं आध्यात्मिकता का केंद्र है I अतः लोककथाओं में तंत्र – मंत्र का समावेश होता है I असम में मुहावरे और लोकोक्तियाँ भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं I यहाँ की वाचिक परंपरा में ज्ञान के मोती बिखरे पड़े हैं जिनका संकलन – संरक्षण – प्रकाशन आवश्यक है अन्यथा ये ज्ञान के मोती काल – प्रवाह में विलुप्त हो जायेंगे I
उपनिदेशक(राजभाषा),
केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड,
भूजल भवन, एन एच- 4,फरीदाबाद- 121001,
मोबाइल- 9868200085, ईमेल:- bkscgwb@gmail.com
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