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हे संक्रमण, हे संक्रमण !!

हे संक्रमण, तेरे चरण
करें क्यों जग का व्युत्क्रमण
प्रभु रचित अनुपम सृष्टि को
यूँ धकेल कर मृत्यु शरण
भर व्यग्रता अंतःकरण
हे संक्रमण, हे संक्रमण !
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चेतन रहकर  मृत्यु वरण
अति निर्मम यह आक्रमण
अतिक्रमण, अभद्र आचरण
जिसका न अन्य उदाहरण
करता मनन अंतःकरण
हे संक्रमण, हे संक्रमण !
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जब तक न तेरा निष्क्रमण
पूर्णरूपेण न संशरण
शून्य में अथवा अंतरण
या समूल नष्ट आवरण 
अधीर अति अंतःकरण
हे संक्रमण, हे संक्रमण !
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तू छीनता अनमोल क्षण
ओढकर विषाक्त आवरण
निर्दयी,  विकर्मी, कुलक्षण
जन गण ने अब लिया प्रण
तय है तेरा क्षरण मरण
हे संक्रमण ,हे संक्रमण !!
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विज्ञान ही तारण तरण
सतत शोध मार्ग अनुसरण
करेगा नष्ट अधिक्रमण
विपदा का होगा हरण
ठाना यही अंतःकरण
हे संक्रमण, हे संक्रमण !
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ओंम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित)
Mob.9427345810

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