एकता की दौड़
देश वर्षों से
एकता के लिए
लालायित है,
एकता न जाने क्यों
नाम नहीं ले रही
हाथ आने का .
हर दल हमें दौड़ा रहा है
एकता के लिए
दिशाहीन
उत्तर से द्क्षिण
दक्षिण से उत्तर
पूर्व से पश्चिम
पश्चिम से पूर्व
एकता को पाने के लिए,
ऐसी दौड़ में
केवल राष्ट्रप्रेम ही नही दौड़ता
वरन साथ साथ,
वोट की चाह में,
शामिल हो जाते हैं
धर्मान्धता, जाति वाद
साम्प्रदायिकता,वैमनस्य
भेदभाव , ऊंचनीच भी ,
सब करने लगते हैं
एकता का पीछा,
जग दिखावे के लिए तो
एक लगती है
सबकी मंजिल,
किंतु वहाँ पहुचने के लिए
हरेक के पास स्वार्थ की
तंग ,संकरी गलियाँ हैं,
हिंसा ,घृणा से लबरेज,
इसलिए धुंधला जाती है मंजिल,
विशुद्ध देशप्रेम के मल्टी लेन
राष्ट्रीय राज मार्ग से
कोई भी जाना नहीं चाहता
क्षुद्र स्वार्थ के आगे
राष्ट्रधर्म नहीं निभाना चाहता,
इसीलिए एकता सदा
रहती है पहुंच से बाहर
और देश पीछे पीछे
दौडता रहता है
हाँफता रहता है !!!
-ओम प्रकाश नौटियाल
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
https://www.amazon.in/s?k=om+prakash+nautiyal
कोई टिप्पणी नहीं:
सामग्री के संदर्भ में अपने विचार लिखें-