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सोवियत संघ के विघटन पर एक वामपंथी के मन का दर्द व्यक्त करती उस काल की कुछ कविताएं: रामकिशोर मेहता

1 मई के अवसर

सोवियत संघ के विघटन पर एक वामपंथी के मन का दर्द व्यक्त करती उस काल की कुछ कविताएं।
1 लेनिनग्राद से कार्ल मार्क्स व लेनिन की मूर्तियों को हटाये जाने पर

बिलबिलाती भूख

रामकिशोर मेहता

अस्मिता गिरवी रख मिली शराब
अस्तित्व दाव पर लगा मिली रोटी
जब पेट में उतर जाती है
सचमुच बहुत कुलबुलाती है।
फिर होने लगता है 
जहरीले रक्त का संचार
दिखने लगते हैं रंगीन सपने।
बदलता सा लगता है सारा संसार
बदलते से लगते हैं समय परखे रिश्ते
अपने पराए , पराए अपने।
फिर जाने क्या गुल खिलाती है
यह हड्डी हीन जुवान फिसल फिसल जाती है।
कभी रोटी के लिए लड़े थे 
जो जार के खिलाफ
उन शहीदों की फिर किसे याद आती है।
देखते ही देखते
विजय स्तम्भों से उतर कर
यंत्रों पर झूल जाते हैं
लेनिन, कार्ल मार्क्स के बुत।
खोद कर फेंक दिए जाते हैं
इतिहास के ताबूत।
पर तीसरी दुनिया के लोगों
इन बेशर्म अघाहों की तरफ मत देखो।
जो अपने बाप को बाप नहीं कहतीं
उन बेशर्म निगाहों की तरफ मत देखो।
तुम तो समझते हो कि
भूख किस तरह बिलबिलाती है।

2 ज़ार की कब्र खोज कर, खोद कर उसकी खोपडी / चेहर पर कम्प्यूटराइज्ड खाल चढ़ा कर मीडिया पर दिखाया जाता है। जार को पुनर्स्थापित करने के प्रयत्न पर एक कविता।

ज़ार की पुनर्स्थापना पर

रामकिशोर मेहता

सारे के सारे तर्क सिद्ध तथ्यों
और वैज्ञानिक सत्यों को
दर किनार कर
स्वीकार कर रहा हूँ
कि भूत होता है।
मैंने देखा है इन्हीं आँखों से
दूर किसी अनजान कब्र से उठते हुए
अपने टी वी के परदे पर,
सुनी हैं
पढी है
उसकी घोषणाओं की प्रतिध्वनियाँ।
वह जार जार कंकाल
अपने प्रतिगामी पैरों पर उठा
फिर ओढ़ ली अपने चेहरे पर
कम्प्यूटरीकृत खाल
और.मुड़ मुड कर देखने लगा
मेरी, तुम्हारी तरफ
शायद किसी रसपुतिन ने
मंत्र सिद्ध कर किया आहवान
किसी फोर्ड ने उसका सम्मान।
फिर उठा वह आँधी तूफान
और धकियाया उसने पूरी मानवता को
कई सौ वर्ष पीछे।
मेरे साथी मजदूर किसान
आँख खोल
रंगीन चश्मा हटा
और देख।
पथ प्रदर्शन के लिए
किसी स्वयं सिद्ध
मसीहे के इन्तजार का
कोई अर्थ नहीं।

3 सोवियत संघ के विघटन पर विश्व एक ध्रुवीय हो गया। अमरीका ने हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम में रोड़े अटकाने और हम.पर प्रतिबंध लगाने शुरू किए। इसी पर कविता है

जूँठा अंतरिक्ष

रामकिशोर मेहता

एक बार दरिया के किनारे फिर आना।
खेलेंगे खेल फिर वही पुराना।
पर ध्यान रहे इस बार
खेल में होगी एक नयी चाल।
न तुम मेमना , न मैं भेड़िया
दोनों ही ओढ़ेंगे आदमी की खाल।
मैं दागूँगा प्रश्न
तुम उत्तर मिमियाना।

मैं गिनवाऊँगा तुम्हारे मित्र
बर्फीले भालू के दोष।
तूम कहना वह तो अब शेष नहीं है
फिर काहे का रोष ।
आँख में डाल कर उँगली
मैं दिखाऊँगा
तुम्हारे साथी
रेगिस्तानी ऊँट की खुराफात।
तुम कहना
वह तो मृतप्रायः है तात्।
तब मैं 
सीधे तुम पर मढ़ूँगा आरोप
कि तुम रोक रहे हो
मेरी नयी विश्व व्यवस्था का मार्ग।
तुम अलापना
अपनी सम्प्रभुता का राग।
अंत में मैं कहूँगा
कि तुम कर रहे हो
मेरा अंतरिक्ष जूँठा।
फिर मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूँगा
दूँगा तुमको दण्ड । 
लगा कर विशिष्ट दफा तीन सौ एक
के अंतर्गत प्रतिबंध।
पर घबराओ नहीं
इस बार
मैं तुम्हें 
जान से नहीं मारूँगा।
तुम्हारा जिन्दा रहना
मेरे लिए जरूरी है।
आखिर आदमी की खाल की
कुछ तो मजबूरी है।
मैं अपनी विजय पर
मुस्कुराऊँगा। 
तुम खिसियाना।

एक बार दरिया के किनारे 
फिर आना।

4 उस समय के सोवियत संघ के नेताओं के चरित्र को देख कर भारतीय जन मानस में साम्यवाद प्रति एक मोहभंग की स्थिति पैदा हुई उसी पर है कविता मोहभंग।

मोहभंग 
रामकिशोर मेहता

मुझे सोने दो
मैं देख रहा हूँ सपने
बड़ा आदमी होने के सपने।
मैं देख रहा हूँ सपने
अगला जन्म उनके लेने के
जिनके यहाँ 
मेरी माँ माँजती है बर्तन
धोती है कपड़़े
जहाँ से मिलती हैं मुझे
बची कुची मिठाइयां 
बासी पुलाव
यदा कदा उतरे हुए कपड़़े
और न जाने क्या क्या 
जिनका नाम तक 
मुझे नहीं मालूम।
सोने दो मुझे
मैं देख रहा हूँ सपने।
किसी ने बताया है मुझे
कि इस जन्म में
देने से दान
उस जन्म में
मिलता है फल।
यों तो था ही क्या मेरे पास
और जो कुछ भी था 
मैंने अपना सब कर दिया है दान
अब मैं शेष रह गया हूँ दधिचि
देख रहा हूँ सपने।
सच तो यह है कि
जगा कर भी मुझे
मेरा क्या भला करोगे तुम।
कि तुम भी दिखाओगे सपने
कहोगे दुनिया के मुफलिसो!
एक हो जाओ
खोने के लिए 
कुछ भी तो नहीं है 
तु्म्हारे पास
और पाने के लिए है
पूरा आकाश।
फिर थमा दोगे
मेरे हाथों में बन्दूक 
और
तुम बन जाओगे
तानाशाह स्तालिन
अंततः बिक जाओगे गोर्बाचोव।
तब मेरे पास
शेष रह जायेगी
आज ही तरह
बिछाने के लिए धरती
ओढ़ने के लिए आकाश।
इसीलिए कह रहा हूँ
कि कम से कम 
मुझे देखने तो दो 
प्यारे प्यारे मीठे मीठे सपने।

चित्र साभार: pexels 

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