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लाकडाऊन की चुनौतियों की संघर्ष कथा -- "यहीं कहीं है रोशनी का गाँव "

पुस्तक परिचय -ओम प्रकाश नौटियाल
निशांत मिश्रा जी की पुस्तक "यहीं  कहीं है रोशनी का गाँव " कोराना के कहर को कम करने के लिए लगाए गए बहुचरणीय लाकडाऊन के अँधकार में डूबे भू्खे , बेरोजगार और जीवन यापन की आवश्यक वस्तुओं से वंचित हुए, आसरा तलाशते , निराश लोगों को कलमकार मंच द्वारा चलाए गए मुफ्त भोजन वितरित करने , संबल और ढाढस देने के अभियान की कहानी है । लगभग दो महीने तक चली इस मुहिम के पहल कर्ता और सूत्रधार कलमकार मंच के राष्ट्रीय संयोजक निशांत मिश्रा जी ने बडे़ बेबाक , सहज और रोचक अंदाज में इसे पुस्तकबद्ध किया है  । पुस्तक का शीर्षक  भी उनकी संवेदनाशीलता का काव्यमय प्रतिबिंब झलकाता है । 
साहित्यकार समाज का अंग है अतः उसका दायित्व सामाजिक संरचना , उसकी विषमताओं , मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं की विभिषिका पर मात्र कलम चला कर संतोष कर लेना भर नहीं होना चाहिए वरन  उसे संकट के समय खडे होकर समाज को कष्टों से उबारने में प्रयत्नशील होकर अपनी संवेदनशीलता का सच्चा परिचय देना भी होना चाहिए । कोरोना के भीषण कहर के दौरान जब जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया था, लोगों में भय व्याप्त था, प्राण दाँव पर लगे थे । संपूर्ण लाक डाऊन था, कर्फ्यू लगा था  । परिवहन के साधन उपलब्ध नहीं थे । काम काज ठप हो चुका था । प्रवासी मजदूर , निर्धन ,वंचित यहाँ तक की मध्यवर्गीय परिवार भी भोजन और आवश्यक वस्तुओं के अभाव में भीषण संकट से गुजर रहे थे । ऐसे परिवारों की पीर से द्रवित होकर कलमकार मंच के राष्ट्रीय संयोजक निशांत मिश्रा जी ने उनके लिए कूछ   करने की ठानी ।इस विचार को उनकी पत्नी का भी भरपूर समर्थन  मिला । उन्होंने तुरंत अपने कलमकार साथियों और अपने अन्य प्रभावशाली संपर्कों के सहयोग से  भूखे लोगों को भोजन देने की शुरुआत अपने सीमित संसाधनों से कर दी ।
लेकिन जैसा कि कहा गया है आदमी की सोच बडी होनी चाहिए  शुरुआत तो छोटे स्तर से भी की जा सकती है । एक बार मंच ने भूखों को भोजन पहुँचाने की जो पहल की तो फिर अनेकों मुश्किलों , बाधाओं के बावजूद मुड कर नहीं देखा और यह कार्य लम्बे अर्से तक ,लाकडाऊन के चार चरणॊ के दौरान, कलमकार मंच को साहित्य, समाज ,कला एवं प्रशासन के क्षेत्र के सहृदय व्यक्तियों के निरंतर सहयोग से हर बाधा को पार करता हुआ सफलता पूर्वक चलता रहा । निशांत जी ने शुरुआत की और फिर- ’लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया ’ । निशांत  जी ने इस पूरी चुनौती पूर्ण  मुहिम का विवरण कलमकार मंच द्वारा प्रकाशित अपनी इस पुस्तक में सत्यनिष्ठा और स्पष्टवादिता के साथ दिया है ।
96  पृष्ठों की इस पुस्तक में इस पूरे अभियान के महत्वपूर्ण प्रसंग हैं । पुस्तक के प्रारंभ और अंत में निशांत जी के कवि हृदय की भावभीनी काव्यमयी अभिव्यक्ति है तथा अन्य 43 लघु अध्यायों में अभियान के प्रारंभ से अंत तक के उतार चढाव  वर्णित है । पुस्तक पढकर यह तथ्य भलीभाँति उभर कर आता  है कि जिनके मन में कुछ करने का द्दढ संकल्प  हो वह अपनी राह बना ही लेते हैं । 
