अमेरिका की कवयित्रियों की मनोभूमि: डॉ. अनिता कपूर
अमेरिका की कवयित्रियों की मनोभूमि
डॉ. अनिता कपूर
परिवेश कोई भी हो....देसी या परदेशी, संवेदनशील मन की छटपटाहट, जिंदगी का कभी मुस्कराना और कभी रूठना, जीवन की लकीरें - कभी पूर्णविराम और कभी अर्धविराम, कभी प्रश्नवाचक, सभी को कलम की नोक से भावनाओं की स्याही में डुबोकर कवितायें लिखी जाती रही हैं। अच्छी कविता वही है, जो पाठक से सीधा संवाद करे। रचनाकार की पूरी मासूमियत को प्रमाता तक सम्प्रेषित कर दे। ऐसी ही रचनाओं के द्वारा अमरीका में बसी कवयित्रियों की कविताएँ साहित्य की यात्रा करने-कराने का एक अनायास माध्यम बनती रही है।
देश से विदेश तक कविता का हमेशा एक अपना ही क्षितिज रहा है। ऐसा ही एक क्षितिज बनाया, लाहौर अविभाजित भारत में जन्मी, १९८२ से ओहायो में रह रहीं, शिखंडी युग, बराह, यह युग रावण है, मुझे बुद्ध नहीं बनना, मैं कौन हाँ ( पंजाबी ) काव्य संग्रहों की रचयिता वरिष्ठ कहानीकार, उपन्यासकार सुदर्शन प्रियदर्शिनी की कविताओं ने। उसी क्षितिज पर, उनकी एक प्रतिनिधि कविता ‘चांद’ ने कथ्य और शिल्प के सहारे संवेदना और अपने परिवेश से दूर किसी बिछुड़े को याद करते नारी मन को बखूबी दर्शाया है-
खिड़की के रास्ते/उस दिन/चाँद मेरी देहली पर/मीलों की दूरी नापता
/तुम्हें छू कर आया/बैठा/मेरी मुंडेर पर/मैंने हथेली में भींच कर/माथे से लगा लिया।
कविता की आत्मा की पहचान, उसकी अभिव्यक्ति से होती है। कवयित्री की एक और कविता ‘कण’, इसी बात को सार्थक करती दिखती है-
एक कण/आकाश से/आर्द्र नमी का/गिरा /अटका रह या/निस्तब्थ/पलक पर -/सामने चार कहार/चार हताहतों/की लाश /ढो रहे थे ...
नार्थ कैरोलाईना में रहने वाली जानी- मानी प्रतिष्ठित कवयित्री, कहानीकार, पत्रकार, उपन्यासकार सुधा ओम ढींगरा, जालन्धर, पंजाब से हैं और अंतरराष्ट्रीय हिन्दी समिति (अमेरिका) के कवि सम्मेलनों की राष्ट्रीय संयोजक हैं । सुधा जी ने यहाँ रचनात्मक सृष्टि का भव्य निर्माण किया है। अमेरिका में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में कार्यरत सुधा ओम ढींगरा के काव्य संग्रह हैं- धूप से रूठी चाँदनी, तलाश पहचान की, सफ़र यादों का, मेरा दावा है ( अमेरिका के कवियों का संपादन ) | हर कविता एक तजुर्बा है, एक ख़्वाब है, एक भाव है । जब दिल के भीतर मनोभावों का तहलका मचता है, तब श्रेष्ठ रचना जन्म लेती है। अपने देश-परदेश की भूली-बिसरी यादों को जीवंत करती, जानी मानी प्रवासी रचनाकार सुधा ओम ढींगरा की कविता, 'देस की छाँव', एक परिपक्व मन की संवेदना भरी अभिव्यक्ति का नमूना है...जो कवयित्री को कला की कसौटी पर खरा उतारता है-
साजन मोरे नैना भर-भर हैं आवें/देस की याद में छलक-छलक हैं जावें
याद आवे/वो मन्दिर/वो गुरुद्वारा/वो धर्मशाला/वो पुराना पीपल का पेड़...
सुधा जी विदेश में रहते हुए भी अपनी मिट्टी से जुड़ी हुई संवेशनशील रचनाकार है, जो परिवार, सम्बन्धों और परिवेश को विषय-वस्तु बनाकर अपनी रचनाओं द्वारा पाठक को अनुभव सागर से जोड़ लेती हैं। एक कविता ,यह वादा करो में ऐसे ही भाव दिखते है-
यह वादा करो/ कभी ना उदास होंगे/ सृष्टि के कष्ट चाहे सब साथ होंगे
प्रसन्नता के क्षणों को/एकांत से ना सजाना/ हम न सही, कुछ लोग खास होंगे | .
