चुनाव
वाणी से विष शर चले,
लुप्त हुआ सद्भाव,
गरल उगलता खेल है,
जिसका नाम चुनाव,
जिसका नाम चुनाव,
ध्येय बस सत्ता पाना,
अपने अपने राग,
बेसुरे सुर में गाना,
जनतंत्र में जन ही,
सब से अभागा प्राणी,
सेवन करता झूठ,
और विषैली वाणी !!
-ओम प्रकाश नौटियाल
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