पुस्तक  में बताया गया है कि कलमकार मंच की ओर से देशव्यापी लाकडाऊन के दौरान  50 दिनों में करीब पौने दो लाख से अधिक लोगों को अस्थायी रसोई के माध्यम से भोजन के पैकेट ,दूध , बिस्किट ,मास्क आदि वितरित किए गए और करीब दो हजार परिवारों को कच्चे राशन की खाद्य सामग्री के पैकेट पहुँचाए गए । चौथे लाक डाऊन के दौरान लोगों को कलमकार कार्यालय से ही कच्चे राशन की खाद्य सामग्री वितरित की गई । 
इस पूरे अभियान में जो खट्टे मीठे अनुभव हुए उनका लेखा जोखा  पुस्तक में है , अधिकांश   लोगों का उजला रूप सामने  आया तो अपवाद स्वरूप कुछ के मुखौटे भी उतरे , चंद समर्थ लोग भारी संकट में भी  अपना स्वार्थ सर्वोपरि रखते है तो वहीं आपदा के शिकार अधिकतर  लोग इतने संतोषी देखे गए कि बस पेट भर जाए ,  संचय  का कोई लोभ नही । चंद लोग हर अच्छे कार्य को राजनीतिक रंग देने से बाज नहीं आते तो ऐसे लोग बडी संख्या में हैं जो धर्म ,जाति से ऊपर उठकर परस्पर सहयोग करना चाहते हैं । अनेकों प्रेरक और मार्मिक प्रसंगों युक्त इस पुस्तक में निशांत जी का अनुभव है कि इस महती योजना के कार्यान्वन में उन्हें अधिकतर बहुत अच्छे लोग मिले कुछ अपवादों को छोड़कर । यह समाज के उज्ज्वल भविष्य के लिए एक सुनहरी किरण है । महात्मा गाँधी ने कहा है " आपको कुछ खराब लोगों को देखकर मानवता में अपनी आस्था नहीं छोडनी चाहिए ।मानवता एक समुद्र की तरह है जिसे कुछ बूँदें गंदा नहीं कर सकती ।"

निशांत जी के पास पत्रकारिता का लम्बा अनुभव है । वह सदैव सामाजिक कार्यों में अग्रणी रहे हैं । समाज ,साहित्य , राजनीति और प्रशासन के क्षेत्रों मे उनके संपर्क है ,उनकी साफ सुथरी , ईमानदार तथा जुझारू छवि  इस बडी मुहिम में निसंदेह बहुत ही सहायक रही है । 
हमारा सरकारी ढाँचा कुछ ऐसा ढल गया है कि प्रणालीगत बाधाएं उसकी चाल आपदा में भी सुस्त बनाए रखती है किंतु व्यक्तिगत स्तर पर उसमें कार्यरत लोग भी इस ढाँचे के बाहर अपनी संवेदनशीलता और दक्षता का भरपूर परिचय देते हैं ।इस अभियान के दौरान कलमकार मंच की टीम को यह आनंददायक अनुभव हुआ जब उन्होंने देखा कि पुलिस वाले  वर्दी का रौब त्याग कर , यदि कुछ अपवादों को छोड दें , एक सच्चे सहयोगी के रूप में मानवीय धर्म निभाते दिखाई दिए । 
कुछ स्वार्थी तत्वों ने इसका राजनीतिकरण करने का प्रयास किया । कुछ ईर्ष्यालु लोगों ने दल के सदस्यों के मध्य फूट डालने की भी कोशिश की तो कुछ लोभी लोगों ने इसे व्यवसायिक गतिविधि बताकर बंद करवाने का प्रयत्न भी किया । कई बार भोजन के विषाक्त होने की अफवाहें उडाई गई । अस्थायी रसोई में कार्यरत  लोगों की धर्म जाति को लेकर बखॆडे खडे करने का प्रयास किया । लेकिन निशांत जी और उनके सहयोगियो ने हर ऐसी बाधा को अपने द्दढ इरा्दे  और मानवीयता  को आधार बना कर पार कर लिया । 