मनोबल में सकारात्मक संचार कराती सुधा जी की कविताएँ, ‘मैं दीप बाँटती हूँ’, में, कवि मन के भाव कहते हैं-
मैं दीप बाँटती हूँ / इनमें तेल है मुहब्बत का/ बाती है प्यार की/ और लौ है प्रेम की
रौशन करती है जो / हर अंधियारे / हृदय ओ' मस्तिष्क को....
सुधा जी की कविताएँ नारी जागृती, प्रेरणा और नारी के विशाल हृदय तथा दायित्व को दर्शाती हुई मौन क्रांति का आवाहन करती हैं |
कराची, पाकिस्तान में जन्मी कवयित्री देवी नागरानी जी मूलत: सिंधी भाषी है। देवी जी, काफी अरसे से अमरीका के न्यू जर्सी शहर में रह रही है। देवी जी हिन्दी ग़ज़ल में सम्माननीय स्थान रखती हैं और इनका ग़ज़ल संग्रह है चिराग़े दिल | किसी भी बात को अपनी निजी शैली में, नए अंदाज से कहने का उनका अपना ही सलीका है । देवी जी की कविता 'चक्रव्यूह' में नारी शक्ति और सोच के निराले तेवर दिखाई देते हैं.....
लड़ाई लड़ रही हूँ/ मैं भी अपनी/ शस्त्र उठाये बिन/ खुद को मारकर
जीवन चिता पर लेटे लेटे/ चक्रव्यूह को छेदकर/ पार जा सकती हूँ
जीवन और रिश्तों को बहुत करीब से देख चुकी देवी की के अनुभव उनकी रचनाओं में साफ उजागर होते है। उनकी एक और कविता, 'जिंदगी एक रिश्ता, एक फासला’ में जिंदगी की आहट साफ सुनाई देती है-
कागज़ के कोरे पन्ने/जिंदगी तो नहीं/न ही काले रंग की पूतन/का नाम है जिंदगी/ जिंदगी है एक रिश्ता/रात का दिन से
कहते है कि अगर किसी रचनाकार को जानना हो, तो उसकी लिखी कविताएँ पढ़ लें। एक ऐसी ही प्रतिष्ठित कवयित्री है मैरीलैंड की रेखा मैत्र; जो देस-परदेस के जीवन के बीच में एक संधि पूर्ण पहलू से हमारा परिचय कराती है। बेशर्म के फूल, मुट्ठी भर धूप, उस पार, रिश्तों की पगडंडिया, मोहब्बत के सिक्के, ढाई आखर, मन की गली, यादों का इन्द्रधनुष आपके काव्य संग्रह हैं | रेखा जी की कविता ‘अपरिचित अनुभूति’, की पंक्तियाँ-
आज अपरिचित शहर में/अपरिचित-सी अनुभूति भी हुई थी।
इसी भाव को सहजता से दर्शाती हैं। उनकी कवितायें मानव संपर्क में भी, रूमानियत तलाशती दिखती हैं। वे ‘बेनाम रिश्ते’ में लिखती है-
मिटने के डर से/उंगलियाँ कहाँ थमती है/उन्हें रौशनाई मयस्सर न हो/तो भी वे लिखती हैं/लिखना उनकी फितरत है
रेखा मैत्र के बिम्ब अद्भुत होते हैं |
राँची, झारखण्ड में जन्मी, ह्यूस्टन में अध्यापनरत, कवयित्री, कहानीकार इला प्रसाद मानती है कि, जब कल्पना यथार्थ में परिवर्तित होती है तब कहीं अपने वजूद से परिचित होने की अनुभूति का आभास होता है। धूप का टुकड़ा इनका कविता-संग्रह है | अपनी कविता ‘दरार’ में कवयित्री कहती है-
सच की ज़मीन पर खड़ी/ विश्वास की इमारत तो/ कब की ढह गई
अब तो नज़र आने लगी है/ बीच में उग आई / औपचारिकता की दरार
इला जी की कविता के शब्दों की गहराई में एक सच अपने प्रवासी दर्द की पीढ़ा अभिव्यक्त करता है, जब वे 'दूरियाँ' में लिखती है-
सब कुछ बड़ा है यहाँ /आकार में /इस देश की तरह/ असुरक्षा, अकेलापन और डर भी/ तब भी लौटना नहीं होता/ अपने देश में।
