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सरकारी आईना

 जैसे कुछ तिकड़मी

सियासत दान 

धूर्त महान,

हर दल की सरकार में

बन जाते हैं मंत्री; 

करते हैं निरंतर

सत्ता सुखपान,

वैसे ही कुछ चाटुकार

तथाकथित साहित्यकार

किसी की भी हो सरकार

कर लेते हैं जुगाड़ 

और 

पाने में सफल होते हैं

साहित्य पदक, पुरस्कार

सत्ता को समाज का

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दर्पण दिखाकर नहीं

वरन समाज को सतत

सरकारी आईना दिखाकर 

उसकी 

झूठी चमक से भरमाकर !

-ओंम प्रकाश नौटियाल

(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित)

Blog:www.opnautiyal.blogspot.in


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