निशांत जी ने लिखा है कि कैसे देश भर की अनेकों साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं ने भोजन ,धन, वाहन, राशन के रूप में अपना निरंतर सहयोग दिया । व्यक्तिगत स्तर पर भी देश भर के कलमकार साथियों ने अपना अंश दान दिया । अकाशवाणी ने कतिपय अवसर पर निशांत जी के साक्षात्कार प्रसारित कर इस अभियान की जानकारी लोगों तक पहुँचाने का उल्लेखनीय कार्य किया ।
सोशल मीडिया का भी इस पूरे अभियान में भरपूर उपयोग किया गया और इसके माध्यम से अभियान दल और लोगों के मध्य निरंतर संपर्क बना रहा ।कलमकार मंच के वरिष्ठ साहित्यकार , संरक्षक , अन्य संस्थाओं के अनेकों साहित्यकार ,कलाक्षेत्र के लोग , पुलिस प्रशासन तथा सरकारी तंत्र के अनेकों जिम्मेदार लोग इस अभियान को निरंतर न केवल मार्ग दर्शन करते रहे, वरन हर बाधा को दूर करने में भी पूर्ण सहयोग देते रहे । इस पूरे अभियान ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि बडी से बडी आपदा का सामना करने के लिए मानवीय आधार पर बनी एकजुटता अत्यंत आवश्यक है । इस पूरे सेवा अभियान और देश भर में कोरोना के दौरान अनेकों संस्थाओं द्वारा भोजन वितरण के अन्य सभी अभिंयान अपने निर्धारित लक्ष्य अर्थात भूखे , निर्धन और अक्षम लोगो तक नियमित भोजन पहुँचाने में तो सफल रहे ही , इसके साथ ही इन अभियानों से उप-उत्पाद के रूप मे समाज में भाईचारे की भावना में वृद्धि ,एकता और संगठन के लाभ ,वैमन्स्य तथा घृणा का अंत करने के संदेश भी व्यवहारिक रूप में लोगों तक पहुँचे ।पुलिस और आम जनता तथा प्रशासन के अन्य अंगो मे परस्पर विश्वास और सद्भाव में बढोत्तरी हुई। कलमकार  मंच ने इस अभियान में  साहित्यिक पत्रिका कलमकार की प्रतियाँ बाँट कर लोगों मे अच्छे स्तरीय साहित्य के प्रति  रुचि जगाने का सत्कार्य भी किया है जिसे जनता ने बहुत सराहा है ।ऐसे अभियान समाज में सद्भाव बढाने और असामाजिक तत्वों को हतोत्साहित करने में भी कारगर सिद्ध होते हैं । 
महात्मा गाँधी ने कहा है "अपने आप को पाने का सबसे अच्छा ढंग है कि आप दूसरों की सेवा में खो जाएं" ।- 
इस अत्यंत सराहनीय कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए कलमकार मंच और इस अभियान से जुडे सभी लोग बधाई के पात्र हैं। निशांत जी ने, इस पूरे अभियान की महत्वपूर्ण बातों को इस प्रेरक पुस्तक में प्रकाशित कर एक अत्यंत सराहनीय कार्य किया है । यह पुस्तक आगे आने वाली पीढी को ऐसी आपदाओं से मजबूती के साथ निपटने के लिए और समाज में भाईचारा और सद्भाव स्थापित करने के लिए अवश्य प्रेरित करती रहेगी । मेरा सुझाव है कि इसके आगामी संस्करणों ,जहाँ तक संभव हो , घटनाओं की तिथि वर्ष के साथ सम्मिलित कर ली जाए  । 
मैं  सभी संस्थाओं/ शिक्षण संस्थाओं से अनुरोध करना चाहूँगा कि वह अपने सभी कर्मियों / विद्यार्थियों को यह पुस्तक उपलब्ध कराएं और इसे पढने के लिए प्रोत्साहित करें ।
पुस्तक : यहीं कहीं है रोशनी का गाँव
प्रकाशक : कलमकार मंच
उपलब्धता : वैब साइट, कलमकार मंच www.kalamkarmanch.in
संपर्क : editor@kalamkarmanch.in : kalamkarmanch@gmail.com
-ओम प्रकाश नौटियाल
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