दिल्ली की डॉ. अनिता कपूर कवयित्री होने के साथ एक पत्रकार भी है और गत पंद्रह वर्षों से कैलिफोर्निया में रह रही हैं | उनकी कविताएँ स्वतः अनायास...कभी पिरामिड -सी तो कभी ताजमहल- सी बन कर चली आती हैं । डॉ. अनीता जी की हर कविता का अपना एक आकाश होता है और शब्द उस आकाश के सितारे, संवेदना चाँद और पाठक सूरज। बिखरे मोती, अछूते स्वर, कादंबरी, ओस में भीगे सपने और साँसों के हस्ताक्षर अनीता जी के काव्य संग्रह हैं | कविता ‘सीधी बात’ में वे कविता से सीधी बात करती हैं---
आज मन में आया है / न बनाऊँ तुम्हें माध्यम / करूँ मैं सीधी बात तुमसे
उस साहचर्य की करूँ बात / रहा है मेरा तुम्हारा / सृष्टि के प्रस्फुटन के प्रथम क्षण से
अनिता जी चिंतनशील कवयित्री है। उनकी कविता, साँसो के हस्ताक्षर में उनका चिंतन पारदर्शी है-
कल को कहीं हमारी आगामी पीढ़ी/भुला न दे हमारी चिन्मयता
चेतना लिपियाँ/प्रतिलिपियाँ/भौतिक आकार मूर्तियां मिट जाने पर भी/
जीवित रहे हमारे हस्ताक्षर
अनिता कपूर को कविताओं के साथ-साथ क्षणिकाएँ और हाइकु लिखने में भी काफी रूचि है।
लखनऊ नगर से कैलिफोर्निया में बसी, कवयित्री मंजु मिश्रा भी कविताओं के साथ -साथ हाइकु और क्षणिकाएँ लिखना पसंद करती हैं। मंजु जी का कविता संग्रह ज़िन्दगी यूँ तो.. प्रकाशनाधीन है | मंजु जी की कविताएँ और क्षणिकाएँ जैसे शब्दों से परे खुद से ही बात करती सी प्रतीत होती हैं। उनकी एक क्षणिका में वे लिखती है-
आँखों की कोर दलदली लब कांपते हुए/अंतर के जख्म अपना बदन ढांपते हुए
बजती रही सितार सी ता-उम्र ज़िंदगी/सपनों के सुर लगे भी तो कांपते हुए
विदेश में रहते हुई भी उनकी नज़र अपने देश की गतिविधियों पर रहती है। वो उनकी कविता ‘भ्रष्टाचार का ख़ात्मा’ में दिखाई भी देता है जब वे लिखती हैं-
आज हर तरफ/भ्रष्टाचार को/जड़ से उखाड़ फेंकने की/मुहिम शुरू हुई है/
अच्छा है/बहुत अच्छा है!!!
मंजु जी की कविताएँ काव्य-शिल्प, और काव्य-भाव की समस्त भूमिका ईमानदारी से निभाती हैं।
लखनऊ में जन्मी और टेक्सास में रहतीं युवा कवयित्री, कहानीकार रचना श्रीवास्तव का बाल साहित्य में भी योगदान है | अपनी लेखनी की रौ से शब्द-शिल्प सौंदर्य और अपनी रचनात्मक लय-ताल से पाठक को बांधे रखती है। उनकी कविता ‘अभिलाषा’ उसी सौंदर्य का उधाहरण प्रस्तुत करती है-
अभिलाषा है / तेरे खुश्क होते शब्दों पे/ बादल रख दूँ/ तुम थोड़ा भीग जाओ
विदेश में रहने के बावजूद अपनी संस्कृति से जुड़ाव की मिसाल पेश करती, रचना जी की कविता, ’बेटियाँ’ दिल को छू लेती है-
तुलसी के बीरे-सी पवित्र /संस्कार में पिरोई बेटियाँ/ पतझर या सावन की हवाओं में/ चिड़िया-सी उड़ जाती हैं
कवयित्री की कविताएँ, दिल से निकल कर, सीधे दिल में पहुँचती हैं । रचना जी को भी हाइकु, क्षणिकाएँ लिखने में महारत हासिल है।
प्रकृति का मानवीकरण करतीं पूरे भारत का भ्रमण कर वर्जिनिया में आ बसीं जम्मू की शशि पाधा के, पहली किरण, मानस मंथन और अनन्त की ओर तीन काव्य संग्रह हैं | जीवन, प्रेम एवं प्रकृति के विभिन्न रंगों से चित्रित करती हुई कवयित्री ने मानव जीवन के राग -विराग, हर्ष -शोक, ममता एवं प्रवास की पीड़ा के भावों -मनोभावों को अपनी कल्पना की तूलिका से मूर्त्त रूप किया है | 'धूप गुनगुनी' में देखें --
आज भोर के आंगन में / धूप गुनगुनी छाई है / लगता जैसे मेरी माँ / मुझ से मिलने आई है /
'आश्वासन' और 'यों पीड़ा हो गई जीवन धन' गीतों में मानवीय संवेदना और प्राकृतिक सुषमा का अद्भुत सम्मिश्रण है | उदहारण देखें ...
