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जीवन के खेवनहार पिता

संबल सबके आधार पिता

जग छोड़ किया अंधियार पिता

यह कैसा क्रूर प्रहार पिता

जीवन के खेवनहार पिता


नित्यशः बैठ तुम नीम तले

थे पढ़ा किये अखबार पिता

लगते थे तुम प्रहरक सजग

संचालित कर घरबार पिता

पक्षी करते इंतजार पिता

जीवन के खेवनहार पिता


अंधा भिक्षुक भोजन लेने

अब तक भी द्वारे आता है

"इस सूरदास को रोटी दो"

यह सुनने को रह जाता है

समझा कि तुम उस पार पिता

जीवन के खेवनहार पिता


बचपन की वह अनगिन यादे

हैं पिता जो तुमसे  जुड़ी हुई

अंतस में हिचकोले खाती 

सीधी सपाट, कुछ मुड़ी हुई

स्मृतियों के सूत्रधार पिता

जीवन के खेवनहार पिता


मेरे कारण पिता तुमने

शायद होगा  अपमान सहा

हारी हिम्मत पर कभी नहीं

और मुझ से एक इंसान गढ़ा

तुमसे फैला उजियार पिता

जीवन के खेवनहार पिता


नित्य छोटे मोटे कामों में

अकसर तुमसे मैं मिलता हूं

तुमसे सीखी थी जो बातें

उनसे यादें मैं  बिनता हूं

अनगिनत रहे उपकार पिता

जीवन के खेवनहार पिता


बेटे में भी पितास्वरूप 

प्रतिमान तुम्हारा चाहूंगा

निःशंक निरंजन निस्पृह हो

सम्मान तुम्हीं सा चाहूंगा

प्रतिपादित हों संस्कार पिता

जीवन के खेवनहार पिता

-ओंम प्रकाश नौटियाल

वडोदरा ,गुजरात 

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

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