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टुकड़ा टुकड़ा सत्य

आजकल
सत्य की थाह  के लिये,
आवश्यक है
महारथ हो
चित्र खंड़ पहेली हल करने में,
क्योंकि सत्य
नहीं मिलता अब 
एक मुश्त कहीं ,
बिखरा होता है
टुकड़ा टुकड़ा
अलग अलग चैनलों में
अलग अलग अखबारों में,
हर टुकड़ा असत्य के
आवरण में लिपटा
दबा छुपा,
उन टुकड़ों को ढूंढ़ कर
सही सही जोड़ कर
खंड़ित सत्यचित्र को
मूर्त रूप देना है
सत्य से यदि
सचमुच रूबरू होना है !!
-ओंम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित )

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