विदा की वेला में सूरज ने / धरती की फिर माँग सजाई / तारक वेणी बाँध अलक में / नीली चुनरी अंग ओढ़ाई
मोती माणिक की धरती से / माँगे केवल सुख के कण / क्यों पीड़ा हो गई जीवन धन?
इनके अधिकतर गीतों में महादेवी की झलक दिखाई देती है | छायावादी युग को जीवित रखे हुए हैं |
'बस तेरे लिए' गीत में देखें --
नीलम सी साँझ / चाँदी का चाँद / तारों के दीप / सागर की सीप / जोड़ी है मैंने तेरे लिये
शशि जी को गीतों की रानी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी | गीतों के रंग में रंगी उनकी कल्पना में कहीं राग की कोमल अनुभूतियाँ हैं और कहीं विराग की ओर संकेत |
दिल्ली से आईं कहानीकार, कवयित्री अनिल प्रभा कुमार न्यूजर्सी में 1972 से रह रही हैं और यूनिवर्सिटी में हिन्दी पढ़ाती हैं | कविता संग्रह प्रकाशन के लिए तैयार है | छंदमुक्त कविताएँ काव्य रसानुभूति से ओत -प्रोत भोगे हुए जीवन के यथार्थ को रूपायित करने की अद्भुत क्षमता रखती हैं | कविताओं में नारी मन का रोष -आक्रोश है |
'गान्धारियों से प्रश्न' कविता में देखिये --
बेटियां कोख़ में मरती रहीं / और द्रौपदियां नग्न होती रहीं / और तुम आंखों पर बांधे पट्टी / गौरवान्वित होती रहीं।
माँओं , गान्धारियों, नारियो / खोल दो / आँखों पर बंधी इस पट्टी को।
अनिल जी की कविताओं में संवेग आवेग के साथ निकलते हैं और हृदय को झकझोरते जाते हैं --
एक हाथ में भाला और दूसरे में तराज़ू उठाए / हमारी तरफ बढ़ते आते हैं वो लोग / और कहते हैं कि तुम्हें तोलेंगे हम /
क्रांति का बिगुल बजाती हैं इनकी कविताएँ |
दिल्ली से ही आईं उपन्यासकार, कहानीकार, कवयित्री सुषम बेदी का काव्य संकलन शब्दों की खिड़कियाँ है | सुषम जी उपन्यासकार के रूप में एक स्थापित एवं प्रतिष्ठित लेखिका है |
न्यूयार्क की अंनत कौर, न्यूजर्सी की रजनी भार्गव, कैलिफोर्निया की अर्चना पांडा, अंशु जौहरी, प्रतिभा सक्सेना, शकुन्तला बहादुर, नीलू गुप्ता , ओहायो से रेणु राजवंशी गुप्ता, वर्जिनिया की आस्था नवल भी काव्य सृजन में रत हैं |
डॉ. किशोर काबरा ने एक जगह लिखा है- “सच्ची कविता की पहली शर्त यह है कि हमें उसका कोई भार नहीं लगता | जिस प्रकार पक्षी अपने परों से स्वच्छंद आकाश में विचरण करता है, उसी प्रकार कवि “स्वान्तः सुखाय” और “लोक हिताय” के दो पंखों पर अपना काव्य यात्रा का गणित बिठाता है”।
कुछ ऐसे ही जिंदगी के रंग, स्वाद, पुलक, सिहरन, बुद्धिजीवी स्त्री का विविध रंगों भरा संसार, देश प्रेम, देश से दूर रहने की पीड़ा, और नारी सुलभ भावनाओं का गणित, अमेरिका की कवयित्रियाँ, अपनी-अपनी मनोभूमि पर करती-बिठाती रही हैं तथा रचनाकारों की कविताएँ इस बात पर हमेशा खरी ही उतरी हैं एवं उनका साहित्य में योगदान सराहनीय है।
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(जनकृति अंतरराष्ट्रीय पत्रिका के अंक 23 में प्रकाशित लेख)
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