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रक्षाबंधन

भेज रही हूँ अनुराग सिक्त 
भीगे नयनों से डोर तुम्हे,
कैसे आऊँ दूर देश से
यह व्यथा रही झकझोर मुझे !

प्यार हमारा रचा बसा है
बचपन की कितनी यादों में,
स्नेह मेह की धारा अविरल
बह रही कर्म , संवादो में !
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दूर भले हो किया वक्त ने
मन बंधन बाँधे  धागा है,
पहुँचा दे नेह संदेश, यह
छत पर जो बैठा कागा है !
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प्यारी छुटकी बिटिया को कह
राखी बँधवाकर  तिलक सजे, 
फिर स्नेह पर्व रक्षा बंधन 
आशीष मेरा, सगर्व मने !!
-ओम प्रकाश नौटियाल
( सर्वाधिकार सुरक्षित)
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